Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 25
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची लीलापतझणकारा चरित्र, कालू, हिं., पद्य, वि. १९६८, आदि: (-); अंति: सती झणकार का नारी जी, गाथा-३४, (पू.वि. प्रारंभिक गाथा-२ अपूर्ण से है.) १०६४६१ (+) मुनिवंदना प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५-२०(१ से १८,२३ से २४)=५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिये गये हैं., संशोधित., जैदे., (२९४१३, ९-१०४२८-३२). मुनिवंदना प्रकरण, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३४१ अपूर्ण से ४०६ अपूर्ण तक है व आगे क्रमांक ५९ अपूर्ण से ६७ तक है.) १०६४६२. (+#) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र सह स्वोपज्ञ भाष्य, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प. ३२-४(२१ से २४)=२८, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. द्विपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२९४१३, १२-१५४४५-५०). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि: सम्यग्दर्शनज्ञान; अंति: (-), (पू.वि. अध्याय-७ सूत्र-८ तक है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-स्वोपज्ञ भाष्य, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि: सम्यग्दर्शनं सम्यग्; अंति: (-). १०६४६३. (#) २३ पदवी व २७ अल्पबहुत्वादि विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९१८, मार्गशीर्ष कृष्ण, ११, गुरुवार, पे. ६, ले.स्थल. पारानयर, प्रले. उदयचंद ब्राह्मण; पठ. श्राव. राजाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२७.५४१३, १७४३६). १.पे. नाम. पदवी द्वार, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पदविद्वार. २३ पदवी विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सात एकेंद्रीरत्ननां नाम; अंति: धणि थाय एक समदृष्टी वध्यो. २. पे. नाम. दिसाणउवाइना बोल, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:दिशांणओ. २७ द्वार अल्पबहत्व विचार-दिशा आदि, मा.ग., गद्य, आदि: समचे जीव१ पांणि२ वनास्पति: अंति: पश्चिमें विसे साहिया. ३. पे. नाम. वडी गतागत, पृ. ४अ-५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:वडिगता०, गतागतब०. जीवगतिआगति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम जीवरा भेद ५६३ भेदनी; अंति: १७९ एकसोगुणीयासिरि लडरी ज. ४. पे. नाम. सातनय विस्तार, पृ. ५आ-८आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:७नयविचा०, ७नयविस्तार. सप्तनय विवरण-नैगमादि, मा.गु., गद्य, आदि: सातनयरा नाम कहे छै प्रथम; अंति: लज्या राखे ते कयडो माने. ५. पे. नाम. ४ निक्षेपारो विस्तार, पृ. ८आ-११अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:४निषेपावि०. ४ निक्षेप विचार, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नीक्षेपो कहे तांणाहर; अंति: कोईनो छे ते नीषेपो जांणवो, गाथा-१. ६. पे. नाम. ४ निक्षेपा सज्झाय, पृ. ११अ-१२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:४निषेपा. मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत सीध ने आयरिया; अंति: देखी थापना भुला भरम संसार, ढाल-२, गाथा-३३. १०६४६७. (+) नवस्मरण-१ से ६, अपूर्ण, वि. १८२८, ज्येष्ठ शुक्ल, १, सोमवार, मध्यम, पृ. १२-५(१ से ५)=७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१३, १२४२६). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. संतिकर स्तोत्र गाथा-८ से है व तिजयपहुत्त, नमिऊण व अजितशांति स्तोत्र है.) १०६४६८.(+) राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०२, ले.स्थल, पाली, प्रले. सा. अरज्याजी (गुरु सा. अजवाजी); गुपि.सा. अजवाजी (परंपरा सा. महासत्याजी); सा. महासत्याजी (गुरु सा. उदाजी); सा. उदाजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:राजप्रस्नि., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. २१७९, जैदे., (२९x१३.५, ९४३२-३६). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: अरहंता पससु पस्सवणाए णमो, सूत्र-१७५, ग्रं. २१००, (वि. १८२८, ज्येष्ठ कृष्ण, १४, सोमवार) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: न० नमस्कार हो वी०; अंति: तेह भणी नमस्कार थाउ, (वि. १८२८, ज्येष्ठ शुक्ल, ३, शुक्रवार) For Private and Personal Use Only

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