Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 25
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥श्री महावीराय नमः॥ ॥श्री बुद्धि-कीर्ति-कैलास-सुबोध-मनोहर-कल्याण-पद्मसागरसूरि सद्गुरुभ्यो नमः ॥ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची __ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १०६४५६. निरियावलिकादिसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०३, चैत्र कृष्ण, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. ६२, कुल पे. ५, ले.स्थल. हरिदुर्ग, प्र.वि. हुंडी:निरावलिका. अंत में 'निरावलिक०सूत्रार्थ कालुराम ब्रह्माण बेची करणमलजी शाह ने अजमेर मध्ये सं०१९०८ का चैत्र वध तिज' लिखा हुआ मिलता है., दे., (२६.५४१३.५, ७४३९-४३). १. पे. नाम. कल्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-२५अ, संपूर्ण.. कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं समएणं; अंति: भणियव्वो तहा, अध्ययन-१०. कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० उसर्पिणीनो चउथउ आरउ; अंति: पूर्व पाठकी ज्यो कहण. २. पे. नाम. कल्पावतंसिका सह टबार्थ, पृ. २५अ-२७अ, संपूर्ण. कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते० दोच्चस्स णं; अंति: वा सेज्झिहिंति, अध्ययन-१०. कल्पावतंसिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जदि जोहे पूज्य तपस्वी; अंति: महाविदेहइ सीझस्ये. ३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. २७अ-५२अ, संपूर्ण. पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: चेइयाइं जहा संगहणीए, अध्ययन-१०. पुष्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जौ हे पूज्य श्रमण भगवंत; अंति: वनज्यो संग्रहणीने गाथा मै. ४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. ५२अ-५५अ, संपूर्ण. पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: वासे सिज्झिहिंति, अध्ययन-१०. पुष्पचूलिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जद्यपि जौ हे पूज्य श्रमण; अंति: जंबू पूर्ववत्पाठ कहणा. ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र सह टबार्थ, पृ. ५५अ-६२अ, संपूर्ण.. वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइणं भंते समणेणं; अंति: पंचमवग्गे बारस उद्देसगा, अध्ययन-१२. वृष्णिदशासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जो हे पूज्य तपस्वी भगवंत; अंति: के विषै दस उद्देशा कह्या. १०६४५७. (+) राजप्रश्नीयसूत्र की वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६५२, वैशाख शुक्ल, ५, मध्यम, पृ.८०, ले.स्थल. अह्मदाबाद, उप. आ. जिनचंद्रसूरि (गुरु आ. जिनमाणिक्यसूरि, खरतरगच्छ); गुपि. आ. जिनमाणिक्यसूरि (गुरु गच्छाधिपति जिनहंससूरि, खरतरगच्छ); राज्यकालरा. अकबर; लिख. श्राव. सोमजी संघपति; श्रावि. राजलदे सोमजी संघपति; श्राव. रतनजी सोमजी संघवी; श्राव. रूपजी सोमजी संघवी; श्राव. खीमजी सोमजी संघवी; श्राव. सुंदरदास संघवी; अन्य. श्रावि. बाचू राजा दोशी; श्रावि. नाकू साईया दोशी; श्रावि. जसमादे जोगी दोशी, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.वि. हुंडी:राजप्रवृत्ति०. श्रीशत्रुजयतीर्थ छरिपालित यात्रा संघ आयोजन निमित्त ज्ञानभंडार में रखने हेतु प्रत लिखवाई गई., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८.५४१२.५, १५४५०). राजप्रश्नीयसूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदि: प्रणमत वीरजिनेश्वर; अंति: ताडनानि कशादिघाताः, ग्रं. ३७००. १०६४५८. (+) रघुवंश सह सुगमान्वयाप्रबोधिका टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हंडी:र०.स०., संशोधित-त्रिपाठ., जैदे., (३०x१३, १-३४३१-५३). रघुवंश, क. कालिदास, सं., पद्य, आदि: वागर्थाविव संपृक्तौ; अंति: (-), (पू.वि. सर्ग-६ श्लोक-२ तक है.) रघुवंश-सुगमान्वयाप्रबोधिका टीका, मु. सुमतिविजय पंडित, सं., गद्य, वि. १६३०, आदि: प्रणम्य जगदाधीशं गुरुं; अंति: (-). १०६४६० (+) लीलापतझणकारा चरित्र, अपूर्ण, वि. २००७, श्रेष्ठ, पृ. १५६-११८(१ से ११८)=३८, प्रले. श्राव. प्यारेलाल कोठारी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१४.५, १२४२०-२८). For Private and Personal Use Only

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