Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 25
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 21
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. कल्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-२९अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:नीरीयावलीका. ___ कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं समएणं; अंति: भणियव्वो तहा, अध्ययन-१०. कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते कालइ उसर्पणीनो; अंति: पूर्व पाठनी परि कहवउ. २.पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. २९अ-३१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:कप्पवडंसिया. कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: वा सेज्झिहिंति, अध्ययन-१०. कल्पावतंसिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज० जउ भं० हे पूज्य; अंति: महाविदेहइ सीझस्यइ. ३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. ३१आ-६०आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पुप्फीया. पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जति णं भंते समणेणं०; अंति: चेइयाइं जहा संगहणीए, अध्ययन-१०. पुष्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जओ हे पूज्य तपस्वीइ; अंति: गाथाई कह्या तिम. ४. पे. नाम. पुष्पचलिका सह टबार्थ, पृ.६०आ-६४आ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:पुप्फीचुलीका. पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: खलु जंबू निक्खेवउ, अध्ययन-१०. पुष्पचूलिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जउ हे पुज्य तपस्वीइ; अंति: जंबू पूर्व पाठ कहिवउ. ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र सह टबार्थ, पृ. ६४आ-७१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:वन्हिदसा. वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते० पंचमस्स; अंति: बारस्स उद्देसगा, अध्ययन-१२. वृष्णिदशासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जउ हे पूज्य तपस्वीइ; अंति: वर्गि बारइ उदेसा. १०६५०२ (+#) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१२, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ११, ले.स्थल. बिंदासर, प्रले. मु. शिवराज ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२७७१३, ७४१७-३०). नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवापुन्नं पावा; अंति: सह परभवगा न सेसट्ट, गाथा-७७. नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व० पापतत्त्व; अंति: शेष ८ सागै नहीं चालै. १०६५०३. (+) प्रकीर्णक संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६४-१(१) ६३, कुल पे. १३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७७१३, १६-१९४३९-४३). १.पे. नाम. कुसुलाणुबंध अध्ययन, पृ. २अ-३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६६, (पू.वि. गाथा-३१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, आउरपच्चक्खाण, पृ. ३अ-५आ, संपूर्ण. आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., प+ग., वि. ११वी, आदि: देसिक्कदेस विरउ सम्म; अंति: दिसउ खयं सव्वदरियाणं, गाथा-६०. ३. पे. नाम. भक्तिपरिज्ञा प्रकीर्णक, पृ. ५आ-११अ, संपूर्ण. भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण महाइसयं महाणुभावं; अंति: सोक्खं लहइ मोक्खं, गाथा-१७३. ४. पे. नाम, संस्तार प्रकरण, पृ. ११अ-१४आ, संपूर्ण. संस्तारक प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: काऊण नमोक्कारं जिणवर; अंति: सुहसंकमणं मम दिसंतु, गाथा-१२२. ५. पे. नाम. महापच्चक्खाण, पृ. १४आ-१८आ, संपूर्ण. महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि: एस करेमि पणामं तित्थयराणं; अंति: हविज्ज अहवा वि सिज्झेज्जा, गाथा-१४२. ६. पे. नाम. तंदलवेयालिय पइन्नग, पृ. १८आ-२८आ, संपूर्ण. तंदलवैचारिक प्रकीर्णक, प्रा., प+ग., आदि: निज्जरिय जरामरणं; अंति: (१)मुच्चह सव्वदुक्खाणं, (२)कारणं लहइ सिवसुक्खं. For Private and Personal Use Only

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