Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 25
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 23
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम शिव लावणी, पू. १आ-२अ संपूर्ण. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदि: देखो सोनारत आडती लावते; अंति: चितानंद० मरण सेवक टाले, गाथा-८. ३. पे. नाम. शिव आरती, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदि इंद्रजि आडति लेकर आये रे अति चितानंद० समयजा धुम मची, गाथा- ७. ४. पे. नाम. शिवशाल लावणी, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण चिदानंद, पुहिं, पद्य, आदि पाट बिछा दो बेठो हरजी जल; अति चितानंद चोकी ए खडा रे, गाथा-१०. ५. पे नाम. काशीविश्वनाथ लावणी, पृ. ३आ-४अ संपूर्ण. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदि विश्वनाथ विस्वशर होए रे, अंति काशी के उपर दल मेरा रे, गाथा- १०. ६. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पू. ४अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि गिरुआ रे गुण तुम तणा; अंति जस० प्राण आधारो रे, कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गाथा - ५. ७. पे नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण, पे.वि. पत्रांक ४आ पर किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई कृति का भाग है तथा इस पत्र को अपनी कृति लिखने हेतु उपयोग में लिया है. प्रेम प्रकार, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुमतिनाथ गुण शुं मलीजी; अंति: जश० मुज (+) गाथा - ५. ८. पे. नाम. सुपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. पत्रांक ५आ पर किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखित विजयचंद्रकेवली चरित्र कृति का प्रारंभिक भाग है तथा इस पत्र को अपनी कृति लिखने हेतु उपयोग किया है. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि श्रीसुपास जिनराज तूं अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण तक है.) १०६५०८. (+) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १७८०, श्रावण शुक्ल, १४, रविवार, मध्यम, पृ. ५५-१ (१)+१ (४३)=५५, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीर-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैवे. (२७४१३, ६४३१-३४). "" दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: (-); अंति: अप्पणा गई गइ त्तिबेमि, (पू.वि. अध्ययन-२ से है.) " " १०६५०९. पाशाकेवली, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-२ (१ से २ =४, पू.वि. बीच के पत्र हैं. दे. (२७.५X१३, १०x२६). पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. शकुन संख्या १३२ अपूर्ण से २४२ अपूर्ण तक है.) । चतुः शरण प्रकीर्णक व सुभाषित श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २६-१० (१ से ५,१२ से १६) = १६. कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित. वे. (२७४१३ ७४२६-३०). POBUDO १. पे. नाम चतुः शारण प्रकीर्णक, पृ. ६अ ११आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य वि. ११वी, आदि सावज्जजोग विरई अति (-), (पू.वि. गाथा ५९ अपूर्ण तक है.) 1 २. पे नाम. सुभाषितानि, पृ. १७-२६अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. सुभाषित श्लोक संग्रह*, मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-३१ अपूर्ण से है व श्लोक १०५ अपूर्ण तक लिखा है.) १०६५११ (+#) बृहत्संग्रहणी सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७-१ (१) = ६, पू. वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२६.५४१३, १५४४५-५०). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा- २ अपूर्ण से ९ अपूर्ण तक है.) बृहत्संग्रहणी- टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only १०६५१२. बर्द्धमान देशना, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे. (२६.५x१३, १०x२८-३२). वर्द्धमानदेशना, ग. राजकीर्ति, सं., गद्य, आदि: (१) नमः श्रीपार्श्वनाथाय, ( २ ) अस्मिन् जंबूद्वीपे; अंति: (-), (पू.वि. उल्लास-१ प्राणातिपातविरमण व्रतोपरि श्री हरिबलकथा अपूर्ण पाठ तक है.)

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