Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 11
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रकाशकीय जिनेश्वरदेव चरम तीर्थंकर श्री महावीरस्वामी, श्रुतप्रवाहक पूज्य गणधर भगवंतों, योगनिष्ठ आचार्यदेव श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी तथा परम पूज्य गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी की दिव्यकृपा से परम पूज्य आचार्यदेव श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी के शिष्यप्रवर राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की प्रेरणा एवं कुशल निर्देशन में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखित जैन ग्रंथों की सूची के एकादशम खंड को मुंबई की पुण्यमयी धरा पर परम पूज्य आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की शुभ निश्रा में श्री गोडीजी पार्श्वनाथ जैन मंदिर के द्वि-शताब्दी महोत्सव के पावन प्रसंग पर चतुर्विध श्रीसंघ के करकमलों में समर्पित करते हुए श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबातीर्थ परिवार अपार हर्ष की अनुभूति कर रहा है. विश्व में बहुत से ग्रंथालय तथा ज्ञानभंडार हैं, किन्तु प्राचीन परम्पराओं के रक्षक ज्ञानतीर्थरूप आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में हस्तलिखित ग्रंथों का जो बेशुमार दुर्लभ खजाना पूज्य गुरुदेवश्री द्वारा भारत के कोने-कोने से एकत्र किया गया है, यह ज्ञानभंडार इस भूमंडल पर अब अपना उल्लेखनीय स्थान प्राप्त कर चुका है. ____ हस्तप्रतों की संप्राप्ति, संरक्षण, विभागीकरण, सूचीकरण तथा रख-रखाव के इस कार्य व मार्गदर्शन में पूज्य आचार्यदेव के अधिकतर शिष्य-प्रशिष्यों का अपना योगदान रहा है. तपस्वी मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी ने हस्तप्रतों की प्रथम कच्ची सूची एवं बाद में पक्की सूची हेतु एक लाख से ज्यादा फॉर्म भरने का वर्षों तक अहर्निश भगीरथ परिश्रम किया है. प्रस्तुत ग्रंथसूची के मूल आधार पूज्य मुनिश्री ही है. इस सूचीकरण की अवधारणा को और विकसित करने में तथा कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के कार्य में ग्रंथालय विज्ञान की प्रचलित प्रणालियों के स्थान पर महत्तम उपयोगिता व सूझबूझ का उपयोग करने में तथा समय-समय पर सहयोगी बनने हेतु पूज्य पंन्यास श्री अजयसागरजी तथा यहाँ के पंडितजनों, प्रोग्रामरों और कार्यकर्ताओं ने अपनी शक्तियों का यथासंभव महत्तम उपयोग किया है. इसी तरह पूज्य आचार्य भगवंत के अन्य विद्वान एवं प्रज्ञाशील शिष्यों का भी इस पूरी प्रक्रिया में विविध प्रकार का सहयोग प्राप्त होता रहा है, जिससे ज्ञानमंदिर की प्रवृत्तियों को विशेष बल एवं वेग मिलता रहा है. इस अवसर पर संस्था ज्ञात-अज्ञात सभी सहयोगियों व शुभेच्छुकों की अनुमोदना करते हुए हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करती है. सभी के मिले-जुले समर्पित सहयोग के बिना यह विशालकाय कार्य संभव नहीं था. सात पंडितों के साथ करीब तीस कार्यकर्ताओं के माध्यम से, श्रीसंघ के व्यापक हितों से संबद्ध ज्ञानमंदिर की अनेकविध प्रवृत्तियों के संचालन के लिए निरंतर बड़ी मात्रा में धनराशि की आवश्यकता रहती है. किसी भी प्रकार के सरकारी या अन्य किसी भी अनुदान को न लेकर मात्र संघों व समाज की ओर से मिलनेवाले आर्थिक व अन्य सहयोग के द्वारा कार्यरत इस संस्था में हस्तप्रत सूचीकरण व संलग्न अन्य विविध प्रवृत्तियाँ निरंतर गतिशील रहती है. इस भगीरथ कार्य हेतु भारत व विदेश के श्रीसंघों, संस्थाओं व महानुभावों का भी आर्थिक सहयोग यदि नहीं मिल पाता तो यह कार्य आगे बढ़ाना मुश्किल था. समस्त चतुर्विध संघ तथा संस्था के सभी शुभेच्छुकों को इस अवसर पर साभार-धन्यवाद दिया जाता है. आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के श्रुतभक्ति के प्रत्येक कार्य में हमारे वर्तमान ट्रस्टीगण अत्यंत उत्सुक और गतिशील रहे हैं. विशेषतः ट्रस्टीवर्य श्री मुकेशभाई एन. शाह एवं श्री श्रीपालभाई आर. शाह तथा कारोबारी सदस्य श्री रजनीभाई एन. शाह का योगदान महत्वपूर्ण रहा है. तदुपरांत समय-समय पर ज्ञानमंदिर का तन-मन-धन से कार्यभार निर्वाह करनेवाले ट्रस्टीवर्य स्व. श्री शांतिलाल मोहनलाल शाह, स्व. श्री उदयनभाई आर. शाह, श्री हेमंतभाई राणा, श्री सोहनलालजी एल. चौधरी, श्री चांदमलजी गोलिया, श्री किरीटभाई कोबावाला, श्री कल्पेशभाई जे. शाह, श्री गिरीशभाई वी. शाह एवं कारोबारी सदस्य श्री मोहितभाई शाह का भी ज्ञानमंदिर को आज की ऊंचाईयों तक पहुंचाने के लिए सुंदर योगदान प्राप्त हुआ है, जिसे इस अवसर पर याद किये बिना नहीं रहा जा सकता. ___ परम गुरुभक्त श्री रविचंदजी बोथरा के सुपुत्र श्री वीरचंदजी एवं श्री अजितचंदजी बोथरा परिवार का जो उदार सहयोग प्रस्तुत चार खंडों हेतु प्राप्त हुआ है वह अत्यंत अनुमोदनीय है. कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची-जैन हस्तलिखित साहित्य के इस एकादशम खंड के वित्तीय सहयोग प्रदाता श्रीमती तारादेवी हरखचंदजी कांकरिया परिवार, कोलकाता के प्रति संस्था कृतज्ञता व्यक्त करती है. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची के इस एकादशम रत्न का समाज में स्वागत किया जाएगा, ऐसा हमारा विश्वास है. श्री सुधीरभाई यु. महेता - प्रमुख श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र ट्रस्ट - कोबातीर्थ, गांधीनगर iii For Private and Personal Use Only

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