Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 11
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महावीरजिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: जिनशासनमां जयकार करे,
गाथा-४, (पू.वि. अंतिम गाथा का कुछेक अंश मात्र है.) २. पे. नाम. वीर स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जय जय भवि हितकर; अंति: गुण पुरो
वांछित आस, गाथा-४. ३. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीमहावीर मनोहरु; अंति: ज्ञानविमल
कहीई, गाथा-९. ४. पे. नाम. गौत्मस्वामिनी स्तुति, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: इंद्रभुति अनोपम गुण; अंति: करो नित
मंगलमालिका, गाथा-४. ५. पे. नाम. गौतम स्तुति, पृ. ३अ, संपूर्ण.
गौतमस्वामी स्तुति, आ. ज्ञानसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूतिंगणभृद; अंति: सूरेर्वरदायकाश्च, श्लोक-४. ६.पे. नाम. गौतम स्तवन्म, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वीर मधुरी वाणी भाखे; अंति: नय करे
परीणाम रे, गाथा-७. ७. पे. नाम. दीपवलीपर्व चैत्यवंदन, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दीपावलीपर्व चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: दुखहरणी दीपालिका रे; अंति: (-),
(पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ४३४९९. (+) सिद्धचक्रयंत्रोद्धार गाथा सह टीका व कलिकुंडपार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले.
प्रह्लाद मोहनलाल लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७.५४१३, १५४५७). १. पे. नाम. सिद्धचक्रयंत्रोद्धार गाथा सह टीका, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. सिरिसिरिवाल कहा-सिद्धचक्रयंत्रोद्धार गाथा, हिस्सा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: गयणमकलियायत
उद्दाह; अंति: सिझंति महंतसिद्धिओ, गाथा-१२. सिरिसिरिवाल कहा-सिद्धचक्रयंत्रोद्धार गाथा की व्याख्या, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि: अत्र गगनादिसंज्ञा;
अंति: माद्याः सिद्ध्यंति. २. पे. नाम. कलिकुंडपार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-कलिकुंड, आ. मुनिचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: नमामि श्रीपार्श्व; अंति: शमयतु समग्रं भवभयं,
श्लोक-१०. ४३५००. (+#) उवहाण पइट्टा पंचाशग-२०, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७७१३.५, १०-१२४३८).
पंचाशक प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: महह जइ मुक्खसुहमणहं, प्रतिपूर्ण. ४३५०१. (+) सत्रुजयतिर्थस्तव, संपूर्ण, वि. १९४५, ?, पौष कृष्ण, १, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. अगस्तपुर, प्रले. पं. दोलतरुचि,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन वर्ष अंतर्गत वार के लिए 'वणीकवासरे' इस प्रकार लिखा है., संशोधित., दे., (२७४१३, १४४३५).
आदिजिन बृहत्स्तवन-श@जयतीर्थ, मु. प्रेमविजय, मागु., पद्य, आदि: प्रणमिय सयल जिणंद; अंति: पामीजे भवपार
ए, गाथा-२२. ४३५०२. (+) श्रावकना तीन मनोरथ व देसावगासिक पच्चक्खाण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित.,
दे., (२७४१३, ७४२१). १.पे. नाम. श्रावकना तीन मनोरथ, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण.
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