Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 11
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 21
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३४८० (+) पंचमाहाव्रत व रात्रिभोजन निवारण सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६.५४१२.५ १३४३७-४०). , १. पे. नाम. पंचमाहाव्रत सज्झाय, प्र. १अ २आ, संपूर्ण. ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्म, आदि सकल मनोरथ पुरवे रे अंतिः सजाय भणे ते सुख लहे, कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ढाल - ५. २. पे. नाम. रात्रिभोजन निवारण सज्झाय, पृ. २आ, पूर्ण, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु, पद्य, आदि: सकल धरमनुं सार ते, अंतिः (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ४३४८१. नेमिजिन बारमासो, संपूर्ण, वि. १९३३ मध्यम, पृ. १, पड. उमेदमल लूणीया, प्र.ले.पु. सामान्य, वे (२५x१२, १४X२७-३०). नेमिजिन बारमासो, मा.गु., पद्य, आदि: रंगीला नेमजी चत्रमास, अंतिः पोहता मुगत मझार, गाथा - १३. ४३४८२. (#) सिद्धसारस्वत स्तव संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५x१२.५, १६x४९) १. पे नाम. अनुभूत सिद्धसारस्वत स्तव, पृ. १अ संपूर्ण. सिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि : करमरालविहंगमवाहना; अंति: रंजयति स्फुटम्, श्लोक-१३. २. पे. नाम. सिद्धसारस्वत स्तव, पृ. १अ १आ. संपूर्ण सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: व्याप्तानंतसमस्तलोक, अंतिः भवत्युत्तमसंपदः, श्लोक ९. ४३४८३. (+#) शनिश्चर छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. १ आ पर रहे खाली कोष्टक में पाठ लिखा हुआ है, संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (२६४१३, १३x४२). शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अही नर असुर सुरांपती; अंतिः अलगी टाले आपदा, गाथा- १७. ४३४८४. (१) दानसीअलतपनी ढालो, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. श्राव. गोपाल प्रेमचंद सा. प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (२६. ५x१२.५, १३-१६x४४). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जनेसर पाए नमी, अंतिः (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल ४ गाथा १ तक है.) ४३४८५. (+) विरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल. अहमदनगर, प्रले. श्रावि. खिमा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२७.५४१३, १५४३४). ५ कारण छ डालिया, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य वि. १७३२, आदि: सिद्धारथ सुत वंदीड़, अंतिः विनय कहे आणंद ए, ढाल ६. १४४३२). १. पे. नाम. इरियावही सझाच, पृ. १ अ. संपूर्ण. ४३४८७, () सरस्वती मंत्र व स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, कुल पे २ प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७१३, १०X३८). १. पे. नाम. सरस्वति मंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह *, उ., पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र - षोडशनामा, सं., पद्य, आदि: नमस्ते शारदादेवी अंति: मुखतांबूलरचिताम्, श्लोक - ९. ४३४८८. (+) इरियावी व धन्नाकाकंदी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित. दे. (२७१२.५, For Private and Personal Use Only इरियावही सज्झाय, मु. मेघचंद्र-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदिः नारि रे मे दिठि एक अंतिः करज्यो घणी सेवरे, गाथा-६. २. पे. नाम. धन्नाकाकंदी सज्झाय, पृ. १अ १ आ. संपूर्ण.

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