Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 11
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ २० स्थानकतप स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुदेवी समरी कहुं; अंति: कीजीइ नझ मणु समभाव, गाथा-१४. २.पे. नाम. अयमत्ता सझाय, पृ. १आ, संपूर्ण. अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद वांदीने; अंति: ते मुनिवरना पाय, गाथा-१९. ४३४७४. (+) रुतुवंतीनी सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले.पं. हेतवर्द्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२,१२४२८). ऋतुवंतीस्त्री सज्झाय, मु. जीत, मा.गु., पद्य, आदि: सर्वसाधक जिनवरनी वाण; अंति: धर्मकरणी साची भाखी, गाथा-१५. ४३४७५. (+#) मौनएकादसी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. वाडीलाल वर्धमान शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७७१३, ११४४१). एकादशीपर्व सज्झाय, मु. विशालसोमसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: गोयम पूछे विरने; अंति: सुरूप सझाय भणी, गाथा-१५. ४३४७६. बीजतिथि व अष्टमी स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८७५, वैशाख कृष्ण, १४, शनिवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२७४१२.५, १०४४२). १.पे. नाम. बीजतिथि स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. बीजतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीज कहे भवी जीवने रे; अंति: नित विविध विनोद रे, गाथा-८. २. पे. नाम. अष्टमी स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आठम दिने आठ मद तजि; अंति: लब्धिःपुन्यनी रेहरे, गाथा-९. ४३४७७. (+#) पजुसणारो चेत्यवंदन व सझाय, संपूर्ण, वि. १९४४, श्रावण शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. चंद्रपुरी, प्र.वि. अंत में 'चंद्रपुरी मध्ये ग्रहण हतो' इस प्रकार लिखा है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, १४४३५). १.पे. नाम. पजुसणारो चेत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपरब पजुसणे चेवो; अंति: तणो दिपविजय गुण गाय, गाथा-६, (वि. दो गाथा की एक गाथा गिनने के कारण ६ गाथा अंकित है किन्तु वस्तुतः १२ गाथा है.) २.पे. नाम. पजुसणनी सझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. मतिहंस, मा.गु., पद्य, आदि: परब पजुसण आवियां रे; अंति: मतीहंच कहे करजोडरे, गाथा-११. ४३४७८. (+#) सम्यक्त्व कुलक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १९४६३). सम्यक्त्व कुलक, आ. अमरचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: देवो धम्मो मग्गो; अंति: अयाणमाणेवि सम्मत्तं, गाथा-३५. ४३४७९. (+#) साधुनी नीरवाण विधि व छिंक विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१२.५, १५४३९). १.पे. नाम. साधुनी नीरवाण विधि, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. साधु कालधर्म विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ज्योरे काल करे त्यार; अंति: (१)दीवस सुधी घेघाट करे, (२)ओगोजीमणी कोर राखवो. २. पे. नाम. छींक विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अतिचार कर्या पहिला; अंति: अवधी आस्यातना आलोवि. For Private and Personal Use Only

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