Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 11
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. चोदसनी थोइ, पृ. १अ, संपूर्ण.
पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. २. पे. नाम. आत्मोपरे स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण.
आध्यात्मिक सज्झाय, मु. दोलत, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन कर्मतणी गती; अंति: अखय दोलत अधिकारी, गाथा-११. ४३४६८. (+) महावीरजिन गुहुली व देवेंद्रसूरि स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९५५, आश्विन कृष्ण, १२, सोमवार, मध्यम, पृ. १, कुल
पे. २, ले.स्थल. अगस्तपुर, प्रले. पं. दोलतरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, १५४३३). १. पे. नाम. महावीरजिन गुहली, पृ. १अ, संपूर्ण.
महावीरजिन भास, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजी आव्या रे गुण; अंति: लक्ष्मीसूरी गुण ठाण, गाथा-५. २. पे. नाम. देवेंद्रसूरि स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. देवेंद्रसूरि सज्झाय, मु. दलपत, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमीइ युगल पय कमल; अंति: कोड कल्याण आनंदकारी,
गाथा-९. ४३४६९. (+) एकादशीस्तवन, संपूर्ण, वि. १९०६, मध्यम, पृ. ३,प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१२.५, ११४३८).
मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानगरी समोसर्य; अंति: लहे ते मंगल
अति घणो, ढाल-३, गाथा-२९, ग्रं.८०. ४३४७०. लघुशांति आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२७.५४१२.५, १३४३९). १. पे. नाम. लघुशांति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१८. २. पे. नाम. शांतिकर स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं जग; अंति: स लहइ सुह संपयं परमं,
गाथा-१३. ३. पे. नाम. ४ शरणा, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: मुझने च्यार सरण होजो; अंति: भवनो हुं पारो जी, अध्याय-४,
गाथा-१२. ४३४७१. (+#) वीरने पूछा गोतमनी व देवलोकनी सिझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका
में पाठ संशोधन हेतु मूल्य का उल्लेख किया गया है., संशोधित. कुल ग्रं. ४२, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१२.५, ११४३१). १. पे. नाम. वीरने पूछा गोतमनी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.
सिद्धपद स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगौतम प्रीछा करे; अंति: पामे सुख अथागहो, गाथा-१६. २. पे. नाम. देवलोकनी सजझाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सुधर्मदेवलोक सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुधरमां देवलोकमा; अंति: यां वरते जय जयकार रे,
गाथा-११. ४३४७२. (#) सिद्धचक्र तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्रावि. पाना, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१३, १३४३०). सिद्धचक्र स्तवन, मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समरी सारद माय प्रणमी; अंति: अमर नमे तुझ लली लली,
गाथा-८. ४३४७३. (#) वीसथानक तवन व अयमत्ता सझाय, संपूर्ण, वि. १८८५, आषाढ़ अधिकमास कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,
प्रले. ग. रंगकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१३, १६४५१). १.पे. नाम. वीसथानकनो स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
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