Book Title: Jyotish Kaumudi Author(s): Durga Prasad Shukla Publisher: Megh Prakashan DelhiPage 10
________________ के संबंध में इतना ज्ञान प्राप्त किया। कैसे उन्होंने तारों को मिलाकर नक्षत्रों और नक्षत्रों को मिलाकर राशियों की कल्पना की, कैसे इन राशियों और उनमें विचरते ग्रहों के मनुष्यों पर पड़ने वाले सूक्ष्म प्रभावों का अध्ययन किया और जो निष्कर्ष प्राप्त किये वे आज भी प्रासंगिक हैं। निश्चित रूप से यह एक पीढ़ी का काम नहीं था। इसमें कई पीढ़ियों ने अपना जीवन होम दिया होगा। भारतीय ज्योतिष के सिद्धांत हमारे लिए आज भी उपयोगी हैं। कठिनाई यह है कि हम इन सिद्धांतों के मर्म को बिना समझे उनका शब्दशः अर्थ ग्रहण कर लेते हैं या फिर हम बिना उन्हें समझे उनकी निंदा-आलोचना में लगते हैं। आवश्यकता है, ज्योतिष सिद्धांतों के आधुनिक काल की आवश्यकतानुसार समझने और उनकी व्याख्या करने की, साथ ही उनमें शोध करने की। आज विज्ञान भी इसमें सहायक हो सकता है। कोई पंद्रह-बीस वर्ष पूर्व की बात है। मैं एक पत्रिका में एक लेख पढ़ रहा था। लेखक पुणे के कोई विद्वान थे, जिन्होंने अपनी ध्यानावस्था में गुरु ग्रह के धरातल एवं वायुमंडल के दर्शन किये थे। लेखक ने अपनी ध्यानावस्था में बृहस्पति में अपने सूक्ष्म शरीर से जो देखा, उसका विवरण उन्होंने लिखकर अमेरिका की अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान 'नासा' को भेज दिया था। उसकी एक प्रतिलिपि उन्होंने कुछ समाचार-पत्रों को भी एक सीलबंद लिफाफे में भेजी थी। 'नासा' को भी उन्होंने सीलबंद लिफाफा भेजा था। उन दिनों 'नासा' ने एक खोजी यान 'वाइजर' अंतरिक्ष में शुक्र, गुरु, शनि आदि की जानकारी करने के लिए भेजा था। उन लेखक महोदय ने 'नासा' के अधिकारियों से निवेदन किया था कि जब 'वाइजर' से गुरु ग्रह के संबंध में प्रेषित विवरण प्राप्त हो जाए तो वे उनका सीलबंद लिफाफा खोलकर उसमें लिखे गये विवरण से 'वाइजर' द्वारा प्राप्त विवरण का मिलान करें। समाचार पत्रों के संपादकों से भी उन्होंने इसी तरह का अनुरोध किया था। कुछ समय बाद 'वाइजर' ने गुरु ग्रह से संबंधित विवरण भेजा। 'नासा' अधिकारियों ने उक्त सज्जन द्वारा प्रेषित लिफाफे को खोलकर उसमें लिखे गये विवरण का ‘वाइजर' द्वारा प्रेषित विवरण से मिलान किया तो वे आश्चर्यचकित रह गये। दोनों विवरणों में अद्भुत साम्य था। उक्त पत्रिका में उक्त लेखक महोदय ने इन्हीं सब बातों का उल्लेख किया था। इस प्रसंग के उल्लेख का उद्देश्य यही तथ्य प्रतिपादित करना है कि हमारे प्राचीन ऋषियों का ज्ञान खोखला नहीं था। वह चिंतन की एक सुदीर्घ परंपरा का परिणाम था। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार . 8 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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