Book Title: Jodhpur ke Jain Viro Sambandhi Aetihasik Kavya
Author(s): Saubhagyasinh Shekhawat
Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf

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Page 3
________________ जोधपुर के जैन वीरों सम्बन्धी ऐतिहासिक काव्य -.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.. आरणते आहुटि, अगन ते आतसि, अंत कारीगर घाट अनप । धावड़ियाँ नारेण त्रिविध धड़, भाँजि घड़े धड़ भांजे भूप । गालणि चाढ़ि बज ग्रह गाल, गज मुदगर करि तंग ग्रहि । सारधार लोहार असंकित, सत्र संकेले जंग सहि ।। प्रोक्त गीत में कवि ने लुहार के यंत्र अहरन, हथौड़ा, धमनी, संडासी और उसकी भट्टी के साथ गीतनायक की रणभूमि, हथियार, श्वास, तोपों की अग्नि, तलवार आदि क्रियाओं से समता प्रकट की है। सांवलदास पर रचित गीत में सांवलदास द्वारा मुसलमानों की सेना पर आक्रमण कर विजय प्राप्त करने का वर्णन है। इतिहास में यह सूत्र उपलब्ध नहीं है कि किस स्थान के युद्ध में गीतनायक ने मुसलमानों को पराजित कर विजय प्राप्त की थी। गीत की पंक्तियाँ हैं गोत सांवलदास पताउत मुहता रो मंगा च्यार फौजां लगी जंगा बीराण में, चंगा हैली सगत च्यार चहकै । बगां रण बार सूधा लगै बाढ़िया, मुहंता र खगा कसबोह महकै ॥ साहुली काहुली फौज सिर सांवला, झीक पड़ बाँवला रोप झंडा । अरी गंजा बूड बाढ बना आंवला, खुलेबा सांवला तेण खंडा ।। अरावाँ धरर झाले नयर फताउत, प्रसद हद अन दुनिया पतीजा । मैछ मीने अतर समर विन मूंछ रै, वाह खग आहड़े अगर वीजा ॥ धधड़े फतै पाई परम धारियाँ, थारियां होउ किंण हीन था । मीरजा हुआ किता दिवस मारियाँ, अजै तरवारियां बास आवै ।। मोहनोत जयमल-जैमल अपने समय के गणमान्य सैनानायकों में था। वह समान रूप से कलम और कृपाण की करामात का धनी था । युद्ध विजय उसके करतल थी । राजस्थान के सुख्यात कवि दुरसा आढ़ा ने जैमल की प्रबुद्धता और यौद्धिकता का एक गीत में अभिराम चित्रण किया है। गीत में उसे जोधपुर के राजा गजसिंह का मान्य सेनापति घोषित किया है। गीत जगि भल पनि वषन्त तुडालौ जैमलि, नव सहसी सिणगार निडार । असमरहथा सको तो आगे, लेखणि हथा सको तो लार ॥१॥ महण कलोधर गजीण मानियो, एकज सांमिध्रम देखि सधीर । रेवंत मुहरि हालिया राउत, वांस होई हालिया वजीर ॥२॥ जुधि मांझियाँ मेर जैसाउत, गढ़ि उपावण गरथ । सोहड़ा सांमि जीआँ समजत्तियां, अवड़ों नें सारै अरथ ॥३॥ माल भुजे पह न्याअि मानिया, सारी धरा तणा सह सूत । तू हुजदार वडो हेकाणवि, तू रिमराह बडौ रजपूत ।।४।। जयमल के पुत्र नैणसी और सुन्दरदास भी यथापिता तथापुत्र हुए। राजस्थान में अपने समसामयिकों में दोनों भ्राता विचक्षण पुरुष के रूप में पहिचाने गये । ___मोहनोत नैणसी-ओसवालों की मोहनोत शाखा में अनेक कुल-गौरव उत्पन्न हुए हैं। मोहनोत शाखा के जयमल के पुत्र नैणसी और सुन्दरसी बड़े स्मरणीय व्यक्ति हुए हैं। नैणसी जोधपुर के महाराजा जसवंतसिंह के दीवान थे । वे कलम और तलवार के दोनों के धनी थे। नैणसी ने एक ओर जहाँ शस्त्र ग्रहण कर शत्रुओं का दमन किया, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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