Book Title: Jodhpur ke Jain Viro Sambandhi Aetihasik Kavya
Author(s): Saubhagyasinh Shekhawat
Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 5
________________ किया । उसने जोधपुर में अपने पुत्र के विवाह में बड़ा द्रव्य व्यय किया था । मोहनोत सुरतराम के पुत्रों का विवाह रूपक में दौलतराम सेवग ने मोहनोत की उदारता, वीरता और धनाढ्यता का वर्णन किया है। यहाँ उदाहरणार्थ एक दोहा प्रस्तुत है : जोधपुर के जैन वीरों सम्बन्धी ऐतिहासिक काव्य सुरतराम ने जोधपुर के फौजबक्षी के पद पर कार्य करते हुए अनेक युद्धों का संचालन कर यश अर्जित किया था। महाराजा विजयसिंह ने सुरतराम को राव की पदवी प्रदान कर सम्मानित किया था । Jain Education International सुरतसाह जोधासहर, जिंग जीती बल जेम क्यावर जोधापुर कियो, जैमल नेणा जेम ॥ मोहनोत सांचलसी- महाराजा अजितसिंह ने भण्डारी सी और रघुनाथ के आग्रह पर बरसी के पुत्र सांवतसिंह को किशनगढ़ से जोधपुर बुलाकर विश्वासपूर्वक राजकीय सेवा में नियत किया। इन पर रचित गीत देखिये : (१) गीत सांवतसी मोहणोत रो सत जुगरा सहज लियां सत आसत, वीरतदत कीरत बडवार । मरदां मरद सोनगिर सोहै, सांवत सांवतंसी सरदार || क्रत पोहरें पोहरायत कारण, अकल अवल उपगार अपार । नरपुर नाम करण जसनामी, वैरसीयोत विजै विसतार ॥ आद अनाद रीत उजवालण, विमल कमल विरदं विरदैत । हीमत हाथ समय हाथाली नेणार नाहर नवर्तत ।। सतत सुक्रित सुभाव साहियां खाग त्याग निकलंक खरौ । मोहण वंस बडौ मध नामक वाधै दिन दिन सुजस वरी ॥ कवि ने सांसी के साहस, वीरत्व और वदान्यता का गीत में वर्णन किया है। अहमदाबाद पुढ और भण्डारी परिवार महाराजा अजितसिंह ने रघुनाथसिंह भण्डारी को रावरायान की पदवी और देश दीवानगी प्रदान की थी । रतनसिंह और उसके भाई गिरधारी द्वारा महाराजा अभयसिंह के नेतृत्व में अहमदाबाद में गुजरात के विद्रोही प्रांतपाल सरबुलंदखों के विरुद्ध लड़े गए युद्ध में पराक्रम प्रदक्षित करने का कविराज करणीदान कविया ने बड़ा फड़कता हुआ वर्णन किया है। करणीदान के अनुसार अहमदाबाद के युद्ध में भण्डारी गिरधारी, भण्डारी रतनसिंह पुत्र भण्डारी उदयराज और दलपत तथा धनराज ( धनरूप) एवं कल्याणदास के पुत्र मघ आदि ने भाग लिया था। इस सन्दर्भ में निम्न तीन कवित्त द्रष्टव्य हैं। :-- (२) ११६ कवित गिरधारी रतनसी बिहां मेलीया वजीरां । करां तेग काढीयां सीस वाहता अमीरां ॥ गजां धजां गाहता, उरड़ ठेलता अठेला । धीर आपता बोलीया, खेल खेलता अखेला || पण सोह चात पण लोह वोह सीधा सुभे । महाराज काज जूटा महर, उदेराज वाला उभे ॥ , कर ताता मेलीया खेंग ऊपरां खंधारां । वहै धार बींजलां उडे तंडलां आपारां ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14