Book Title: Jodhpur ke Jain Viro Sambandhi Aetihasik Kavya
Author(s): Saubhagyasinh Shekhawat
Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf
View full book text
________________
थेट सूं सांमधमी तिसी थाटियो, प्रचंड दरजै तिसै भलां पहुंतौ । जसतणी बाक भाखै सरब जोधपुर, मंत्रियाँ तिलक सुभियांण मुहतौ ॥ जोर जबरी नथी रैत सिर जमाने कमाये मान महाराज रा काम । प्रवादानीत पूरण ती पोतरो नवकोटा मंही उवारें नाम ॥
Jain Education International
जोधपुर के जैन वीरों सम्बन्धी ऐतिहासिक काव्य
साहिबराम सवाईरामोत:-- सवाईराम का पुत्र साहिबराम बड़ा दूरदर्शी और स्वामिभक्त था । महाराजा मानसिंह के शासनकाल में इसकी सेवाएँ काफी प्रशंसनीय रहीं। एक गीत दृष्टव्य है
गीत सहिबराम सवाईरामोत रो
(१).
(२)
1
मेघराज सिंघवी - अखेराज सिंघवी का दत्तक पुत्र मेघराज जोधपुर राज्य का वि० सं० १८५७ से १८८२ तक फोजबख्शी रहा और इसने अनेक लड़ाइयों में बड़ी बहादुरी के साथ भाग लिया। इसका स्वर्गवास वि० सं० १९०२ में हुआ । मेघराज सिंघवी की स्वामिभक्ति प्रसिद्ध थी । चार गीत द्रष्टव्य हैं :
(३)
प्रथीनाथ छल वडा मेवासिया पजावै, वजावी ऊधर्म आथ बारा । तबंध साहिया पर हजदार नह साहिया पर हुजदार सारा ॥ परविधूमण हजूरा पराक्रम छोल महाराण सम गुदत छीजो। मुरधरा महीं तुलियो न को मुसाहिब, बराबर सार आचार बीजो || करन र पौहर दस देस सिव ऋपा सू. कुसलहर आपरी जस कहावे । दान बग पछाड़ी रहे मुसद्दी हुआ, तगाड़ी दान खग नको आवे || साजना थिये सुप में दूध सा गुमरधर पंचमुख प्रेम गाजे ऊजला काम कर नाम राखे इला, सवाईराम सुत दीह साजै ॥
१२५
गीत मेघराज सिंघवी रा
कर मुंहगा घणा वरतिया कवियण, भीम अखं इंदे धर भाव । जै बगसियां तण घर जाणां, नवमी मिसल धरम ची नाव ॥ गुण ग्राहक पालक गढ़वाड़ां, किल सिंघवी अचड़ां करण । बोलै विरद राखड़ी बांधे, बिलकुल चित चारण वरण ।। वीड़िया लड़ियां नह विरचै पालै नित झालियाँ पलौ । बैहल व्रन मन सुध वांछें, भीम तणा कुल तणो भलो ॥ कीरत दवा लिये कीधौधर, नवनिध दिये चढै मुख नूर । दादा पित काका जिम भाखे पातां सूं मैघी हित पूर ॥ सतत सुकुलीण गुणां में समझे, सारौ जगत कहे स्याबास । मेघराज कविराजा मुख ची, फेरे नह पाछी फुरमास ॥ जसमा लाज ऊधर चेतन, बड़ौ महोदय जैम वरी मांगण जस हंडी लिख मेहर से भीमहरी ॥ पर उपगार करण गहपूरत, वडम विशेषत लाख बरीस । हुकम सुपातां जीह हुवोड़ो, सिंघवी लिये चढाव सीस ॥ मान तणे बगसी कुल मंडण, असर विंडण रण अनड़ । त्याग पग ग्रहियां अरवई तण, वेहलां तणौ प्रयाग बड़ ॥ तो सारखा हुआ अखा तण त्यागी, आखर ज्यांरा वर्ण उढंग । अचरज किसौ ऊमदा आवें, रूड़ा पौस ऊपरां रंग ॥
For Private & Personal Use Only
आ
.0
www.jainelibrary.org.