Book Title: Jodhpur ke Jain Viro Sambandhi Aetihasik Kavya
Author(s): Saubhagyasinh Shekhawat
Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ..-.-.-.-. -.-.-. -.-. -. -.-.-.-.-.-.-. -. -.- -.. जोधपुर के जन वीरों जम्बन्धी ऐतिहासिक काव्य सौभाग्यसिंह शेखावत राजस्थानी शोध संस्थान, चौपासनी, जोधपुर (राजस्थान) राजस्थान की भूतपूर्व रियासतों, रजवाड़ों तथा ठिकानों में ओसवाल शाखा के वैश्यों का बड़ा वर्चस्व रहा है । राज्यों के दीवान, प्रधान, सेनापति, प्रांतपाल, तन दीवान, मन्त्री, फौजवक्षी, कामदार तथा राजस्व अधिकारी एवं वकील आदि प्रशासनिक, अप्रशासनिक पदों पर रहकर ओसवाल जाति के अनेक लोगों ने अपनी कार्यपटुता, प्रबुद्धता एवं नीति-कौशल का परिचय दिया है। राजस्थान की राजनीति, अर्थनीति तथा धर्मनीति को नवीन दिशा देने और समाज में संतुलन स्थापित किये रखने में भी ओसवाल समाज का महनीय योगदान रहा है । प्रशासनिक और व्यावसायिक क्षेत्रों में अत्यधिक व्यस्त रहते हुए भी इस समाज में मोहनोत, नैणसी, लधराज मुहता, रूधा मुहता उदयचन्द्र भण्डारी. उत्तमचंद भण्डारी, सवाईराम सिंघवी, फतहचंद भण्डारी प्रभृति कतिपय ऐसे विद्वान् हो गए हैं जिनका कृतित्व कभी विस्मृत नहीं किया जा सकता। साहित्यिक क्षेत्र तथा मन्दिर, मठ, देवस्थान, उपाश्रय, कूप, वापिका आदि सार्वजनिक हित के कार्यों में ओसवाल समाज की पर्याप्त रुचि रही है। किन्तु इन प्रवृत्तियों के अतिरिक्त इस समाज में एक स्वभाव, धर्म और संस्कार विरुद्ध विशिष्टता रही है और वह है तराजू पकड़ने वाले हाथ में तलवार, कलम थामने वाले कर में कटार ग्रहण कर युद्ध में शत्रुओं से लोहा लेना तथा मारना और मरना। ओसवाल समाज के ऐसे अनेक रणोत्साही वीरों का प्राचीन काव्यों तथ. स्फुट छन्दों में चित्रण मिलता है जिन्होंने युद्ध-भूमि में प्रवेश कर वैरियों से दो-दो हाथ किये थे। यहाँ इसी कोटि के केवल जोधपुर क्षेत्र के कुछ ऐसे योद्धाओं का सोदाहरण उल्लेख करने का प्रयास किया जा रहा है जिनकी युद्धवीरता का वृत्तांत प्राचीन राजस्थानी छन्दों में प्राप्य है। साह तेजा सहसमलोत-जोधपुर क्षेत्र के ओसवाल योद्धाओं में पहला उल्लेख जोधपुर के राठौड़ शासक राव मालदेव और दिल्ली के सुल्तान शेरशाहसूरि के १६०० विक्रमी के गिर्ग सुमेल स्थान के प्रसिद्ध युद्ध में राव मालदेव की ओर से साह सहसमल के पुत्र तेजा (तेजराज) के भाग लेने का मिला है। एक समकालीन गीत में कवि ने तेजा की वीरता का बड़ा ही ओजमयी भाषा में वर्णन किया है गीत साह तेजा सहसमलौत रो सूर पतसाह नै मालदे सैफलौ, ठाकुरे वडबूडे छाडिया ठाल । गिरंद जूझारियाँ तेथ किण गादिय, प्रतपियौ तेजलौ गढ़ रख पाल । संमरे केम परधान सहसा सुतन, विरद पतसाह रौं हुवो बाथे । जोधपुर महाभारथ कियों जोरवर, हेमजो मार जस लियो हाथे ॥ भारमलहरे मेछांण दल भांजिया, राव रे काम अखियात राखी। कोट नव अचल राठौड़ साको कियो, सोम नै सूर संसार साखी ॥ हारिया असुर इम हिन्दुवै जस हुवौ, वाणीय इसी करदाख वारौ। थापियो मालदे तो तेजा थिरां, थयौ खण्ड मुर खंडै नाम थारौ॥ उपर्युक्त गीत इतिहाससम्मत है। इसमें गीतनायक तेजा गादहिया (गधैया) गोत्र का वैश्य अंकित है। तेजा के पिता का नाम सहसमल, पितामह का भारमल था। वह राव मालदेव का प्रधानमन्त्री था। शाह तेजराज के पराक्रम Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : षष्ठ खण्ड तथा मतिमत्ता की पुष्टि राव मालदेव के पौत्र राजा शूरसिंह के एक परवाने से भी होती है। इसमें तेजा के पुत्र शाह सिंहमल का वृत्त है । वह महत्त्वपूर्ण परवाना प्रस्तुत है। परवानों १ म्हाराज श्री सुरजसिंघजी रो सही सूधो साह सिंहमल गादहीयो लीखाय ल्याया पढ़ीयार भीवां ऊपरां तिणरी नकल । स्वरूप श्री महाराजाधिराज महाराज श्री सुरजसिंघजी म्हाराजकुवार श्री गजसिबजी वचनायतु पढ़ीयार भींवा दीस सुपरसाद वांचजो। अठां रा समाचार भला छे थांहरा देजो। तथा साह सिंहमल गादहीयो रो राव श्री मालदेजी दाणा जगात बगसीयो छ । तीणा दीसां दांणी चोलण करै छ । तीण सू मनै करजी । वीजोइ इण न कुन लागै छ । सरब माफ छै । इण रो ऊपर करजो । कोई चोलण करण न पावै । हकम छ। सं० १६७१ जेठ वद ८ मुकाम अजमेर प्रबानगी भाटी गोइंददासजी प्रवानी साह सिंहमल नु सुपजो । साह तेजो प्रथीराज जैतावत सं० १६१० रा चेत्र बद २ काम आयौ जैमल वीरमदेवोत सागरी वेढु में, मेड़ते कुंडल तलाव । अतएव वीरगीत तथा राजकीय आज्ञा पत्र से स्पष्ट है कि तेजा ने दो युद्धों में भाग लिया और द्वितीय युद्ध १६१० में वह पृथ्वीराज जैतावत बगाड़ी के स्वामी तथा राव मालदेव के प्रधान सेनानायक के साथ मेड़तियों के साथ के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुआ था। पता उरजनोत--पता मुहता अर्जुन का पुत्र था। वह सिवाना के राव कल्ला का प्रधान मन्त्री था। पता पर प्राप्त गीत इस प्रकार है: __ गीत पता उरजनोत मुहता रो परगह के मस्तकि केइक हाथ पग, के तु.........."ण के नैण तिम । अजण तणा म्रत हुवी अणखलौ, जीव पखं वप हुवी जिम ।। ठाकर पंचसयंचभूत थिति, रहै सकै तन नीत रखै । सब सारीखौ हुवी समीयाणो. पातल जोति स्वरूप पखै ॥ नाडि मतो बल खमण न हाल, विथका अंग सहू वरियामि । खेत कलोधर हंस खेलियौ, कोड़ि सरीर सर कोई काम ।। नाड़ि नाड़ि नित भुरज भुरजनित, थूरंतो जाय अरि चा थाट । हंस पतो भुगलोक हालीयो, देही दुरंग हुओ दहवाट । -दुरसा आढ़ा उपर्युक्त गीत में प्रसिद्ध कवि दुरसा आढा ने पता द्वारा सिवाना दुर्ग की रक्षा में जूझते हुए वीरगति प्राप्त करने का वर्णन किया है। पता ओसवालों की वैद शाखा के उरजन (अर्जुन) का पुत्र था। वह सं० १६४४ वि० में शाही आज्ञा से मोटेराजा उदयसिंह के सिवाना दुर्ग पर आक्रमण करने पर वीरतापूर्वक लड़ते हुए मारा गया था। नारायण एवं सांवलदास पताउत-पता का पुत्र नारायण और सांवलदास भी बड़े वीर योद्धा थे। नारायण की वीरता पर सजित एक गीत में कवि ने नारायण के युद्ध-कौशल का लुहार के साथ रूपक बांधा है गीत नारायण पताउत मुंहता रा अहिरिण रिणखेत हथौड़ी आवध, सांस धमण तम रोस सहाय । आठे पौहर अथाकित ऊमौ, धड दल रयण घड़े घण घाय॥ कर साउसी जड़ण कोयानल, धड धड़छै भड़ धूय धड़े। बैनाणी पातावत अरि बप, जड़ां ऊबेड़े भिजड़ जड़े ॥ Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जोधपुर के जैन वीरों सम्बन्धी ऐतिहासिक काव्य -.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.. आरणते आहुटि, अगन ते आतसि, अंत कारीगर घाट अनप । धावड़ियाँ नारेण त्रिविध धड़, भाँजि घड़े धड़ भांजे भूप । गालणि चाढ़ि बज ग्रह गाल, गज मुदगर करि तंग ग्रहि । सारधार लोहार असंकित, सत्र संकेले जंग सहि ।। प्रोक्त गीत में कवि ने लुहार के यंत्र अहरन, हथौड़ा, धमनी, संडासी और उसकी भट्टी के साथ गीतनायक की रणभूमि, हथियार, श्वास, तोपों की अग्नि, तलवार आदि क्रियाओं से समता प्रकट की है। सांवलदास पर रचित गीत में सांवलदास द्वारा मुसलमानों की सेना पर आक्रमण कर विजय प्राप्त करने का वर्णन है। इतिहास में यह सूत्र उपलब्ध नहीं है कि किस स्थान के युद्ध में गीतनायक ने मुसलमानों को पराजित कर विजय प्राप्त की थी। गीत की पंक्तियाँ हैं गोत सांवलदास पताउत मुहता रो मंगा च्यार फौजां लगी जंगा बीराण में, चंगा हैली सगत च्यार चहकै । बगां रण बार सूधा लगै बाढ़िया, मुहंता र खगा कसबोह महकै ॥ साहुली काहुली फौज सिर सांवला, झीक पड़ बाँवला रोप झंडा । अरी गंजा बूड बाढ बना आंवला, खुलेबा सांवला तेण खंडा ।। अरावाँ धरर झाले नयर फताउत, प्रसद हद अन दुनिया पतीजा । मैछ मीने अतर समर विन मूंछ रै, वाह खग आहड़े अगर वीजा ॥ धधड़े फतै पाई परम धारियाँ, थारियां होउ किंण हीन था । मीरजा हुआ किता दिवस मारियाँ, अजै तरवारियां बास आवै ।। मोहनोत जयमल-जैमल अपने समय के गणमान्य सैनानायकों में था। वह समान रूप से कलम और कृपाण की करामात का धनी था । युद्ध विजय उसके करतल थी । राजस्थान के सुख्यात कवि दुरसा आढ़ा ने जैमल की प्रबुद्धता और यौद्धिकता का एक गीत में अभिराम चित्रण किया है। गीत में उसे जोधपुर के राजा गजसिंह का मान्य सेनापति घोषित किया है। गीत जगि भल पनि वषन्त तुडालौ जैमलि, नव सहसी सिणगार निडार । असमरहथा सको तो आगे, लेखणि हथा सको तो लार ॥१॥ महण कलोधर गजीण मानियो, एकज सांमिध्रम देखि सधीर । रेवंत मुहरि हालिया राउत, वांस होई हालिया वजीर ॥२॥ जुधि मांझियाँ मेर जैसाउत, गढ़ि उपावण गरथ । सोहड़ा सांमि जीआँ समजत्तियां, अवड़ों नें सारै अरथ ॥३॥ माल भुजे पह न्याअि मानिया, सारी धरा तणा सह सूत । तू हुजदार वडो हेकाणवि, तू रिमराह बडौ रजपूत ।।४।। जयमल के पुत्र नैणसी और सुन्दरदास भी यथापिता तथापुत्र हुए। राजस्थान में अपने समसामयिकों में दोनों भ्राता विचक्षण पुरुष के रूप में पहिचाने गये । ___मोहनोत नैणसी-ओसवालों की मोहनोत शाखा में अनेक कुल-गौरव उत्पन्न हुए हैं। मोहनोत शाखा के जयमल के पुत्र नैणसी और सुन्दरसी बड़े स्मरणीय व्यक्ति हुए हैं। नैणसी जोधपुर के महाराजा जसवंतसिंह के दीवान थे । वे कलम और तलवार के दोनों के धनी थे। नैणसी ने एक ओर जहाँ शस्त्र ग्रहण कर शत्रुओं का दमन किया, Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : षष्ठ खण्ड सैनिक अभियानों में नेतृत्व ग्रहण किया, वहाँ दूसरी ओर "नैणसी री ख्यात" और "मारवाड़ के परगनों की विगत" जैसी ख्यातों का संकलन करवाकर प्राचीन इतिहास और साहित्य की सुरक्षा का बहुत बड़ा कार्य किया। नैणसी की यह सेवा कभी विस्मृत नहीं की जा सकती। नैणसी इतिहास और साहित्य का अनुरागी होने के साथ ही स्वयं भी उच्चकोटि का कवि था। नैणसी द्वारा रचित कुछ भक्ति गीत निःसन्देह नैणसी को सुकवि के रूप में प्रतिष्ठित करते हैं। नैणसी की वीरता से सम्बद्ध स्फुट गीत, कवित्त तथा दोहों में से यहाँ एक कवित्त दिया जा रहा है : कवित्त थह सूतौ भर निहर घोर करतौ सादूलौ। ओनी दौ ऊठियो वडा रावतां स झूलौ ।। पौंहतो तीजी फाल भजड़ हाथल तोलता। मेछ दलाँ मूगलां घात सीकार रमंता ॥ मारियो सिरोही मुगल मिल, खडग डसण धड़च खलै । गडड़ियौ सीह जैमाल रो, नैणसींह भरियों नलै ॥ मोहनोत सुन्दरसो-नैणसी की भाँति ही सुन्दरसी भी वीर और साहित्य प्रेमी था। वह महाराजा जसवंतसिंह का तन दीवान (निजी सचिव) था। सुन्दरसी द्वारा कंवलां के सिंघल राठौड़ों को पराजित करने का वर्णन मोहनोतों पर रचित एक निशानी छंद में इस प्रकार प्राप्त है :--- निसाणी मोहणोत ओसवालां री मोहण सुभट महेस मन आछ अवतारी। साखां तेहरों रो सिंधौ धींगौ पणधारी ।। चाँदे सादुल संचहै न आचै आचारी। देवै खेते अमरसी दीठौ दातारी॥ नगौ सपग्गी निडर नर धीरज वंत धारी। भाँजो कालूसी भलम, अगवात उधारी॥ साँम काँम समरथ सदा नित कलह बिहारी । सांवत जिसडा साँचवट कर खग करारी॥ नगै तणौ सूजौ निमल अचलौ अवतारी । अचलावत अवचल जैसी जड़धारी ॥ जैमल राजा गजन रे सौवे धर सारी। सुन्दर देवासा अविनी साझे ली सारी ॥ कंवला सिंघल सर किया आ साटै तरवारी। तेण घरांण तेजसी वंस रीत वधारी॥ तोउर तेजै रै तिसौ रावण अहकारी। कंबर तिकै रौ सहसकर सोभा प्रिय सारी ।। मोहणोतां में मुकुट मिण बानेत बिहारी। उल्लेखित निशानी में सुन्दरसी के पूर्वजों तथा उत्तराधिकारियों तेजसी, तोडरमल, बिहारीदास का भी वर्णन है। मोहनोत सुरतराम-मोहनोत नैणसी की संतति में करमसी, संग्रामसी, भगवतसी और सुरतराम हुए। सुरतराम को राजाधिराज बख्तसिंह ने सं १८०४ में सिंघवी फतहचन्द के स्थान पर फौजबक्षी के पद पर नियुक्त Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ किया । उसने जोधपुर में अपने पुत्र के विवाह में बड़ा द्रव्य व्यय किया था । मोहनोत सुरतराम के पुत्रों का विवाह रूपक में दौलतराम सेवग ने मोहनोत की उदारता, वीरता और धनाढ्यता का वर्णन किया है। यहाँ उदाहरणार्थ एक दोहा प्रस्तुत है : जोधपुर के जैन वीरों सम्बन्धी ऐतिहासिक काव्य सुरतराम ने जोधपुर के फौजबक्षी के पद पर कार्य करते हुए अनेक युद्धों का संचालन कर यश अर्जित किया था। महाराजा विजयसिंह ने सुरतराम को राव की पदवी प्रदान कर सम्मानित किया था । सुरतसाह जोधासहर, जिंग जीती बल जेम क्यावर जोधापुर कियो, जैमल नेणा जेम ॥ मोहनोत सांचलसी- महाराजा अजितसिंह ने भण्डारी सी और रघुनाथ के आग्रह पर बरसी के पुत्र सांवतसिंह को किशनगढ़ से जोधपुर बुलाकर विश्वासपूर्वक राजकीय सेवा में नियत किया। इन पर रचित गीत देखिये : (१) गीत सांवतसी मोहणोत रो सत जुगरा सहज लियां सत आसत, वीरतदत कीरत बडवार । मरदां मरद सोनगिर सोहै, सांवत सांवतंसी सरदार || क्रत पोहरें पोहरायत कारण, अकल अवल उपगार अपार । नरपुर नाम करण जसनामी, वैरसीयोत विजै विसतार ॥ आद अनाद रीत उजवालण, विमल कमल विरदं विरदैत । हीमत हाथ समय हाथाली नेणार नाहर नवर्तत ।। सतत सुक्रित सुभाव साहियां खाग त्याग निकलंक खरौ । मोहण वंस बडौ मध नामक वाधै दिन दिन सुजस वरी ॥ कवि ने सांसी के साहस, वीरत्व और वदान्यता का गीत में वर्णन किया है। अहमदाबाद पुढ और भण्डारी परिवार महाराजा अजितसिंह ने रघुनाथसिंह भण्डारी को रावरायान की पदवी और देश दीवानगी प्रदान की थी । रतनसिंह और उसके भाई गिरधारी द्वारा महाराजा अभयसिंह के नेतृत्व में अहमदाबाद में गुजरात के विद्रोही प्रांतपाल सरबुलंदखों के विरुद्ध लड़े गए युद्ध में पराक्रम प्रदक्षित करने का कविराज करणीदान कविया ने बड़ा फड़कता हुआ वर्णन किया है। करणीदान के अनुसार अहमदाबाद के युद्ध में भण्डारी गिरधारी, भण्डारी रतनसिंह पुत्र भण्डारी उदयराज और दलपत तथा धनराज ( धनरूप) एवं कल्याणदास के पुत्र मघ आदि ने भाग लिया था। इस सन्दर्भ में निम्न तीन कवित्त द्रष्टव्य हैं। :-- (२) ११६ कवित गिरधारी रतनसी बिहां मेलीया वजीरां । करां तेग काढीयां सीस वाहता अमीरां ॥ गजां धजां गाहता, उरड़ ठेलता अठेला । धीर आपता बोलीया, खेल खेलता अखेला || पण सोह चात पण लोह वोह सीधा सुभे । महाराज काज जूटा महर, उदेराज वाला उभे ॥ , कर ताता मेलीया खेंग ऊपरां खंधारां । वहै धार बींजलां उडे तंडलां आपारां ॥ . Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन प्रस्थ : षष्ठ खण्ड खलां सीस खीजीया, धार बाढ़ण खंडारी। छात राड़ि छाजीया, भला बाजीया भण्डारी ।। भूरतौ दलौ मुलथांन रौ चौल खाग रत चूंपीयौ। करतौ विरूप किलमाणं घणां, राड बीच धनरूपीयौ ।। धरम स्यांम धारीया सरम वीटीयां सिघालै । बिहां भायां मेलीया वेढ़ वैरीयां विचालै ॥ झिले बीर भैरवां वीर किलकिल भवानी । गिरै तुरां ऊपरां खवा बाढीया खवानी ॥ मधुकरौ अनै गोपालमल सदा जिकै गढ़ साररा । कलीयांणदास बाला किले, मुंहता जूटा मारका ॥ भण्डारी मनरूप-भण्डारी मनरूप अपने समय का बड़ा प्रभावशाली दीवान था। यह पोमसी भण्डारी का ज्येष्ठ पुत्र था। वि० सं० १७८२ में इसे मेड़ते का हाकिम नियुक्त किया गया। जब १७८२ में मराठों ने मेड़ते पर हमला किया तो भण्डारी मनरूप ने इस अवसर पर बड़ी बहादुरी बताई। वि० सं० १८०४ में इसे जोधपुर के दीवान पद पर आसीन किया गया। महाराजा रामसिंह और बख्तसिंह के वैमनस्य के समय यह रामसिंह के साथ अन्तिम समय तक रहा । वि० सं० १८०७ में इसका देहान्त हुआ। प्रसिद्ध चारण कवि करणीदान कविया ने मनरूप भण्डारी के व्यक्तित्व का चित्रण एक गीत में इस प्रकार किया है-- गीत मनरूप भण्डारी रो। लाखां ईरांन तूरांन तरां आसुरां ऊपाड़ लीनां, औगांन भयान चखां आसंगै न आन । लागा सीस आसमान मसतांन खूनो लायौ, मल्हार अमान हाथी डाकदार मान ।। मलीदां निवाला चहु चकां जीमै मालां, भालां दांनूसला किलां कपाटां भंजार । जिको लागो डाँणां कालीघटां मेघ आंणी जांण, आंण फील दिख्खणी चाबकी अस्सवार ।। चंबली कछूबातां मारो सनीदे काला चीता, आखतां बराला झालां लोमणां अबीह । मैमंता आवियो सूडांडंडा खाडां झाट मार, साटमार लावियौ पोमसी तणौ सीह ॥ रासाहरै आंणियौ सतारा तणां गाढ़ेराव, ___ नीझरैल छूटा पट्टां बीमरैल नाग। जटी नैनां खसी अमौ हुकम्मा ऊचारै जठी, विधूस नांखसी वैरीहरां तणां बाग ॥ -करणीदान कविया सिंघवी भीमराज--यह महाराजा विजयसिंह का समकालीन था। इसे वि० सं० १८२४ में महाराजा ने फौजबक्षी के पद पर नियुक्त किया। यह बड़ा रणकुशल व बहादुर था। इसने अनेक लड़ाइयाँ लड़ी। इसके वीरतापूर्ण कार्यों से प्रसन्न होकर महाराजो ने इसे चार गाँव इनायत किये। वि० सं० १८३७ में जब मरहठों की फौजें जयपुर पर चढ़ आई थीं, उस समय इसने जोधपुर की ओर से जयपुर की रक्षा में बहुत योगदान दिया। इसके पराक्रम सम्बन्धी निम्न गीत उल्लेखनीय है : - ० Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जोधपुर के जैन वीरों सम्बन्धी ऐतिहासिक काव्य १२१.. गीत सिंघवी भीमराज जोधपुर रो। थूरै खामा दहूँ राहां दिलेस व्है ताबीन थायौ, मही खेहां डमरा मिलायौ आसमान । आंबेर ऊथापवा पटेल दलां साज आयो, जोरावर देख मनां अभायौ जिहांन ॥ १ ॥ महाबाहु ऊमरा सकज्जा मंत्र धारा मिल, राजा लिखे प्रताप अरज्जां अह रीति । अजीतसाह आगैही जैसींघ नै ऊबेलियौ, ज्यू अबही ऊबेल कीजै बिजाई अजीत ॥ २॥ प्रभू चै प्रताप बिजैसाह हिंदवांणा पत्ती, तई बत्ती सुणतां ऊससै सिरताज । कुरम्माण धरती राखिवा तत्ती जैत काज, रैणारूप म दीठौ भेजियौ भीवराज ॥ ३ ॥ बाजे डाक त्रंबाला सालुलै महाबीर बंका, धैधींग आसंका भुई मंडे सूरधीर । इंद रौ पारंभ लीधा कुरम्माण बेल आयौ, बखतेस नंद रौ दीवांण महाबीर ॥ ४ ॥ है ख़रां धमस्सा बागी मचौलां भूगोल हल्ले, गरदां झबोला चौतरफ्फां झल्ले गण । अठी माधवेस प्रथी जैत आण आवाजियौ, नहाबाह . भीम जैण गाजीयौ भीमेण ॥ ५॥ तसां फिरंगाण तेरै हजार धुबक्की तोपां, कड़क्की बीजलां रूद्र तोपां प्रलैकाल । ऊजालवा नवां कोटां सताबां हरौल आगै, रालिया जा अराबां ऊपर बाजराज ॥ ६ ॥ मारवाड़ा वीर चौतरफा मार मार मच्चे, तई जंग जोबा भाण खच्चे सपतास । खागां झींक देवा काज भीम मेलिया जोस खाथै, बांकड़ा गनीमां माथै मेलिया ब्रहास ॥ ७ ॥ बीरहाक जोगणी हजारां खागां धारां बागी, चमू गंजा भिड़ज्जां दुसारां चूर चूर । अथागो भाराथ सू दीवाण विजैसाह वालो, सतारानाथ सूं खाग बागो महासूर ॥८॥ कुंत बाण कबांण बेधके वंका बीर केई, लौटणां परव ज्यू लुटै केई रीठ लेर। धैधींग ऊपटै केई अथां वगो बिरहां धारू, बागा मारू मारहठी कट्टा जैण बेर ॥ ६ ॥ माण मागां गरद्दां कायरां भाण पाण भागा, भीडे रूकां ऊनागां बीरांण बाण मीठ । Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .१२२ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : षष्ठ खण्ड लोहा झाट देतै भुजां डंडा आसमांण लागा, रूघाहरौ सिंघीरांण बागा आकारीठ ॥ १० ॥ विधूसै खाग हूँ फिरंगाण रा चौबड़ा बाड़ा, घेतला ऊबेड़ जाडा जोड़ जोस घटेल । जोरावर अथायौ आघात रौ देखतां जूझ, मांण छडे भागो आधीरात रौ पटेल ॥ ११ ॥ लाखां माल गयंदां सहेत डेरा लूट लीधा । स बोल धणी रा कीधा लिक्खयां सुजाव । जीतौ देस देस ने दिलेस नै गांजियो जेण, तैण माधवेस नै भांजियौ रूकां ताव ।। १२ ॥ हिन्दू पातसाह बिजैसाह री तपस्या हूँता, राडाजीत दूनी साल में दियौ अरेह । राजा प्रताप चो धिरे जिहांन भाखियौ सारे, अंबानेर वाली राज राजा राखियौ अबीह ॥ १३ ॥ बजावै जैतरा जांगी मिलावे अच्छरां वरां, रूकां धारां धपावे घेतलां चौ वीर रीति । अज्जमेर कीलो अच्छेहरी धरा लीधी अही, जैतवादी सींधवी तेहरी राडांजीत ॥ १४ ॥ कूरमाण प्रताप चौ सारो रोग काट आयौ, तइ सेन लोहां लाट आयौ सरताज । खावंद चा स बोल बाला सारी धरा खाट आयौ, राडाजीत थाट पाट आयो भीमराज ॥ १५॥ भण्डारी सिवचन्द-यह वि० सं० १८५१ में १८५५ तक जोधपुर राज्य का फौज बख्शी रहा। इसके सम्बन्ध में निम्न गीत मिला है। गीत सिवचन्द भण्डारी रो मन सुघ म्हैं तूझ फायदा माँगां, जुग जुग अविचल रहे जस । दै काइक सिवचन्द हरख दिल, जैपुररी आछी जिनस ।। पैखै खाग पूछे परिपाटी, करै जास तारीफ कवी । ते आंणी आंबेर तलास, नाडूला दे टूम नवी ।। जगपत री सेवा कर जोड़ी, मरथ जोड़णा गरब गये । दीजै इसी पौमसी दूजा, हर इक चौखी चीज हमैं ।। सोमाचंद तणा सत सोनन, बिलसै विमौ बजावे वार । भामां रा वटुआ रौ भाई, दै मुहगौ वटऔ दातार ।। सिंघवी इंद्रराज-यह विक्रम की उन्नीसवीं शताब्दी का एक महान और प्रतापी जैन योद्धा था। जोधपुर के महाराजा भीमसिंह के अन्तिम दिनों में उपद्रवी सरदारों का दमन करने, जालोर पर जोधपुर का अधिकार जमाने, भीमसिंह के बाद मानसिंह को जोधपुर की गद्दी दिलाने तथा उसे स्थायित्व प्रदान कराने में इस सिंघवी इन्द्रराज ने जिस वीरता, दूरदर्शिता और रणकुशलता का परिचय दिया तथा अन्त में अपने प्राणों का भी उत्सर्ग कर दिया, Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जोधपुर के जैन वीरों सम्बन्धी ऐतिहासिक काव्य १२३ ............................................................-.-.-.-.-.-.-. उसके उदाहरण बहुत कम मिलते हैं। महाराजा ने इन्द्रराज को वि० सं० १८६४ में जोधपुर का दीवान बनाया और वि० सं० १८७२ तक वह इस पद पर कार्य करता रहा । महाराजा ने इसकी सेवाओं से प्रसन्न होकर इसे अनेक रूक्के आदि प्रदान किये तथा अमीर खां पिण्डारी द्वारा वि० सं०१८८२ में इनकी हत्या करवा देने पर उनके पुत्र फतहराज को पच्चीस हजार की जागीर प्रदान की। स्वयं महाराजा मानसिंह ने, जो अच्छा कवि भी था, इन्द्रराज द्वारा की गई सेवाओं की स्मृति में निम्न सोरठे व दोहे रचे । इनके अलावा अन्य कवि का एक गीत भी लिखा मिलता है। दोहे, सोरठे और गीत द्रष्टव्य हैं सोरठा गेह छुटो कर गेड़, सिंह जुटो फूटो समद । अपनी भूप अरोड़, अड़िया तीनू इन्दड़ा ।। १ ।। गेह सांकल गजराज, घहै रह्यौ सादुल धीर । प्रकटी बाजी बाज, अकल प्रमाणे इन्दड़। ॥ २॥ दोहा पड़तो घेरो जोधपुर, अड़ता दला अर्थभ । आप डींगता इन्दड़ा, थे दीयों भुज थंभ ॥३॥ इन्दा वे असवारियाँ, उण चोहटे आमेर । घिण मन्त्री जोधाण रा, जैपर कीनी जेर ॥ ४ ॥ पोडियो किण पोशाक सू, जंग केडी जोय । गेह कटे है जावतां, होड न मरता होय ॥ ५॥ बेरी मारण मीरखां, राजकाज इन्द्रराज । मैं तो सरणे नाथ के, नाथ सुधारे काज ॥६॥ गीत इन्द्रराज सिंघवी रो दल अटकै कमण ऊबाणों दुजड़े, करसी कमण घरा रौ काज। सिंघवी राव मरण तो सुणतां, राजां सोच कियौ इन्द्रराज ॥१॥ मेल दलां पर दलां मरोड़ण, छव वरणां आधार छतो। अकल निधान भीमसुत ऊभा, हिन्दस्थान न चीत हुतौ ॥ २ ॥ जण आसान उदैपुर जयपुर, सबल नरां सर अंक सही। मोटा साह तुझ मिलव री, राजां राणां हूंस रही ॥ ३ ॥ सिंघवी गुलराज-यह सिंघवी इन्द्रराज का छोटा भाई और महाराजा मानसिंह का समकालीन था। इसने महाराजा मानसिंह को जालोर के घेरे में लाकर जोधपुर की राजगद्दी पर बैठाने में बड़ी सेवा की। इससे प्रसन्न होकर महाराजा ने इसे एक खास रूक्का प्रदान किया था। वि० सं० १८७२ में जब अमीर खाँ पिण्डारी ने अपना खर्च प्राप्त करने सम्बन्धी बखेड़ा उठाया तथा आयस देवनाथ और सिंघवी इन्द्रराज को इसने मरवा डाला, उस समय गुलराज ने बड़ी दूरदर्शिता से काम लेकर अमीर खाँ को जोधपुर से रवाना किया और महाराजा की आज्ञा से गुलराज तथा इसका भतीजा फतैराज दोनों राज्यों का प्रबन्ध देखने लगे। अन्त में यह भी षड्यन्त्र का शिकार हुआ तथा वि० सं० १८७४ में कैद कर इसे मरवा दिया। गुलराज की प्रशंसा में कहे गये निम्न दो दोहे उपलब्ध होते हैं Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : षष्ठ खण्ड दुहा गुलराज भीवराजोत सिंघवी जो गुण धरम जिहाज, भूले जावां भीम तण । तो पिण म्है कहिया तिकै, गुण जाय न गुलराज ॥१॥ इण जुग माहै आज, जाहर गुण त्रेता जिसा । गाढे मन गुलराज, राम इसट मन राचियौ ॥ २॥ सिंघवी कुशलराज-यह महाराजा मानसिंह का समकालीन था और महाराजा मानसिंह को जोधपुर के घेरे में जोधपुर लाकर गद्दी पर बैठाने में इसका प्रमुख हाथ था। इस उपलक्ष में महाराजा ने इसे एक रूक्का भी प्रदान किया था। मानसिंह के गद्दी पर बैठने के बाद भी उसके राज्य में उस समय पैदा हुए विभिन्न बखेड़ों में इसने महाराजा मानसिंह की बड़ी मदद की । उसने बगड़ी के ठाकुर शिवनाथसिंह की बगावत को बड़ी बहादुरी से दबाया। अंग्रेज पोलिटिकल एजेन्ट ने जब १८६० में जोधपुर पर सेना भेजने की धमकी दी, उस समय भी इसने महाराजा की बड़ी मदद की। यह वीर प्रकृति का पुरुष था। इसके व्यक्तित्व को प्रकट करने वाला निम्न गीत दृष्टव्य है। गीत कुसलराज बनराजोत सिंघवी प्रगट मेलिया गरट पेंगां झपट पाषरां, सुमर नट नचावन बिजड़ सेले । कुसल रज चढ़ावे विकट त्रिमकी कवट, मुडे झट विसणथट मरट मेले ॥ कपटां बजरा हूंत छाती कटण, झाल ताती भभक खाग झाटां । बनावत तुराटां पीठ आवे बिरड़, बैरियाँ चलावे आठ बारां ।। चमू हड़हड़ वहै पीठ कूरम चड़ड़, खित घडड़ नाचता मुनंद्र खेला। उपाडै घाटियाँ बाग सिंघवी उरड़, बसे तड़ अनड़ रिम विसम बेला ।। सूरपण पूर भूगोल स्याबासियौ, तोल असमाण भुज नूर ताले । सार दरिया मझ बोल असहां समर, भीमहर वाहुड़े चौल भाले । मुहता सूरजमल-महाराजा मानसिंह के समय में सोजत निवासी कोचर. मुहता खुशालचन्द का पुत्र मुहता सूरजमल बड़ा प्रभावशाली व्यक्ति था। वि० सं०१८६२ में इसे जोधपुर राज्य की दीवानगी का पद मिला। जालोर की लड़ाई में यह महाराजा मानसिंह के साथ घेरे में शामिल था। महाराजा. ने इसको अनेक रूक्के देकर सम्मानित किया। इसके बारे में दो डिंगल गीत निम्नानुसार लिखे मिलते हैं: गोत सूरजमल मुहता रो कल जुगिया चुगल नह लागै कान, बदल नहीं बोलिया वैण । हूतल रहण धारणा है कै, सूरजमल सारां रौ सैंण ॥ पर उपगार करै सत पूरत, पालै पुषत प्रजांसू प्रीत । नवकोटां पतरौ निज नायब, मतरौ समंद जगतरौ मीत ।। सुत खुसियाल खाटवां सुसबद, वैणा जेम चढे चित बेल । मान महीप फायदै मुहतो, मुहता रै सगला सू मेल ।। विध विध खोटा पवन बाजिया, अडग भलो रहियो अकल । पूरणमाल हरा रे पग पग, सुभ चिंतक दोसत सकल ॥ (२) लहर सुमति फैले हिये उवारणा लीजिय, दीजिये बराबर किसौ दूजौ। धुरा सू दाम रै लोभ नह धावियौ, सांम रे काम हमगीर सूजौ ॥ गंगजल सहज बिरदैत कामेत गुरु, ईख छक साजनां हुआं आणंद । भलल ताला प्रभा भला बड़ियां भुजां, नेत मुरधर तणा खुसालानंद ।। Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थेट सूं सांमधमी तिसी थाटियो, प्रचंड दरजै तिसै भलां पहुंतौ । जसतणी बाक भाखै सरब जोधपुर, मंत्रियाँ तिलक सुभियांण मुहतौ ॥ जोर जबरी नथी रैत सिर जमाने कमाये मान महाराज रा काम । प्रवादानीत पूरण ती पोतरो नवकोटा मंही उवारें नाम ॥ जोधपुर के जैन वीरों सम्बन्धी ऐतिहासिक काव्य साहिबराम सवाईरामोत:-- सवाईराम का पुत्र साहिबराम बड़ा दूरदर्शी और स्वामिभक्त था । महाराजा मानसिंह के शासनकाल में इसकी सेवाएँ काफी प्रशंसनीय रहीं। एक गीत दृष्टव्य है गीत सहिबराम सवाईरामोत रो (१). (२) 1 मेघराज सिंघवी - अखेराज सिंघवी का दत्तक पुत्र मेघराज जोधपुर राज्य का वि० सं० १८५७ से १८८२ तक फोजबख्शी रहा और इसने अनेक लड़ाइयों में बड़ी बहादुरी के साथ भाग लिया। इसका स्वर्गवास वि० सं० १९०२ में हुआ । मेघराज सिंघवी की स्वामिभक्ति प्रसिद्ध थी । चार गीत द्रष्टव्य हैं : (३) प्रथीनाथ छल वडा मेवासिया पजावै, वजावी ऊधर्म आथ बारा । तबंध साहिया पर हजदार नह साहिया पर हुजदार सारा ॥ परविधूमण हजूरा पराक्रम छोल महाराण सम गुदत छीजो। मुरधरा महीं तुलियो न को मुसाहिब, बराबर सार आचार बीजो || करन र पौहर दस देस सिव ऋपा सू. कुसलहर आपरी जस कहावे । दान बग पछाड़ी रहे मुसद्दी हुआ, तगाड़ी दान खग नको आवे || साजना थिये सुप में दूध सा गुमरधर पंचमुख प्रेम गाजे ऊजला काम कर नाम राखे इला, सवाईराम सुत दीह साजै ॥ १२५ गीत मेघराज सिंघवी रा कर मुंहगा घणा वरतिया कवियण, भीम अखं इंदे धर भाव । जै बगसियां तण घर जाणां, नवमी मिसल धरम ची नाव ॥ गुण ग्राहक पालक गढ़वाड़ां, किल सिंघवी अचड़ां करण । बोलै विरद राखड़ी बांधे, बिलकुल चित चारण वरण ।। वीड़िया लड़ियां नह विरचै पालै नित झालियाँ पलौ । बैहल व्रन मन सुध वांछें, भीम तणा कुल तणो भलो ॥ कीरत दवा लिये कीधौधर, नवनिध दिये चढै मुख नूर । दादा पित काका जिम भाखे पातां सूं मैघी हित पूर ॥ सतत सुकुलीण गुणां में समझे, सारौ जगत कहे स्याबास । मेघराज कविराजा मुख ची, फेरे नह पाछी फुरमास ॥ जसमा लाज ऊधर चेतन, बड़ौ महोदय जैम वरी मांगण जस हंडी लिख मेहर से भीमहरी ॥ पर उपगार करण गहपूरत, वडम विशेषत लाख बरीस । हुकम सुपातां जीह हुवोड़ो, सिंघवी लिये चढाव सीस ॥ मान तणे बगसी कुल मंडण, असर विंडण रण अनड़ । त्याग पग ग्रहियां अरवई तण, वेहलां तणौ प्रयाग बड़ ॥ तो सारखा हुआ अखा तण त्यागी, आखर ज्यांरा वर्ण उढंग । अचरज किसौ ऊमदा आवें, रूड़ा पौस ऊपरां रंग ॥ आ .0 . Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : षष्ठ खण्ड -. -. -. -. -.-.-. -. -.-.-. -... -.-.-. . . -.-.-.-.-.-. .. -.-. जुड़े जोड़ता तूझ विसारा, सिंघवी जस कायब सरस । आप हूंत किल भलो ऊधड़े, कनक भलोड़ा तणौ कस ।। वरणवता दातार तूझ वड़ गौरव सहत रचीजै गीत । मेघ भींत अतोखी माथै, चोखा घणा मंडीज चीत ।। जनमै नहीं बात जग जाहर, विमल सारदा देस विहीण । केसर जिम ते भीम कलोधर, सत कायब मान सुकलीण ।। (४) पर धर अरि जिकै फैलिया पगपग, हैवर नकू खरीद हुवे । मान प्रताप कोट नव माहै, सहूं प्रजा सुख नींद सुवै ।। ओधा दिस कुलवाट उजाला, भाला सगह दूजा भीमेण । तू यह बगसी तूझत बोल, तुरंग हजार खटावे तेण ।। मेघराज धजराज मांहरौ, वाल बंधाव बधारण वाल । मन में आवै जिता मेलणां, रुपिया बांध पलै रुमाल ॥ कर हाणणाट ठांण पग कूट, घोड़ो मांग थोक घणा । ऊगै दिन रूपिया आधारी, तलब मैट अखमाल तणा ॥ मुहता साहिबचन्द्र-यह महाराजा मानसिंह का अत्यन्त विश्वासपात्र और पराक्रमी पुरुप था। इसने विभिन्न लड़ाइयों में भाग लेकर जोधपुर राज्य की अच्छी सेवा की थी। इसने वि० सं० १८६१ में महाराजा की आज्ञा से घाणेराव पर चढ़ाई कर उसे जोधपुर के अधिकार में कर लिया। वि० सं० १८७३ में इसने सिरोही से चढ़े हुए दण्ड के रुपये वसूल करने के लिए चढ़ाई की और भीतरोट क्षेत्र को लूटा। वि० सं० १८७४ में साहिबचन्द ने पुन: सिरोही पर चढ़ाई की। महाराव उदयभाण शहर छोड़ कर भाग गया और साहिबचन्द ने यहाँ के दफ्तर आदि जला कर दस दिन तक नगर को लूटा, तत्सम्बन्धी एक गीत तथा एक अन्य गीत इस प्रकार हैं गीत साहिबचन्द मुहता रो आबू लेलियौ अलावदीन पैड ही न आयौ उठी, देलियौ जलाबदीन उठी नू न दौट । मेलियौ तै भलो मेल घाट तोड़वा रौ मंत्री, मेलियौ त साहिबा ठिकाणे भीतरौट ॥ वला अन्धकार रा में लाख ज्यू झौकिया बाज, केहरी ग्या भाज छंडै थाहरां कराल । कीधौ हाथ सिवारा तै देवड़ा लगाई कालौ, ___ आबू आडादला वालौ औढी अंतराल । कोली मांण मंदा थाने वाघेला बारडां कंपै। नाहेरां भाडेरां हंदां दुआ सूना सेस । डोहियो तै मान रा कॉमेत सिंधू रोड डंका, दोनू वंका गिरिन्द्रा बिचाल वंको देस ॥ सूबो दाप दाहै लीधा फौजां रा हबौला साथ। बेलियां निवाहै बोल चंडीनाथ बेल । साहिबा ते चडी चोट लीधौ भीतरोट सारी, बैधै लाग काट लेणां थारै हासो खेल ॥ ० Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जोधपुर के जन वीरों सम्बन्धी ऐतिहासिक काव्य १२७ -.-. -. ___ गीत साहिबचन्द महता रो सुसबद रिझवार साहिबा सांमल, उपजी चिन्ता रूप उपाध । नपत नणौ दीदार हुवै नह, अवड़ौ की मौ में अपराध ।। भाली नजर अमीरी भूपत, दुजां सोह चाकरां दिमी। बियौ विजौ नह अजै बुलावै, अमां नहीं तकसीर इसी ।। मान महीप हूंत कर मालम, सही सवाई तणा म सांक । दिये नहीं अनदातां दरसण, वांका री प्रापत में बांक ॥ मुजरा गय अरजकर मुहता, हव मन तणौ सन्देह हर । कै तौ धणी बुलावै कदमां, कै फुरमावै सीखकर ॥ भण्डारी चत्रभुज (चतुर्भुज)-यह भण्डारी सुखराम का पुत्र था और महाराजा मानसिंह के शासनकाल में बड़ा प्रभावशाली फौजबख्शी था। इसकी कीति निम्न गीत से स्पष्ट है गोत चतुर्भुज भण्डारी रो मन सुध सुण वयण चतुरभुज म्हारी, लेखव मती खुसामद लेस । जस रा काज सुधारण जौंगौ, तर तूहिज नाडूल नरेस । अरज करै नृप हूंत अमीणी, रलियायत करित 'रमण । तूझ विणा सुखराम तणो भ्रम, कामेती दुजौ कमण ।। कुल उजवाल अंगोटो कायम, जग उपगार करण धण जाण । मुसद्दी किसौ जोधपुर महै, तूझ सरीखी ऊँची ताण ।। बुध सू सूत राजरा वांधणा, दीधौ मान महीप दुऔ। लूणाहरा आज कस लोभी, हुजदारां सिरताज हुऔ॥ भण्डारी लखमीचन्द- यह वि० सं० १८६४ में केवल तीन मास तक जोधपुर राज्य का दीवान रहा। इसके पिता का नाम कस्तूरचन्द भण्डारी था। इसकी प्रशंसा में निम्न गीत मिला है गीत भण्डारी लिखमीचन्द रो थिर जितरा गाम तालके थार, नराहरा नाडूल नरेस । तुरत मँगाय हम दे त्यांरां, लायां रा रूपिया लखमेस ।। भेलप जाणणहार भण्डारी, चित तो चाह उबारण चौज । तूं घर सुछल जागै तिखड़ो, नां दाखै लागां रौ नौज ॥ कहियो काज जेज नह करसी, लाज लोयणां सुजस लियौ । भाल तूने दूजा भीमाजल, हीमाजल जिसौ हियो । ईटगरा इण वार अनरां, घरवट दीनी छोड़ घणां । तोनू तो किसतूर तणौ भ्रम, गोरा वाधा जिसौ गिणां ।। मुहता लिखमीचन्द-यह लखमीचन्द्र मुहता अखेचन्द का पुत्र था और जोधपुर राज्य का दो बार वि० सं० १६०० से १६०२ तथा वि० सं० १६०३ से १९०७ तक दीवान के पद पर रहा। इसकी प्रशंसा में निम्न कवित्त उपलब्ध है कवित्त लिखमीचन्द मुहता रो कर एको काढियौ सुरां असुरां मथ सागर सोले पायो सुरां हूँ मोहणी दनु जहर । Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 128 कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : षष्ठ खण्ड B. . . .. ..-.-.-.-.-.-.-.-.-......................... ............. .. मंडल किरणां मंही कलानिधि थापित कीधौ। ___अमरापुर सू आणि गरूड जणणी नूं दीधौ / लिखमीचन्द स्वरूप रा रोग हरण बधती रती।। वर श्री जिनेन्द्र वाले वस हाथ थारै अती // सिंघवी फौजराज-यह सिंघवी गुलराज का पुत्र था और महाराजा मानसिंह के समय में बहुत प्रभावशाली था। महाराजा ने इसे वि० सं० 1863 में जोधपुर का फौज बख्शी कायम किया और इस पद पर यह वि० सं० 1912 तक कायम रहा / वि० सं० 1602 में यह खालसे का काम भी देखता था। मारोठ व खेतड़ी के झगड़े में उसने फौज लेजाकर बीच-बचाव किया था। वि० सं० 1867 में सिवाना परगना के आसोतरा ठाकुर के यहाँ पर उपद्रव हुआ। उसे भी उसने जाकर दबाया। एक गीत द्रष्टव्य है : गीत फौजराज सिंघवी रो बांकारा सैण जिका मन विकसै, दोखी वांका तणा दबै / ईन्दा जिम कर क्रीत उवारण, ईन्दाणी सुभ नजर अब / / ईन्दै भूपत हूँत अमांची, आठ बार कीनी अरज / मिलिया ईन्दा तणी मारफत, गांम कुरब सुखपाल गज // आडो झगड़ो करां आप सूं, दिन ऊगै आसीस दियां / हम्हाहरी निखाह भीमहर, क्रपा भीम सुत जेम कियां / / पढू दिया रूपयां रा पैहला, पछ किया तोफान पला / सिंघवी ओ मौ काज सुधारण, गाज सीह जिय राय गलां / / निज कहिया वायक निरवाहै. मन नहचल आपरै मत / दु राह दिल खोल दाषियौ, फतौ मदत ज्यां हुवै फतै // मुहता हरखचन्द-हरखचन्द मुहता के बारे में भी एक गीत मिला है। यह जोधपुर का पराक्रमी योद्धा, साथ ही धार्मिक रुचि सम्पन्न व्यक्ति था / निम्न गीत द्रष्टव्य है ___ गीत हरखचन्द मुहता रो पद उपाध्याय दिन इन्द्र पावियौ, जग जाहर तूं मदत जद / गुरू अधक बधायौ गौरव, हरदवा कीधौ काम हद / / फैज बगस जस खाट फाबियौ, धन तूं रह्या मीढगर धूज / विनै करी श्रीपूज बड़ा झू, स्वगुर कियौ छोटो श्रीपूज / / राजे तूं मेधा रतनागर, चौज उबारण आचे चाव / चौरासी गछ कीधौ चावी, सागर नं उतमेस सुजाव / / जांण जोग दिनेन्द्र जती न, उदै मंदिरां तण उजीर / मुद कियौ तै तपगछ माहै. निज कुल भलो चढायौ नीर //