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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन प्रस्थ : षष्ठ खण्ड
खलां सीस खीजीया, धार बाढ़ण खंडारी।
छात राड़ि छाजीया, भला बाजीया भण्डारी ।। भूरतौ दलौ मुलथांन रौ चौल खाग रत चूंपीयौ। करतौ विरूप किलमाणं घणां, राड बीच धनरूपीयौ ।।
धरम स्यांम धारीया सरम वीटीयां सिघालै । बिहां भायां मेलीया वेढ़ वैरीयां विचालै ॥ झिले बीर भैरवां वीर किलकिल भवानी ।
गिरै तुरां ऊपरां खवा बाढीया खवानी ॥ मधुकरौ अनै गोपालमल सदा जिकै गढ़ साररा ।
कलीयांणदास बाला किले, मुंहता जूटा मारका ॥ भण्डारी मनरूप-भण्डारी मनरूप अपने समय का बड़ा प्रभावशाली दीवान था। यह पोमसी भण्डारी का ज्येष्ठ पुत्र था। वि० सं० १७८२ में इसे मेड़ते का हाकिम नियुक्त किया गया। जब १७८२ में मराठों ने मेड़ते पर हमला किया तो भण्डारी मनरूप ने इस अवसर पर बड़ी बहादुरी बताई। वि० सं० १८०४ में इसे जोधपुर के दीवान पद पर आसीन किया गया। महाराजा रामसिंह और बख्तसिंह के वैमनस्य के समय यह रामसिंह के साथ अन्तिम समय तक रहा । वि० सं० १८०७ में इसका देहान्त हुआ। प्रसिद्ध चारण कवि करणीदान कविया ने मनरूप भण्डारी के व्यक्तित्व का चित्रण एक गीत में इस प्रकार किया है--
गीत मनरूप भण्डारी रो। लाखां ईरांन तूरांन तरां आसुरां ऊपाड़ लीनां,
औगांन भयान चखां आसंगै न आन । लागा सीस आसमान मसतांन खूनो लायौ,
मल्हार अमान हाथी डाकदार मान ।। मलीदां निवाला चहु चकां जीमै मालां,
भालां दांनूसला किलां कपाटां भंजार । जिको लागो डाँणां कालीघटां मेघ आंणी जांण,
आंण फील दिख्खणी चाबकी अस्सवार ।। चंबली कछूबातां मारो सनीदे काला चीता,
आखतां बराला झालां लोमणां अबीह । मैमंता आवियो सूडांडंडा खाडां झाट मार,
साटमार लावियौ पोमसी तणौ सीह ॥ रासाहरै आंणियौ सतारा तणां गाढ़ेराव,
___ नीझरैल छूटा पट्टां बीमरैल नाग। जटी नैनां खसी अमौ हुकम्मा ऊचारै जठी,
विधूस नांखसी वैरीहरां तणां बाग ॥ -करणीदान कविया सिंघवी भीमराज--यह महाराजा विजयसिंह का समकालीन था। इसे वि० सं० १८२४ में महाराजा ने फौजबक्षी के पद पर नियुक्त किया। यह बड़ा रणकुशल व बहादुर था। इसने अनेक लड़ाइयाँ लड़ी। इसके वीरतापूर्ण कार्यों से प्रसन्न होकर महाराजो ने इसे चार गाँव इनायत किये। वि० सं० १८३७ में जब मरहठों की फौजें जयपुर पर चढ़ आई थीं, उस समय इसने जोधपुर की ओर से जयपुर की रक्षा में बहुत योगदान दिया। इसके पराक्रम सम्बन्धी निम्न गीत उल्लेखनीय है :
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