Book Title: Jodhpur ke Jain Viro Sambandhi Aetihasik Kavya Author(s): Saubhagyasinh Shekhawat Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf View full book textPage 2
________________ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : षष्ठ खण्ड तथा मतिमत्ता की पुष्टि राव मालदेव के पौत्र राजा शूरसिंह के एक परवाने से भी होती है। इसमें तेजा के पुत्र शाह सिंहमल का वृत्त है । वह महत्त्वपूर्ण परवाना प्रस्तुत है। परवानों १ म्हाराज श्री सुरजसिंघजी रो सही सूधो साह सिंहमल गादहीयो लीखाय ल्याया पढ़ीयार भीवां ऊपरां तिणरी नकल । स्वरूप श्री महाराजाधिराज महाराज श्री सुरजसिंघजी म्हाराजकुवार श्री गजसिबजी वचनायतु पढ़ीयार भींवा दीस सुपरसाद वांचजो। अठां रा समाचार भला छे थांहरा देजो। तथा साह सिंहमल गादहीयो रो राव श्री मालदेजी दाणा जगात बगसीयो छ । तीणा दीसां दांणी चोलण करै छ । तीण सू मनै करजी । वीजोइ इण न कुन लागै छ । सरब माफ छै । इण रो ऊपर करजो । कोई चोलण करण न पावै । हकम छ। सं० १६७१ जेठ वद ८ मुकाम अजमेर प्रबानगी भाटी गोइंददासजी प्रवानी साह सिंहमल नु सुपजो । साह तेजो प्रथीराज जैतावत सं० १६१० रा चेत्र बद २ काम आयौ जैमल वीरमदेवोत सागरी वेढु में, मेड़ते कुंडल तलाव । अतएव वीरगीत तथा राजकीय आज्ञा पत्र से स्पष्ट है कि तेजा ने दो युद्धों में भाग लिया और द्वितीय युद्ध १६१० में वह पृथ्वीराज जैतावत बगाड़ी के स्वामी तथा राव मालदेव के प्रधान सेनानायक के साथ मेड़तियों के साथ के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुआ था। पता उरजनोत--पता मुहता अर्जुन का पुत्र था। वह सिवाना के राव कल्ला का प्रधान मन्त्री था। पता पर प्राप्त गीत इस प्रकार है: __ गीत पता उरजनोत मुहता रो परगह के मस्तकि केइक हाथ पग, के तु.........."ण के नैण तिम । अजण तणा म्रत हुवी अणखलौ, जीव पखं वप हुवी जिम ।। ठाकर पंचसयंचभूत थिति, रहै सकै तन नीत रखै । सब सारीखौ हुवी समीयाणो. पातल जोति स्वरूप पखै ॥ नाडि मतो बल खमण न हाल, विथका अंग सहू वरियामि । खेत कलोधर हंस खेलियौ, कोड़ि सरीर सर कोई काम ।। नाड़ि नाड़ि नित भुरज भुरजनित, थूरंतो जाय अरि चा थाट । हंस पतो भुगलोक हालीयो, देही दुरंग हुओ दहवाट । -दुरसा आढ़ा उपर्युक्त गीत में प्रसिद्ध कवि दुरसा आढा ने पता द्वारा सिवाना दुर्ग की रक्षा में जूझते हुए वीरगति प्राप्त करने का वर्णन किया है। पता ओसवालों की वैद शाखा के उरजन (अर्जुन) का पुत्र था। वह सं० १६४४ वि० में शाही आज्ञा से मोटेराजा उदयसिंह के सिवाना दुर्ग पर आक्रमण करने पर वीरतापूर्वक लड़ते हुए मारा गया था। नारायण एवं सांवलदास पताउत-पता का पुत्र नारायण और सांवलदास भी बड़े वीर योद्धा थे। नारायण की वीरता पर सजित एक गीत में कवि ने नारायण के युद्ध-कौशल का लुहार के साथ रूपक बांधा है गीत नारायण पताउत मुंहता रा अहिरिण रिणखेत हथौड़ी आवध, सांस धमण तम रोस सहाय । आठे पौहर अथाकित ऊमौ, धड दल रयण घड़े घण घाय॥ कर साउसी जड़ण कोयानल, धड धड़छै भड़ धूय धड़े। बैनाणी पातावत अरि बप, जड़ां ऊबेड़े भिजड़ जड़े ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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