Book Title: Jivsamas
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 2
________________ प्रकाशकीय जीवसमास जैनधर्म-दर्शन का प्राचीनतम ग्रन्थ है। इसके रचयिता कोई अज्ञात पूर्वधर आचार्य हैं, जिनका समय पाँचवीं-छठी शताब्दी के लगभग रहा होगा। प्रस्तुत कृति की विशेषता यह है कि इसमें जैन खगोल, भूगोल, सृष्टि-विज्ञान के साथ-साथ तत्कालीन प्रचलित विविध प्रकार के तौल-माप, जीवों की विभिन्न प्रजातियाँ आदि का विस्तृत विवेचन उपलब्ध होता है। विवेच्य विश्वय को देखते हुए इसकी प्राचीनता और महत्ता को नकारा नहीं जा सकता। मूलत: यह ग्रन्थ प्राकृत भाषा में निबद्ध है। वर्तमान में यद्यपि यह कृति प्राकृत और उसकी संस्कृत टीका सहित उपलब्ध थी, किन्तु हिन्दी भाषा-भाषी पाठकों के लिए इस महान् ग्रन्थ का उपयोग कर पाना कठिन था। इस दृष्टि को ध्यान में रखते हुए पार्श्वनाथ विद्यापीठ ने इस ग्रन्थ को हिन्दी अनुवाद के साथ प्रकाशित किया है। इस अनुपम ग्रन्थ के हिन्दी अनुवाद का महनीय कार्य साध्वीवर्या श्रीमणिप्रभाश्री जी म.सा. की सुशिष्या साध्वी श्री विद्युत्प्रभाश्री जी ने किया है, अत: हम वंदनीया साध्वीश्री जी के कृतज्ञ हैं। विस्तृत भूमिका के साथ-साथ ग्रन्थ का सम्पादन जैनधर्म-दर्शः, मर्मज्ञ मनीषी एवं पार्श्वनाथ विद्यापीठ के निदेशक (इमेरिटस) डॉ० सागरमल जी जैन ने किया है, अत: हम उनके हृदय से आभारी हैं। साध्वीश्री एवं डॉ० सागरमल जी जैन के अथक परिश्रम का ही परिणाम है कि यह ग्रन्थ सुधीजनों के सम्मुख उपस्थित है। प्रन्थ का प्रफ संशोधन डॉ. शिवप्रसाद, डॉ. विजय कुमार जैन एवं डॉ० सुधा जैन ने किया है, अत: वे धन्यवाद के पात्र हैं। प्रकाशन व्यवस्था का पूर्ण दायित्व डॉ. विजय कुमार जैन ने वहन किया है, एतदर्थ वे पुनः धन्यवाद के पात्र हैं। उत्तम अक्षर-संयोजन के लिए श्री अजय कुमार चौहान, सरिता कम्प्यूटर्स सुन्दर मुद्रण के लिए वर्द्धमान मुद्रणालय, वाराणसी के भी हम आभारी है। भूपेन्द्रनाथ जैन मानद सचिव पार्श्वनाथ विद्यापीठ वाराणसी

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