Book Title: Jinvani Special issue on Karmsiddhant Visheshank 1984
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 6
________________ १६२ १६४ १६८ १६१ २०२ २०६ २२५ २२६ २२. ज्ञानयोग, भक्तियोग, कर्मयोग -डॉ. राममूर्ति त्रिपाठी २३. जैन-बौद्ध दर्शन में कर्मवाद -डॉ. भागचन्द्र जैन भास्कर २४. जैन, बौद्ध और गीता के दर्शन . में कर्म का स्वरूप -डॉ. सागरमल जैन २५. सांख्य दर्शन में कर्म -श्री धर्मचन्द जैन २६. मीमांसा-दर्शन में कर्म का स्वरूप -डॉ. के. एल. शर्मा २७. मसीही धर्म में कर्म की मान्यता-डॉ. ए. बी. शिवाजी २८. इस्लाम धर्म में कर्म का स्वरूप -डॉ. निजाम उद्दीन २६. पाश्चात्य दर्शन में क्रियासिद्धान्त -डॉ. के. एल. शर्मा ३०. जैन कर्म साहित्य का संक्षिप्त विवरण -श्री अगरचन्द नाहटा ३१. आधुनिक हिन्दी महाकाव्यों में कर्म एवं पुनर्जन्म की अवधारणा-डॉ. देवदत्त शर्मा द्वितीय खण्ड कर्म सिद्धान्त और सामाजिक चिन्तन ३२. वैयक्तिक एवं सामूहिक कर्म -पं. सुखलाल संघवी ३३. कर्म और कार्य-मर्यादा -पं. फूलचन्द सिद्धान्तशास्त्री ३४. कर्म-परिणाम की परम्परा -श्री केदारनाथ ३५. कर्मक्षय और प्रवृत्ति -श्री किशोरलाल मश्रवाला ३६. कर्त्तव्य-कर्म -स्वामी शरणानन्द ३७. कर्मविपाक और आत्म. स्वातन्त्र्य -बाल गंगाधर तिलक ३८. निष्काम कर्मयोग -महात्मा गांधी ३६. कर्म, विकर्म और अकर्म -प्राचार्य विनोबा भावे ४०. कर्म और कार्य-कारण सम्बन्ध -प्राचार्य रजनीश ४१. ध्यान और कर्मयोग -श्री जी. एस. नरवानी ४२. कर्मवाद और आधुनिक चिन्तन -डॉ. देवेन्द्रकुमार जैन ४३. कर्म का सामाजिक सन्दर्भ -डॉ. महावीर सरन जैन ४४. कर्म सिद्धान्त और समाजसंरचना -श्री रणजीतसिंह कूमट २३५-३०८ २३७ २४२ २४८ • २५८ २६५ २६८ २७३ २७६ २८५ २६४ (v) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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