Book Title: Jinabhashita 2004 06
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 22
________________ प्राकृतिक चिकित्सा है : स्वस्थ जीवन जीने की कला डॉ. वन्दना जैन प्राकृतिक चिकित्सा एक चिकित्सा पद्धति ही नहीं वरन् | करता है। तात्पर्य यह है कि प्राकृतिक चिकित्सा में रोगों से एक संपूर्ण जीवन दर्शन है व स्वस्थ जीवन जीने की कला है। | मुक्ति तथा स्वस्थ समाज के लिए आम आदमी को अपने प्राकृतिक चिकित्सा अलग है और प्राकृतिक जीवन अलग है | आहार-विहार, आचार-विचार एवं व्यवहार में परिवर्तन करके इसमें प्राकृतिक चिकित्सा तो डूबते को तिनके का सहारा है, अपने आपको स्वस्थ रखना सिखाया जाता है। सीधी, सरल एवं बहुत ही श्रेष्ठ चिकित्सा पद्धति है। पर वह सिर्फ बीमारों के स्वाभाविक सच्चाई यह है कि समस्त रोगों का कारण आहारलिये है पर प्राकृतिक जीवन दर्शन अलग है, वह सभी के लिये | विहार एवं विचार के खराब होने से शरीर में विजातीय पदार्थ है। तथा इसमें प्रकृति के समीप रहना सिखाया जाता है। क्योंकि | एवं वात, पित्त, त्रिदोष का एकत्रित एवं प्रकृपित होना है। प्राकृतिक चिकित्सा प्रकृति से ही उद्भूत हुई है। प्रकृति के पंच | प्रकृति द्वारा शरीर से विकार मुक्ति का सहज प्रयास ही रोग है। महाभूत तत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश) का | अतः तीव्र रोग शत्रु नहीं मित्र है, रोग हमें जगाने के लिए आते सम्यक प्रयोग करते हुए, प्रकृति के नियमों का पालन करने से | हैं कि हम अपनी खराब आदतों को सुधार लें। पर आधुनिक व्यक्ति सही अर्थों में स्वस्थ रहता है। चिकित्सा में दवाइयों द्वारा रोग को दवा दिया जाता है जिससे प्राकृतिक चिकित्सा सर्वाधिक प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति | तुरंत राहत (रिलीफ) मिल जाता है, किन्तु बाद में दवा हुआ है। जीवन के प्रारंभ व विकास के साथ ही प्राकतिक चिकित्सा | रोग घातक जीर्ण एवं चिरकालीन (क्रोनिक) के रुप में सामने का उद्भव एवं विकास हुआ। उनके प्रचलित लोकोक्तियों में आता है। ऐसी स्थिति में राहत शामत बन जाती है और रिलीफ आया है, जैसे- 'सौ दवा एक हवा', 'बिन पानी सब सून', ग्रीफ बन जाता है। औषधियों से स्वास्थ्य मिलता तो दवा निर्माण 'जल ही जीवन है', 'मिट्टी पानी धूप हवा' सब रोगों की एक | करने वाले, दवा लिखने वाले तथा दवा बेचने वाले कभी बीमार दवा, ये सब प्राकृतिक चिकित्सा की प्राचीनता को दर्शाती है। | न पड़ते । स्वास्थ्य पर भी पूंजीपतियों का एकाधिकार होता। पर प्राकृतिक चिकित्सा में पंचभूत तत्वों तथा आहार सुधार व ऐसा नहीं है। योगाभ्यास के द्वारा इलाज किया जाता है। इस पद्धति में आहार | योग भगाये रोग : प्राकृतिक चिकित्सा का एक प्रमुख को ही औषधि माना गया है। अतः अन्य किसी तरह की दवाइयों | भाग योग माना गया है। योग एक प्राचीन विद्या है। आधनिक का प्रयोग नहीं किया जाता है तथा 'रोगी का उपचार औषधालय | समय में योग एक बहुत स्वास्थ्य कारक के रुप में सामने आ में नहीं वरन् भोजनालय में होता है' इस युक्ति को चरितार्थ | रहा है, इसका उपयोग स्वास्थ्य की दृष्टि से वृहत पैमाने पर किया जाता है तथा द्वितीय क्रम में योगासन, प्राणायाम व उपचार | किया जाता है। क्योंकि आज पूरा विश्व आधुनिक दवाओं के जैसे मिट्टी, पुट्टी, नेतिकुंजल, एनिमा बस्ती तथा विभिन्न स्नानों टी नतिजल एनिमा बस्ती तथा विभिन्न स्नानों पार्श्व प्रभाव से त्रस्त हो चुका है। वह बिना दवा के तन, मन व आदि के द्वारा न सिर्फ रोगी को ही स्वस्थ किया जाता है वरन | आत्मिक स्तर पर स्वास्थ्य को पाना चाहता है। और योग समय अपने स्वास्थ्य को सदैव स्थिर बनाये रखने का प्रयास किया | की कसौटी पर बिल्कुल खरा उतर रहा है। जाता है। योग शब्द संस्कृत की 'युज' धातु से बना है। जिसका प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार हमारा शरीर ही दवाओं अर्थ होता है जोड़ना। अतः योग का शाब्दिक अर्थ हुआ जोड़ना, का कारखाना है, लीवर 500 प्रकार की दवाईयों को बनाता है | संयोग मिलाना अथवा संधान। योग द्वारा आत्मा परमात्मा का पेनक्रियाज, दर्जनों दवाइयों को पैदा करता है, इसीलिए इस | पारस्पारिक सधान होता है। योग के गुरु महायोगी म पारस्पारिक संधान होता है। योग के गरु महायोगी महर्षि पातंजलि पद्धति में बाहरी दवाओं के प्रयोग को हतोत्साहित किया जाता | है। जिस चीज से शरीर बना है वही पंचभूत तत्व मिलकर उसे ___ योग सूत्र में योग को परिभाषित करते हुए, 'योगश्चिन्त ठीक कर सकते हैं। जैसे हम अपने आसपास के वातावरण में वृत्ति निरोधः' कहा गया है। इसके अर्थ है कि चित्त की वृतियों स्वयं को सहज महसूस करते हैं ठीक वैसे ही हमारा शरीर भी | को चंचल होने से रोकना। 20 जून जिनभाषित 2004 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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