Book Title: Jinabhashita 2004 06
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 28
________________ बाल वार्ता साधु बनूँ कि शादी करूँ ? डॉ. सुरेन्द्र कुमार जैन एक बार एक व्यक्ति ने अपने मित्र से पूछा- 'मित्र मैं | मित्र ने फिर हाँ की मुद्रा में सिर हिलाया और बोला - समझ नहीं पा रहा हूँ कि मैं क्या करूँ, साधु बनूँ कि शादी | 'गुरूदेव, धर्म किसे कहते हैं? आपने कहा था-धर्म की शरण करूँ?' में .........)' वह मित्र कुछ सोचने लगा । मामला भावी जीवन का था | संत ने उत्तर दिया - जो वस्तु का स्वभाव है वही धर्म है अतः जल्दी उत्तर नहीं देना चाहता था । कभी साधु जीवन | - धम्मो वत्थु सहावो। अच्छा लगता , कभी वैवाहिक जीवन की रंगीनियों में वह खो मित्र ने कहा, सो तो ठीक है। पुनः अपने दिमाग पर जोर जाता । अचानक उसे जैसे कुछ याद आया हो, वह बोला - | देकर ( जैसे कुछ याद कर रहा हो) उन संत से पूछ बैठा - “मित्र, मैं तुम्हारे प्रश्र का उत्तर कुछ सोचकर दूंगा । चलो, | 'गरूदेव । आपने अपनी उम्र बतायी थी वह कितनी थी? क्या अभी मन्दिर चलते हैं। सुना है वहाँ कोई बड़े संत आये हैं।" | करूँ मुझे पता नहीं क्या हो जाता है ? इधर सुनता हूँ, उधर भूल दूसरे मित्र ने कहा- 'ठीक है। चलो, चलते हैं।' जाता हूँ। अबकी बार बता दीजिए फिर नहीं भूलूँगा।। वे दोनों मित्र जब मंदिर पहुंचे तो देखते हैं कि संत लकड़ी गुरूदेव ने सहज भाव से कहा - 'वत्स, 80 वर्ष ।' के आसन पर विराजमान हैं। चेहरे पर सौम्यता, होठों पर मुस्कान | मित्र यह सुनकर कुछ सोचने लगा फिर लगा कि वह कुछ और मस्तक की विशालता उनके महापुरुषत्व एवं तेजस्विता को ऐसा प्रयास कर रहा है कि जो सना है उसे कभी न भले। फिर प्रकट कर रही है। काया की कृशता को मानो उनकी तेजस्विता | बोल उठा- 'गरूदेव, आपने अपनी उम्र 90 वर्ष ही बतायी थी ने छिपा लिया है उम्र में न वार्धक्य है न युवकोचित जोश। आप ना?' चाहें तो उन्हे युवा भी मान सकते हैं किन्तु वृद्ध मानने को दिल 'नहीं वत्स, मैंने तो अपनी उम्र 80 वर्ष बतायी थी।' नहीं करता। दोनों मित्रों ने प्रणाम किया, जिसके उत्तर में उन गुरूदेव के चेहरे को वह मित्र पढ़ रहा था। उसे लगा कि संतश्री ने 'सद्धर्मवृद्धिरस्तु' कहकर आशीर्वाद स्वरूप हाथ उठा गुरूदेव के चेहरे पर अब भी सौम्य संतत्व साफ झलक रहा है, दिया । मानो वे पहली बार बता रहे हों कि उनकी उम्र 80 वर्ष है। जिन्हें देखकर उम्र जानने की उत्कण्ठा हो रही थी, ऐसे . अब दोनों मित्रों ने प्रणाम किया और चलने लगे। दरवाजे संत से मित्र ने पूछ ही लिया- 'गुरूदेव, इस समय आपकी उम्र | पर पहुँचे ही थे कि उस मित्र ने पलटकर उन संत से फिर पूछा कितनी है ?' -- गुरूदेव सही-सही बता दो कि आपकी उम्र कितनी है?' . प्रश्न जिस विनम्रता और जिज्ञासा से पूछा गया था उससे | संत ने पुनः सहजभाव से कहा - 'वत्स, 80 वर्ष।' भी अधिक विनम्रता से संत ने कहा - 'वत्स, 80 वर्ष।' मित्र आश्वस्त हो चुका था कि संत की यह सहजता बनावटी मित्र कुछ आश्वस्त हुआ और अपनी अन्य जिज्ञासाओं को | नहीं हैं बल्कि सहज ही है वह संत के चरणों में झुक गया और शान्त करने के लिए संत के और निकट आकर बैठ गया और | बोल उठा कि, 'संत न होते जगत में तो जल जाता संसार।' पूछा -'गुरुदेव संसार कैसा है ?' अब वह अपने साथी मित्र की ओर मुखातिव हुआ बोला गुरुदेव ने उत्तर दिया - "संसार असार है, इसमें रंचमात्र - 'मित्र मुझे तुम्हारे प्रश्न का उत्तर मिल गया । यदि तुम्हारे भी सुख नहीं है- या विधि संसार असारा या मैं सुख नाहीं परिणामों में इन संत के जैसी समता हो तो साधु बन जाओ, लगारा। किन्तु जो धर्म की शरण में चला जाता है उसके लिए | वरना शादी कर लो।' संसार भी सारभूत और सुख का कारण बन जाता है।" तो बच्चो हमें इस कहानी से यही सीख मिलती है कि मित्र ने परम सन्तोष भाव से हां की मुद्रा में सिर हिला यदि परिणामों । विचारों में समता /धैर्य रखोगे तो एक दिन तुम दिया। थोड़ी देर में जैसे कुछ याद कर रहा हो और याद नहीं | भी संत बनकर जगत के द्वारा पूजे जाओगे। साधु जीवन के आ रहा हो, इस भाव से उन सन्त से पूछा - 'गुरूदेव आपने विषय में हम पढ़ते भी हैं, 'समता सम्हारे थुति उचारें, बैर जो न अपनी उम्र कितनी बतायी थी? आपने उम्र बतायी तो थी किन्तु तहां धरै । मैं ही ठीक से सुन नहीं पाया। कृपया कर पुनः बता दीजिए? ऐसे संतों को हमारा शत-शत नमन । संत ने बिना विचलित हुए कहा - 'वत्स, 80 वर्ष।' 80 वर्ष की उम्र है मेरी। एल -65, न्यू इन्दिरा नगर, बुरहानपुर (म.प्र.) 26 जून जिनभाषित 2004 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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