________________ रजि नं. UP/HIN/29933/24/1/2001-TC डाक पंजीयन क्र.-म.प्र./भोपाल/588/2003-05 सम्यक-अनुप्रेक्षा महेन्द्र कुमार जैन बंजारों की इस महफिल में हम भी इक बंजारे, घूम-घूम कर लख चौरासी, नहीं अभी हम हारे। पुण्योदय से जिनकुल पाकर, कुछ सुयोग है पाया, दिव्य-देषणा सुन जिनवर की, मन हमरा हर्षाया // 1 // हस्तीवत स्नान रहा सब, नहीं चेतना जागी, मिथ्यातम में फसा रहा, और मोह नींद न भागी। राग-द्वेष और मोह वृत्ति से, वहुविध बंध किया है, सत्तर कोड़ा-कोड़ी सागर तक, अनुबंध किया है // 2 // गहन मित्रता अष्ट कर्म से, सतत् निभाता आया, पर जब वे सब उदय में आते, सो ही मन अकुलाया। फिर भी न यथार्थ को समझा, आर्त्त-रौद्र मन कीना, दोषा रोपड़ कर निमित्त पर, और बंध कर लीना // 3 // उपादान पर दृष्टि न रखकर, निज को है भरमाया, बार-बार मर-मर कर मैंने, यू ही जन्म गंवाया। भूतकाल में किये पाप जो, सो ही भविष्य में पाया, वर्तमान में भोग-भोग कर, मन यूं ही अकुलाया // 4 // क्रमश: 7, गुरु प्रतीक्षा रामानंद नगर, भोपाल स्वामी, प्रकाश एवं मुद्रक : रतनलाल बैनाड़ा द्वारा एकलव्य ऑफसेट सहकारी मुद्रणालय संस्था मर्यादित, जोन-1, महाराणा प्रताप नगर, भोपाल (म.प्र.) से मुद्रित एवं सर्वोदय जैन विद्यापीठ 1/205 प्रोफेसर कॉलोनी, आगरा-282002 (उ.प्र.) से प्रकाशित। Jain Education International For Private & Personal use