Book Title: Jinabhashita 2003 07
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 13
________________ पशु पक्षी, देवी देवता, स्त्री-पुरुष के चित्र अंकन भगवान् की । उपसंहार - गौतम बुद्ध ने अपने अंतिम उपदेश में "अप्प समशरण सभा का प्रतीक है और भी जैसे शेर, गाय का चित्रांकन, | दीपोभव" के सूत्र का व्याख्यान करते हुए कहा अपना दीपक बैर अभिमान को छोड़कर मैत्रीभाव स्थापित करने का संकेत देता | स्वयं बनो अर्थात् अपने सहारे चलो, दीपक आंगन में प्रकाश है। वैसे भी भारतीय लोक व्यवहार में मांगलिक अवसरों पर घर | फैलाता है, किसी को जलाता नहीं और न ही किसी को भयभीत में मेहमानों के प्रवेश करने पर प्रवेश द्वार पर मंगल कलश लेकर करता है बल्कि भय कराने वाले तम् अंधकार को दूर करता है। खड़े होकर आगवानी की जाती है, जो कि सम्मान सूचक है। यात्रा | वह हमारे जीवन में जलाने का नहीं बल्कि जिलाने का कार्य की सफलता का सूचक है। करता है। यदि इसके बाद भी मन में अंधकार और तन पर दुख धूप - धूप हवन के समय होम में प्रयोग की जाती है। यह बना रहता है और शक्ल में बदलाहट नहीं आती तो समझना पूजन विधान की समापन क्रिया में अधिकांश प्रयोग में लाई जाती दीपक का कोई दोष नहीं है। यह तो जीवन को परिवर्तित करने है। वैसे नित्य पूजा में भी धूप का प्रयोग होता है। धूप को अग्नि का माध्यम मात्र है। बंदनवार द्वार का पहरेदार बनकर हमें दिशा में समर्पित करने का अर्थ केवल इतना ही है कि धूप को प्रतीक का बोध कराता है। अहंकार न करने का संकेत देता है क्योंकि बनाकर अष्ट कर्मो का दाह करना है। क्योंकि जब तक कर्म हैं तब अहंकार पतन का कारण है। नम्र हो जाओ, जिससे अहंकार मद तक संसार है। जब तक कर्मों का बंधन है तब तक जन्म -मरण स्वयं गल जावेगा। स्वास्तिक स्वस्थ्य जीवन का आहार स्वाहस्त नहीं छूट सकता। जन्म-मरण से छूटने की प्रार्थना प्रभु के समक्ष क्रिया का द्योतक तत्व बनकर हमारे अनुष्ठानों के अनुपालन में धूप खेकर मंत्र उच्चारण के साथ की जाती है। सफलता को गतिशीलता प्रदान करता है। जयमाल, विजयमाल चंदन- भव सागर की भयानक दावानल का संताप दुखमय वातावरण बनाये हुये है। इस दुख से बचने के लिए चंदन ताप के पहनाता है, अष्ट प्रतिहार्य में से एक प्रतिहार्य का रुप दर्शाता है। समय शीतलता देने का संकेतक चिन्ह है। इसकी सुगंध से सभी श्रीफल श्रद्धा का प्रतीक बन सम्यग्दर्शन की प्रेरणा देता है। अक्षत प्रभावित हो जाते हैं। शीतलता सभी को भाती है चंदन इसलिए अक्षय सुख प्राप्ति का उपाय बताता है। हरिद्रा को मिटाने का संकेत चढ़ाते हैं कि हे प्रभु मुझमें भी चंदन जैसी शीतलता आ जावे। देता है। सरसों शब्द से यह ध्वनित होता है कि वर्षों का कार्य पल जिससे जीवन पवित्र सुगंध मय हो जावे । गुणों के कारण ही चंदन भर में पूर्ण होता है। भरा हुआ कलश-हरे भरे जीवन व मंगल की प्रसिद्धि है इसी प्रकार व्यक्ति की पूजा भी उनके गुणों से | जीवन यात्रा का प्रतीक है। धूप कर्मदाह की क्रिया का संकेत व्यक्तित्व के कारण होती है। चंदन की सुवास से प्रभावित हुए। करती है। चंदन संतप्त जीवन की तपन को शीतलता के रुप में बिना कोई रह ही नहीं सकता है। हिम के समान शीतल शांत गुणों बदलने का प्रतीक है। इस प्रकार अंत में यह कहना चाहूँगा कि को धारण कर उष्णता, क्रोधादि विकार भावों को छोड़ भद्र परिणामी प्रतीकों के द्वारा जीवन की विपरीत धारा को बदला जा सकता है। बन सकूँ। यही चंदन चढ़ाने का समर्पण करने का भाव है यही | सरलता और सहजता का अनुभव सहज ही प्राप्त किया जा सकता चंदन के शीतल गुणों से ध्वनित होता हैं। आचार्य श्री विद्यासागर के सुभाषित सम्यग्दृष्टि ( वीतराग सम्यग्दृष्टि) का भोग निर्जरा का कारण है ऐसा कहा गया है लेकिन ध्यान रखना भोग कभी निर्जरा का कारण नहीं हो सकता। यदि भोग निर्जरा का कारण हो जाये तो क्या त्याग बंध का कारण होगा? पथ पहले विचारों में बनते हैं तदनुरूप विचारों के पथ आचरण में आते हैं। एकांत से निमित्त को मुख्य मानकर उस की ओर ही देखने से उपादान में कमजोरी आती है। - जुलाई 2003 जिनभाषित 11 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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