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जयमाल- जयमाल विजय माल है। आपको अष्ट प्रातिहार्य | परमोधर्मः' यह जैन संस्कृति प्रासुक वस्तुओं से पूजा आराधना में देवमाला लिये पुष्पवृष्टि की मुद्रा में श्री जी के बाजू में देखने | की संस्कृति है। मिल सकते हैं। जो कि पुष्पवृष्टि का संकेत करते हैं जय उसी की। हरिद्रा- हरिद्रा दरिद्रता को मिटाने वाली पीले वर्ण की होती है, जो विजय को प्राप्त होता है प्रभुत्व गुण को पाने वाला ही | हल्दी है, जो कि मांगलिक कार्यों में अपना स्थान रखती है। हल्दी पुष्पवृष्टि के वैभव को प्राप्त कर सकता है। जिससे जीवन में सुगन्ध | की गाँठ जीवन की गाँठों परेशानियों के समापन की कामना लिए आ जाती है और अन्य लोग की सुगन्ध की गंध लेकर अपना | हुये है। पीला रंग मांगलिकता का सूचक है जिसमें शांति की छाया जीवन सफल बना सकते हैं। माल का अर्थ वैभव होता है जहाँ समाहित है। हरिद्रा हरिप्रभु के रंग में रंगने का संकेत दर्शाती है। भव का समापन होता हैं। जन्म मरण छूट कर शरीरातीत हो जाते पीला रंग भारतीय रंगों में मांगलिक माना जाता है। धार्मिक अनुष्ठानों हैं। वह परम सिद्ध शिला मिल जाती है। जयमाल को गुणगानों की में रंगा हुआ पंचरंगा धागा हाथ में रक्षासूत्र के रुप में बांधा जाता माला भी कह सकते हैं।
है तब पीला रंग अवश्य अपना रंग रुप दर्शाता है। पहले एक श्रीफल- श्री का अर्थ मोक्ष रुपी लक्ष्मी, संयम रुपी फल | जमाना था जब रसोईघर में पीला रंग अवश्य किया जाता था। वैसे श्रीफल, पानीफल के नाम से भी जाना जाता है। इसे नारियल भी | भी रसोईघर की शोभा का कारण हरिद्रा हल्दी ही है। जीवन के कहते हैं और श्रद्धा फल भी कहते हैं। जो पानी को तेल रुप में | रोगों की समाप्ति का संकेत बिन्दु हरिद्रा है। अर्थात् तत्व के रुप में परिवर्तित कर दे वही सत्य (रियल) है। सरसों - जीवन का रस भंग न हो इसलिए धार्मिक अनुष्ठानों बाकी सब नारियल हैं। श्रद्धा से प्रभु के गुरु के समक्ष चढ़ा दिया की निर्विघ्नता के लिए पीले सरसों से दिशाओं को मंत्र पढ़कर तो वह फल श्रद्धाफल बन जाता है। श्रद्धा का अर्थ सम्यग्दर्शन से बांधा जाता है। यह धान्य भी धार्मिक अनुष्ठानों में अपना स्थान पा जुड़ा हुआ है। श्रीफल बाहर में कठोर और अंदर से मृदु होता है। गये। सरसों का अर्थ रसों का संग्रह अर्थात् नीरसता का समापन। यह सज्जनों को, यही उपदेश देता है कि वह अंदर से मृदु और | मंत्रवादी की मुट्ठी में पीले सरसों के आ जाने से मंत्र की शक्ति बाहर से कठोर बनें। मृदुता रखना ही श्रीफल का संकेत है। निमित्त पाकर बढ़ जाती है। ऐसा जान पड़ता है मानो सौ रोगों की श्रीफल हिलाने से बजता है अर्थ यह हुआ उसने गुणों को प्राप्त कर | एक दवा हो । जहाँ सरसों की फसल हो वहाँ ही हवा शुद्ध होती लिया है तथा अवगुणों को सुखा दिया है, पानी सुखा कण-कण है। सरसों को धान्य का सतगुरु भी कहा जा सकता है। ऐसा सरसों को तेलमय बना देता है, परिपक्वता आ जाने पर वह बोलने लगता | शब्द से ही ध्वनित होता है। सरसों जहाँ है वहाँ वर्षों की आवश्यकता है, बजने लगता है इससे यह सिद्ध हुआ कि श्रीफल का बजना नहीं, मिनटों में कार्य सम्पन्न होता है। दिव्य ध्वनि का प्रतीक है।
कलश- कलश भारतीय संस्कृति में मांगलिक कार्यों में अक्षत - अक्षत जिसका क्षय न हो, कभी नाश को प्राप्त | मंगल, शुभ और पवित्रता का सूचक है। मंगल कार्य को प्रदर्शित न हो जन्म मरण से परे जिसका जीवन है जो बीज जमीन में बपन | करने के लिए कलश प्रतीक के रुप में सुहागवती माताएँ एवं करने (बोने) के बाद भी अंकुरित नहीं होता अक्षत - चांवल के | कन्याएँ अपने सिर पर धारण करती हैं। मंगल घट यात्रा में कलशों बदले अक्षय पद की कामना है जो पद एक बार मिलने के बाद | | में जल धारण कर वाह्य शुद्धि की जाती है जो कि एक महत्वपूर्ण समाप्त न हो जिसके सामने दुनियाँ के सारे पद बौने (छोटे) पड़ क्रिया मानी जाती है। जायें, ऐसा पद सिद्ध परमात्मा का ही है। यह है भारतीय जैन भरे कलशों से जीवन हरा भरा बने इसका संकेत मिलता संस्कृति जो चावल के बदले में मोक्षपद की अभिलाषा रखता है | है। कलश के भीतर शुद्ध छना जल, पान की पत्ती, हल्दी की गाँठ, चावल अक्षत, उज्ज्वलता, धवलता, निस्कलंकता का द्योतक है। सुपारी डाली जाती है, जो सुख-समृद्धि का सूचक माना जाता है। जब तक संसार न छूटे तब तक जिन धर्म पंचपरमेष्ठी की शरण न | कलश के मुख पर पंचरंगी धागा बाँधना पाँच पापों से बचकर छूटे। हमारी बंद मुट्ठी में चावल हमें मंदिर जाने की स्मृति दिलाते | जीवन जीने की प्रेरणा देता है और कलश के उदर पर किया हैं। अखण्ड अक्षत अखण्डता को प्राप्त करने की भावना से अर्पित अंकन भारतीय दर्शन का, चारित्र का, नैतिकता का दिग्दर्शन किये जाते हैं। जिसका खण्डन न किया जा सके अक्षत सूखा कराता है, जैसे स्वास्तिक चारों गतियों से बचने का उपदेश देता प्रासुक द्रव्य है। जहाँ हिंसा को जगह नहीं क्योंकि 'अहिंसा | है, सिद्ध शिला का दर्शन, आत्मदर्शन करने का संकेत देता है। 10 जुलाई 2003 जिनभाषित -
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