Book Title: Jinabhashita 2002 06
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 15
________________ आचार्यश्री ज्ञानसागरजी के विपुल साहित्य पर हुए एवं हो रहे शोधकार्य डॉ. शीतलचन्द्र जैन आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज के द्वारा सृजित संस्कृत । भवन, गढ़ाफाटक, जबलपुर - 482002 (म.प्र.)) ने डॉ. हरिसिंह एवं राष्ट्रभाषा के विपुल वाङ्मय को पाकर साहित्य मनीषियों के गौर विश्वविद्यालय, सागर के संस्कृत विभागान्तर्गत प्रवाचिका डॉ. हृदय में अपूर्व पुलकन हो उठी। प्रौढ़ भाषा में लिखित होकर भी कुसुम भूरिया के निर्देशन में सन् 1986 में "संस्कृत जैन चम्पू जनसामान्य तक को हृदयंगम करा देने वाली विशिष्ट शैली में काव्यः एक अध्ययन" विषय के अन्तर्गत आचार्य ज्ञानसागर जी आपके इस साहित्य पर अनेक विश्वविद्यालयों के अन्तर्गत शोधकार्य के द्वारा लिखित 'दयोदय चम्पू' काव्य को भी सम्मिलित किया हुए एवं हो रहे हैं, जिनमें से कुछ निम्न हैं है। यह प्रबन्ध अद्यावधि अप्रकाशित है। 1. डॉ. किरण टण्डन, प्राध्यापक-संस्कृत विभाग, कुमायूँ 5. डॉ. नरेन्द्र सिंह राजपूत (प्राध्यापक-शासकीय उच्चतर विश्वविद्यालय, नैनीताल, उत्तरांचल ने विश्वविद्यालय के संस्कृत | माध्यमिक विद्यालय, पटेरा (दमोह) म.प्र.) ने डॉ. हरिसिंह गौर विभागाध्यक्ष डॉ. हरिनारायण दीक्षित के निर्देशन में 'मुनि श्री विश्वविद्यालय, सागर म.प्र. के अन्तर्गत डॉ. भागचन्द्र जैन 'भागेन्दु' ज्ञानसागर का व्यक्तित्व एवं उनके संस्कृतकाव्य ग्रंथों का साहित्यिक (पूर्व प्राध्यापक-संस्कृत विभाग 28, सरोज सदन, सरस्वती कालोनी मूल्याकंन' नाम से पी.एच.डी. का शोध कार्य सन्1978 में पूर्ण दमोह- 470661 म.प्र.) के निर्देशन में "संस्कृत काव्य के किया था। उक्त शोध प्रबंध 'महाकवि ज्ञानसागर के काव्यः एक | विकास में बीसवीं शताब्दी के जैन मनीषियों का योगदान" विषय अध्ययन' के नाम से ईस्टर्न बुक लिंकर्स, 5825, न्यू चन्द्रावल, | पर पी.एच-डी. हेतु शोधकार्य किया है। इस शोध प्रबन्ध में जवाहर नगर, दिल्ली- 110007 से प्रकाशित हुआ है। यह शोध आचार्य ज्ञानसागरजी द्वारा आलेखित संस्कृत वाङ्मय पर शोधात्मक प्रबन्ध आचार्य ज्ञानसागर वागर्थ विमर्श केन्द्र, सेठ जी की नसियां, विमर्श किया गया है। यह शोध प्रबन्ध श्री भगवान् ऋषभदेव ब्यावर-305 901 (अजमेर) राज. एवं भगवान् ऋषभदेव | ग्रन्थमाला, सांगानेर (जयपुर) राज. से प्रकाशित हो चुका है। ग्रन्थमाला, श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र मंदिर संघीजी, सांगानेर 6. डॉ. दयानन्द ओझा ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, 303 902 (जयपुर) राजस्थान से संयुक्त रूप में पुनर्मुद्रित हो वाराणसी (उ.प्र.) के अन्तर्गत डॉ. जे.एस.एल. त्रिपाठी प्राध्यापक चुका है। संस्कृत विभाग, वाराणसी एवं डॉ. सागरमल जैन, निदेशक-पार्श्वनाथ 2. डॉ. कैलाशपति पाण्डेय ने डॉ. दशरथ द्विवेदी प्राध्यापक- | | विद्यापीठ वाराणसी के मार्गदर्शन में "जयोदय महाकाव्य का संस्कृत विभाग, गोरखपुर विश्वविद्यालय, उत्तरप्रदेश के निर्देशन में | आलोचनात्मक अध्ययन" विषय पर पीएच.डी. उपाधि प्राप्त की, "जयोदय महाकाव्य का समीक्षात्मक अध्ययन"विषय पर पी.एच- | यह अप्रकाशित है। डी. शोध उपाधि 1981 में प्राप्त की। यह शोध प्रबन्ध अब भगवान् । 7. कुमायूँ विश्वविद्यालय नैनाताल (उत्तरांचल) के संस्कृतऋषभदेव ग्रन्थमाला, श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र मंदिर संघीजी, | विभागाध्यक्ष डॉ. हरिनारायण दीक्षित के मार्गदर्शन में वीना वर्मा ने सांगानेर 303902 (जयपुर) राज. से प्रकाशित एवं उपलब्ध है। | "समुद्रदत्त चरित्र का समीक्षात्मक अध्ययन" विषय पर लघु 3. डॉ. आराधना जैन (मील रोड, हितकारिणी धर्मशाला, | शोधप्रबन्ध आलेखित किया। यह अद्यावधि अप्रकाशित है। के पास गंजबासौदा- 464221 (विदिशा) मध्यप्रदेश ने बरकतउल्ला 8. लीला बोहरा ने कुमाएँ विश्वविद्यालय, नैनीताल विश्वविद्यालय, भोपाल के प्राकृत एवं तुलनात्मक विभाग के | (उत्तरांचल) के संस्कृत विभाग की प्राध्यापिका डॉ. किरण टण्डन पूर्वप्राध्यापक डॉ. रतनचन्द्र जैन (137, आराधना नगर, कोटरा | के कुशल मार्गदर्शन में "महाकवि ज्ञानसागर प्रणीत वीरोदय सुल्तानाबाद, भोपाल-462003 (म.प्र.) फोन 0755-776666) महाकव्य का समग्र अध्ययन" विषय पर सन् 1987 में पीएच.डी. के निर्देशन में "जयोदय महाकाव्यः एक अनुशीलन "विषय पर | का शोध प्रबंध लिखकर उपाधि प्राप्त की। पी.एच-डी. की शोध उपाधि प्राप्त की। उक्त शोधप्रबन्ध""जयोदय | १. डॉ. अजितकुमार जैन, प्राध्यापक-संस्कृत विभागप्रकाशन का शैली वैज्ञानिक अनुशीलन" नाम से मुनिसंघ वैय्यावृत्य | के.ए. (पी.जी.) कॉलेज, कासगंज उ.प्र. के द्वारा डॉ. वी.आर. समिति, स्टेशन रोड़, गंजबासौदा (विदिशा) से प्रकाशित हुआ है। | अम्बेडकर विश्वविद्यालय, आगरा (उ.प्र.) के अन्तर्गत "जैनाचार्य भगवान् ऋषभदेव ग्रन्थमाला, श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र मंदिर | महाकवि ज्ञानसागर प्रणीत संस्कृत साहित्य की दार्शनिक मीमांसा" संघीजी, सांगानेर- 303902 (जयपुर) राज. से पुनर्मुद्रित होकर | विषय पर डी.लिट. हेतु शोध प्रबन्ध कार्य जारी है। उपलब्ध है। 10. महाराजा स्वशासी महाविद्यालय, छतरपुर (म.प्र.) ४. डॉ. शिवाश्रमण (धर्मपत्नी श्री सुभाषचन्द्र जैन, भव्य | के सहा. प्राध्यापक बहादुर सिंह परमार के मार्गदर्शन में श्रीमती -जून 2002 जिनभाषित 13 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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