Book Title: Jinabhashita 2002 06
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 34
________________ ग्रन्थ की इन पंक्तियों को अपने जीवन में चरितार्थ किया। संस्कार किया गया। संपूर्ण विधि-विधान संधान्य ब्र. पंकज, सागर श्रीमति बसंती बाई जैन ने जो स्व. श्री गोपीलाल जी जैन की | ने संपन्न कराये। धर्मपत्नी है। असाध्य रोग से पीड़ित होने के बाद जब उसका कोई ब्र. पंकज निदान न हो सका तब अपने जीवन के अंतिम समय में आपकी | सागर (म.प्र.) में सम्यग्ज्ञान शिक्षण शिविर सम्पन्न भावना समाधीपूर्वक मरण करने की रही। यह पुण्योदय ही था कि सागर । प्रज्ञाश्रमण 108 आचार्य श्री विरागसागर जी महाराज यहाँ मोराजी में परमपूज्य प्रज्ञाश्रमण श्री विरागसागर जी ससंघ के चतुर्विध संघ के सान्निध्य में 9.5.02 से 15.6.02 तक आयोजित विराजमान थे। आपकी भावना के अनुरूप परिजनों ने जब आचार्य ग्रीष्मकालीन शिक्षण शिविर श्रुतपंचमी पर विभिन्न समारोहों के श्री से माँ की समाधि हेतु निवेदन किया तब अपनी वात्सल्यपूर्ण साथ सम्पन्न हुआ। दृष्टि करते हुए आपने तुरंत उन्हें अपनी शरण में लाने का आदेश सम्यग्ज्ञान शिक्षण शिविर में प्रातः 7 से 8 बजे तक दिया। तत्त्वार्थराजवार्तिक का शिक्षण कार्य शिविर के कुलपति पं. दयाचंद तब आपको परिजन पू. आचार्य श्री के पास लेकर आये।। जी साहित्याचार्य एवं उपकुलपति पं. मोतीलाल जी व्याकरणाचार्य चैतन्य अवस्था में श्रीमती बसंतीबाई जैन ने आचार्य श्री को द्वारा कराया जाता था। प्रातः 8 से 9.30 तक भक्तिकाव्य भक्ताम्बर 'नमोऽस्तु' करते हुए श्रीफल चढ़ाकर अपनी समाधि हेतु प्रार्थना जी पर पू. आचार्य विरागसागर जी महाराज द्वारा सरल, सरस की, जिसे स्वीकार करते हुए आचार्य श्री ने अपना आशीर्वाद शैली में प्रवचन दिये जाते थे। आहार चर्चा, शंका समाधान के प्रदान किया एवं घर परिग्रह आदि का त्याग कराते हुए दसमी पश्चात् दोपहर में 3 से 4 बजे तक आलाप पद्धति एवं 4 से 5 बजे प्रतिमा के व्रत देकर समाधि हेतु आशीर्वाद प्रदान किया। रात्री में तक सम्यग्दर्शन (आचार्य विरागसागर जी द्वारा लिखित शोधालेख) स्वास्थ्य अधिक गिर जाने पर सभी परिजनों के अनेकों अनुरोध का वाचन होता था। सायंकाल गुरुभक्ति संपन्न होने के बाद रात्रि करने पर माँ जी की भावना के अनुरूप आचार्य श्री ने आपको 7 से 8 बजे तक संघस्थ ब्र. पंकज द्वारा छहढाला एवं संघस्थ ब्र. क्षुल्लिका दीक्षा देते हुए पिच्छी एवं कमण्डल प्रदान किया। क्षुल्लिका | दीदी पिंकी, नीतू द्वारा बच्चों के लिए बाल विज्ञान भाग एक एवं दो विनिर्गता श्री माताजी का नामकरण किया गया। दीक्षा के इस की कक्षाएं ली जाती थी। दुर्लभ दृश्य को देखते हुए सभी की आँखों में प्रक्षलता के आँसू विद्यावयोवृद्ध मनीषी पं. नाथूराम जी डोंगरीय थे। नामकरण किये जाते ही सभी ने जयकारा लगाते हुए हर्ष प्रगट कर इस दुर्लभ सल्लेखना की अनुमोदना की। सम्मानित ज्ञात है कि लगभग 68 वर्ष की उम्र को प्राप्त बसंती बाई सुप्रसिद्ध अतिशय क्षेत्र श्री महावीर जी में महावीर जयंती जैन (स्व. श्री गोपीलाल जैन) सुभाषनगर, शास्त्री वार्ड की निवासी के सार्वजनिक मेला समारोह के अवसर पर दि. 27.4.2002 को है। आपका पूरा जीवनकाल धर्म-साधना से युक्त रहा है। आप समयसार वैभावादि कृतियों तथा जैन धर्म : विश्वधर्म' जैसे प्रभावक लगातार व्रत नियमों का पालन करते हुए समाधि की कामना ग्रंथों के लेखक श्री पं. नाथूराम जी डोंगरीय, इंदौर को उनकी करती थी। आपके परिवार में तीन पुत्र एवं चार पुत्रियाँ हैं जो सभी सद्यः लिखित कृति 'समीचीन सर्वधर्म सोपान' के उपलक्ष्य में श्री के सभी माँ द्वारा दिये गये धार्मिक संस्कारों से संस्कारित है। जैन विद्या संस्थान, महावीर जी द्वारा प्रदत्त उसके संयोजक डॉ. प.पू. आचार्य विरागसागर जी महाराज द्वारा सल्लेखना व्रत कमलाचन्द जी सोगानी एवं क्षेत्र कमेटी के अध्यक्ष तथा समस्त दिये जाते हैं चतुर्विध संघ उनकी यथायोग्य वैय्यावृत्ति कर रहा है। पदाधिकारियो द्वारा तिलक लगाकर मुक्ताहार, शाल, प्रशस्ति-पत्र अनेकों लोग वैराग्य के इस दृश्य को देखकर यह भावना करते हैं । एवं नगद राशि भेंट कर सम्मानित किया गया। कि उनके जीवन में भी यह मृत्यु-महोत्सव प्राप्त हो। परमपूज्य मुनिराज १०८ श्री क्षमासागर जी महाराज के दिनाँक १०.६.२००२ मंगलवार को पूर्व चैतन्य अवस्था सान्निध्य एवं हजारों की संख्या में उपस्थित जनता के समक्ष यह में समाधिपाठ सुनते हुए रात्री 9.30 पर आपका स्वर्गवास हुआ। पुरस्कार ब्र. पूर्णचंद रिद्धिलता लुहाड़िया के नाम से प्रस्तुत किया प्रातः 11 को पूर्ण विधि-विधान के साथ जुलूस के रूप में अंतिम | गया। सुरेन्द्र कुमार जैन अर्थ और परमार्थ की दृष्टि का अन्तर तो देखिए ! वही भरत प्रभु आदिनाथ के चरणों में रत्न चढ़ाता है और वही भरत छोटे भैया बाहुबली के ऊपर चक्ररत्न चलाता है। मन्दिर और मूर्तियाँ हमारी आस्था-निष्ठा के केन्द्र हैं, जहाँ हम अपनी भक्ति-भावनाओं को प्रदर्शित कर सकते हैं। 'सागर बूंद समाय' से साभार 32 जून 2002 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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