Book Title: Jina Vachan
Author(s): Ramanlal C Shah
Publisher: Mumbai Jain Yuvak Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 195
________________ । इमं च मे अस्थि इमं च नत्थि इमं च मे किच्च इमं अकिच्चं । तं एवमेवं लालप्पमाणं हरा हरन्ति त्ति कहं पमाओ ।। While a man keeps on prattling, 'this is mine, this is not mine; I have done this; I have not done this', -- the robbers (in the form of day and night) keep robbing him. How can one then be careless ? 'यह मेरा है और यह मेरा नहीं; यह मैंने किया है और यह मैंने नहीं किया ।' –इस प्रकार वृथा बकवास करते हुए मनुष्य को चोर (दिन और रात के रूप में) लूट रहे हैं । फिर प्रमाद क्यों किया जाये ? 'मा माछ, ॥ भाई नथी; मा में युं छे, ॥ में કર્યું નથી.”—આ પ્રમાણે બડબડાટ કર્યા કરતા મનુષ્યને ચોરો (દિવસ અને રાત્રિરૂપી) લૂંટી રહ્યા છે. તો પછી શા માટે પ્રમાદ કરવો ? 182 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218