Book Title: Jin Vani
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 13
________________ लोक का आकार क्या है ? एक के पीछे एक, सात पुरुष दोनों पैर फैलाकर, दोनों हाथ कमर पर दोनों तरफ रखकर खड़े होने पर जैसा आकार बनता है वह ही लोक का आकार है।14 रज्जु ऊंचे, 7 रज्जु मोटे इस लोक के नीचे से ऊपर क्रमशः तीन भाग हैं - अधोलोक (7 रज्जु ऊंचा), मध्यलोक + ऊर्ध्वलोक (कुल 7 रज्जु ऊंचे) 1. अधोलोकः सुमेरु पर्वत की जड़ से लगी पहली पृथ्वी के तीन भाग हैं। i. खरभागः इस में भवनवासी और व्यंतर देवों का वास है, ii. पंकभागः इस में असुरकुमार जाति के भवनवासी व राक्षस जाति के व्यंतर देव रहते हैं, iii. अब्बहुल भागः इस में प्रथम नर्क है। इस के नीचे नीचे दूसरी से सातवीं तक छह पृथ्वियाँ और हैं जिन में नारकी जीव रहते हैं, तथा सातवीं के नीचे का आयतन निगोदिया जीवों से भरा है, जिसे 'कलकला' कहते हैं (यह पृथ्वी नहीं है)। 2. मध्यलोकः इसकी लम्बाई-चौड़ाई एक-एक रज्जु और ऊँचाई मात्र 1लाख 40 योजन अर्थात् सुमेरु पर्वत के बराबर है। इस के मध्य में एक लाख योजन व्यास वाला गोलाकार जम्बूद्वीप है, जिस के केंद्र में सुमेरुपर्वत है। इस द्वीप को चूड़ी आकार लवण समुद्र घेरे हुए है,व लवण समुद्र को चूड़ी आकार का धातकी द्वीप; इस क्रम से कालोदधि समद्र, पष्कर द्वीप आदि एक-दसरे को घेरे हए दगने-दगने माप के असंख्यात द्वीप व समद्र मध्यलोक में हैं।आठवां द्वीप नन्दीश्वर द्वीप और अंत में स्वयम्भुरमण द्वीप व स्वयम्भुरमण समुद्र हैं| 5 भरत, 5 ऐरावत व 32 विदेह क्षेत्र, सुमेरु सहित पांच मेरु पर्वत, भोगभूमियां आदि जम्बू, धातकी व आधे पुष्कर द्वीप में स्थित हैं। मनुष्य गति के समस्त जीव मात्र 45 लाख योजन विस्तृत इन ढाई द्वीपों में ही स्थान पाते हैं| तिर्यंच गति के जीव समूचे मध्यलोक में पाए जाते हैं। 3. ऊर्ध्वलोकः सुमेरु पर्वत से उपर 6 रज्जु ऊँचाई पर्यंत सोलह स्वर्गों के विमानों में असंख्यात कल्पवासी देवदेवियाँ रहती हैं। सातवें रज्जु की ऊँचाई में नौ ग्रैवेयक, उनके उपर नौ अनुदिश और उनसे भी उपर पाँच अनुत्तर विमानों में कल्पातीत देवों के विमान हैं। सर्वार्थसिद्धि नामा अनुत्तर विमान से बारह योजन ऊपर एक रज्जु चौड़ी,7 रज्जु लम्बी आठ योजन ऊंची ईषत्प्राग्भार नामक आठवीं (अष्टम) पृथ्वी के बीचों बीच मनुष्य क्षेत्र के सामान 45 लाख योजन व्यास वाली सिद्ध शिला है जिस के ऊपर अनंतानंत सिद्ध भगवान पद्मासन या खडगासन मुद्रा में तनुवात-वलय से शिर लगाए निराकुल, अनंत ज्ञाता-दृष्टा बने अनंत सुख भोग रहे हैं। 13

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