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जल चढ़ाते समय : - हे प्रभु! आपने जन्म, जरा एवं मरण समाप्त कर दिया है और संसार के सभी कष्टों से मुक्ति पायी है। अतः आप शीतल सागर हो एवं निर्मल ज्योति हो। मुझे भी संसार में बार-बार न आना पड़े अतः जन्मजरा-मृत्यु विनाश हेतु मैं आपको जल चढ़ाता हूँ।
चन्दन चढ़ाते समय : - हे प्रभु! संसार के सभी प्राणी तरह-तरह के कष्टों से दुःखी हैं। आपने इन सबको समूल नष्ट कर दिया है। मेरा भी चिन्ताओं का ताप और इच्छा रूपी दाह समाप्त हो जाय। इसी भावना को लेकर आप के समक्ष आया हूँ और दाह विनाशक चन्दन लाया हूँ कि चन्दन चढ़ाने से मेरा भी संसार का दाह और ताप समाप्त हो
जाए।
अक्षत चढ़ाते समय :- - हे प्रभु! आपने संसार की सब व्याकुलताएँ एवं मोह को नष्ट कर अक्षय पद प्राप्त किया है। मुझे भी अक्षय पद प्राप्त हो अतः मैं आपको समर्पण करने 'अक्षत' लाया हूँ। मैं निवेदन करता हूँ जिस तरह रागरूपी छिलका चावल से अलग हो गया है और यह दुबारा अंकुरित नहीं हो सकता है, अर्थात् इसकी आत्मा को अक्षय पद की प्राप्ति हो गई है। उसी प्रकार मेरी आत्मा से कर्मों का भार क्षय हो जाए और मुझे भी अक्षय पद प्राप्त हो जाए। इसी भावना से मैं अक्षत समर्पित कर रहा हूँ।
पुष्प चढ़ाते समय : - हे काम विजयी प्रभु! आपने संसारी आकर्षणों पर विजय प्राप्त कर ली है, अर्थात् कामादिक सांसारिकता को जीत लिया है। जिस तरह पुष्प पर आकर्षण होता है और आकर्षण से तितली और भोरे उस पर बैठकर अपनी जान गँवाते हैं । उसी प्रकार मैं काम-वासना की ओर आकर्षित होकर दुःखी हूँ। अतः काम-बाणों के विनाशन हेतु मैं आपको पुष्प अर्पित करता हूँ कि मैं भी आपकी तरह इसको जीत सकूँ और मोक्षमार्ग पर बढ़ सकूँ।
नैवेद्य चढ़ाते समय :- हे क्षुधा विजयी ! आपने भूख के रोग को समाप्त कर दिया है, भूख को शांत कर लिया है| मैं भी इस क्षुधा रोग से पीड़ित हूँ। अनादिकाल से लगे इस क्षुधारोग को नष्ट करने की इच्छा से यह क्षुधा निवारक सुन्दर नैवेद्य आपको समर्पित करता हूँ, मेरा क्षुधा रोग सदा के लिए शांत हो जाये।
दीप चढ़ाते समय :- - हे प्रभु! आपने अपने आंतरिक अज्ञान मोह अंधकार का नाश कर दिया है। अतः आप अतुल तेजयुक्त हो गए हैं। यह प्रकाश मुझे भी प्राप्त हो, ताकि मैं अपने आपको जान सकूँ, मोह अंधकार का नाश कर सकूँ। अतः मैं लौकिक उजाला करने का प्रतीक यह दीपक आपके समक्ष समर्पित कर रहा हूँ कि मुझे भी मुक्ति पथ मिले एवं मोह अंधकार का नाश हो।
धूप चढ़ाते समय :- हे प्रभु! आपने कर्म शत्रुओं को अपने तप के द्वारा नष्ट कर दिया है। मैं आपकी शरण आया हूँ कि मेरे कर्म कलंक जल जायें। अत: धूप चढ़ाने आया हूँ कि मेरे भी आठों कर्म भक्ति-धूप की ज्वाला से नष्ट हो जायें।
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