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जाप चालू किया तो पांच बजे एक अपरिचित भाई आते हैं और परेशानी का कारण पूछते हैं। मैंने सब कुछ उन्हें बता दिया। उन्होनें कहा कि मुझे भी किसी अदृश्य शक्ति से प्रेरित किया गया था, सो मैं आपके पास आया हूँ। मैं कोई डोक्टर तो नहीं हूँ परन्तु आप एक मुट्ठी नमक फाक जांय और घूंट भर पानी से पेट में उतार दें। पित्त आदि दोषों का निदान हो जाये तो आपको शान्ति मिल जायगी । मरता क्या नहीं करता। मैंने शीघ्र नमक लाकर फाका । बड़ी मुश्किल से गले से नीचे उतारा, यद्यपि जीव बहुत घबराया। परन्तु घड़ी आधा से पित्त पड़े और बीमारी गायब हो गई। दवा बताने वाले को प्ररित करने वाले भी नवकार मंत्र के अधिष्ठायक देव ही थे एसा विश्वास स्मृति में दृढ़ हुआ। बीमारी भी नवकार मंत्र के जाप से नष्ट हो गई।
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हम दो मुनि समेत शिखरजी की यात्रा से वापिस लौट रहे थे। बिहार में पटना से सासाराम का रास्ता संकरा था। मोटरों का आना जाना भी बहुत होता था। इसलिये दूसरे मार्ग की तपास की तो दूसरा मार्ग गंगा के ऊपर नावों को पुल पर से पार करके अन्य तरफ से वाराणसी जाता था। सब से बड़ी समस्या रिक्षे की थी। दो आदमी साथ में। एक रिक्षा चलाने वाला और दूसरा जैन था। गंगा पार के आगे एक रोड़ पर ही महात्मा का आश्रम समझकर स्वीकृति लेकर रूके । साथी आदमियों के रसोई का तैयारी की। महात्मा के वेश में वह ठग ही था। फर्लांग दो फलाँग पर दो तीन गाँव रोड़ से दिखाई दे रहे थे। उस वेशधारी महात्मा ने आस पास गाँवो से १५-२० शठों को लाकर रिक्षा को घेर लिया और लूटना ही चाहते थे। रिक्षा चालकों को भी थप्पड़ मारकर भगा दिया। समझाने की कोशिश भी व्यर्थ थी। पास में विद्यालय था उसे भी बन्ध कर दिया और बच्चों को छुट्टी दे दी। जैसे तैसे
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गूंदा हुआ आटा बन्द करके सामान रिक्षे में रखकर जयन्तीलाल श्रावक भाई ने रिक्षा रोड़ पर चढ़ा दिया था। उन आदमियों ने सड़क पर पूरी घेराबन्धी कर ली। मोटर भी खड़ी नहीं रहती थी। मैंने मन में संकल्प किया कि इस परिस्थिति से मुक्त होने पर १२ ॥ हजार नवकार मंत्र का जाप करूँगा और नवकार मंत्र का जाप मन में चालू किया। जैसे कहा है 'दुःख में स्मरण सब करे..." एक व्यक्ति बस सर्विस को खड़ी कर के उसमें से उतरा और बीच में आकर पूछा क्यों खड़े हो? उन व्यक्तियों ने उसे डाकटर कहा। तो मैंने कहा, 'डाकटर साहब, हम जैन साधु पैदल विहार करते हैं। आपके इस विहार भूमि पर पवित्र तीर्थों का यात्रा को आये हैं। यह रिक्षा एवम् सामान का प्रबन्ध समाज ने रास्ते की सुविधा के लिए दिया है। ये भाई हमारी बात समझते नहीं और मिथ्या दोषारोपण कर रहे हैं। डाक्टर ने सत्तावाही आवाज में कहा, 'आप यहाँ से चले जाओ। मैं उन्हे समझा दूँगा।” मैंने कहा आप साथ चलें। उसने इशारा किया कि चले जाइये।
जयन्तीलाल श्रावक ने आगे से रिक्षा हाथ से पकड़ कर उसी क्षण आगे बढ़ा दिया। हम दोनों मुनियों ने भी रिक्षा के पीछे तीव्र गति से कदम उठाये।
बारह का प्रायः समय था। थके हुए होने पर भी चार मील का विहार कर सुरक्षित स्थान पर एक सनातनी मंदिर में एक जनसघी भाई की मदद से स्थान मिला। पीछे वह डाक्टर भी हमारे पास आया और उसने बताया कि मुझे अन्दर से प्रेरणा मिली तो मैं वहाँ उतरा था और आप बच गये। वरना आपको ये लोग लूटना चाहते थे। स्मृति में नवकार मन्त्र का संकल्प का चमत्कार साक्षात् अनुभूत हुआ था । परिस्थितिवश विश्वास करना एक बात है और हमेशां विश्वास करना दूसरी बात है। तथापि अनुभवों से भी विश्वास मैं विस्तार होता है तो भी लाभप्रद है ।