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देवी तेजस्वी रूपसे सफेद वस्त्रो में खड़ी होकर उसे रहा था। अचानक ही फोटू पर नजर पड़ गयी एवं कह रही थी। डरो नहि, अभी देरी है, धर्म की पहचान लिया। और प्रवीण के बारे में विस्तृत आराधना करो, कोई कुछ नहि बिगाड़ सकेगा। इधर कहानी हमें लिखकर भेजी। इस प्रकार जब हमारी धर्माराधना भी चल रही थी। ज्यों ही ४ महीने अंतरायकर्म दूर होते हैं तो शुभका संयोग होता है, होने की आये, उस समय किसीके कहने पर लड़के की फौजी ने प्रवीण को घर ले जाने की संमति दी। फोटू व पूरा पता हिन्दुस्तान पेपर में प्रकाशित अतः हमारी सच्ची आस्था का फल ही हमें मिला। किया। (इसके पहले भी एक बार प्रकाशित किया प्रवीण को भी नमस्कार महामन्त्र के बार में जो था। उसका परिणाम नहि मिला था) संयोगसे उस प्रेरणा मिली वह मेरे द्वारा तथा मेरे दीक्षित माताजी दिनका अखबार वह फौजी (महेन्द्रपाल सिंह) पढ़ 'साध्वीजी लिखमवतीजी' के द्वारा ही थी।
"नवजीवनदाता नवकारमन्त्र"
तेजमल जैन (प्रधानाध्यापक) रा. भा. वि. बामनगाँव (बन्दी) राज.
ह अप्रैल सन् १९३८ की घटना है। मुझे परीक्षा श्रद्धा है। क्योंकि यह कहना तो शायद आत्मश्लाषा देने वास्ते कैथून (कोटा) से कोटा कोलेज में जाना ही होगी। पर फिर भी मैं जब भी यात्रा पर जाता हूँ किसी था। बसमें बैठा। बस रवाना हुई, द्रुत गतिसे, कि कार्यका शुभारंभ करता हूँ, सोता हूँ, उठता हूँ, तो कहीं पीछे की बस आगे जाकर उससे ज्यादा आर्थिक नवकारमन्त्रका अवश्य स्मरण कर लेता हूँ, चाहे लाभ प्राप्त न कर ले। रायपुर एव घाकडखेड़ी के मनःस्थिति कैसी भी हो। बीच मेरी बसका अगला टायर फूट (Burst) गया। अल्पायु एव सक्षिप्त अनुभवों के आधार पर मैं सन्तुलन बिगड़ा। बस खड्डे में जा गिरी। उल्टी हो सत्य प्रमाणित कर सकता हूँ कि मुझे राज्यसेवाकाल, गई। पर जब हमको किसी भी प्रकार निकाला गया तो गृहजीवन एवं संसारिक कार्यों में जो अभूतपूर्व ६०-७० सवारीयो में मैं ही एक एसा सुरक्षित प्राणी ।
सफलताएँ मिली है, वह मात्र नवकारमन्त्र की श्रद्धा बचा था जिसको कहीं भी किसी भी प्रकार की। का ही प्राप्त प्रतिफल है। शारीरिक चोट नहि आई। मैं तुरन्त समझ गया। यह
नवकार महामन्त्रकी महिमा सचमूच अपार ही है। नवकारमन्त्र का ही प्रतिफल है कि मैं ही पूर्णतः
सात समुद्रकी मसी करो लेखनी सब वनराय। सुरक्षित रह पाया। मैं अपनी जिहवास यह तो प्रकट धरती सब कागद करो, नवकार गुण लिखा न जाय। करना नहि चाहता कि मुझे नवकारमन्त्र में कितनी