Book Title: Jena Haiye Navkar Tene Karshe Shu Sansar
Author(s): Mahodaysagar
Publisher: Kastur Prakashan Trust

View full book text
Previous | Next

Page 255
________________ फ " नासूर नष्ट हुआ" श्रमण संघीय युवाचार्य श्री मधुकर मुनिजी म. सा. को आज्ञानुवर्तिनी महासतीजी सोहनकुंवरजी की ओर से हरिराम प्रजापत (शिक्षक) रा. मा. वि. खेजड़ला (जोधपुर) १. महासती श्री सोहनकुंवरजी म. सा. जिस समय गृहस्थाश्रम में थे, उस समय उनके पेट में अकस्मात् एक विषैली गाँठ उत्पन्न हुई। उस नासूर की चिकित्सा किसी भी वैद्य या डॉक्टरसे नहि करवाई गई। महाराज ने अपना समस्त विश्वास नवकार मन्त्र पर छोड दिया। नवकार मन्त्र के जप का प्रभाव 'ऐसा पड़ा कि शनैः शनैः वह गाठ स्वतः बैठ गई तथा नासुर रोग समुल समाप्त हो गया। २. एक बार महासताजी सुदर्शनाजी म. को जैन धर्म के प्रति अनुराग एवम् ससारसे वैराग्य हो गया। जब महासतीजी श्री सोहनकुंवरजी म. सा. के सं. २०८० की चातुर्मास ग्राम हाँसोलाप में था । उस १५ समय श्री सुदर्शनाजी, म. सा. के पास आये। उनका स्वास्थ्य उस समय बराबर ठीक नहि रहता था। वे १५-१५ या २०-२० दिन तक खाना तक नहि खाते थे। और न अपने आपकी सुध-बुध रहती । महासतीजी नवकार मन्त्र का जाप प्रारम्भ करवाया। सं. २०४० का आसोज सुद ७ से आसोज सुद १५ तक आयम्बिल ओली की आराधना और नौपद का जाप नौ दिन तक सुदर्शनाजी से करवाया। नवकार मन्त्र का प्रभाव उन पर ऐसा पड़ा कि शनैः शनैः उनका स्वास्थ्य बिलकुल ठीक होने लगा। हालाकि उनके स्वास्थ्य की चिकित्सा किसी भी वैद्य या डॉक्टरसे हि करवाई गई।

Loading...

Page Navigation
1 ... 253 254 255 256 257 258 259 260