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नवकार से संकटपार
महाराष्ट्र सौरभजी म. की सुशिष्या साध्वी सुमन प्रभा 'सुधा'
एक वक्त विहार करते हुए तीन-चार घंटे हो गए। देखना चाहा। जाकर देखा तो वहाँ एक भैंस बंधी है। ८-१० किलो मीटर का मार्ग पार कर चुके थे फिर भी और किसान के वेष में एक व्यक्ति वहाँ बैठा है। अब किसी गाँव का नामोनिशान तक नहीं था। नहीं वहाँ हमने उसे हमारी समस्या सुनाई। बिना हिचकिचाहट राहदारी था। भयानक जंगल था, निर्जन स्थान था। के उसने मैंस का दूध निकालकर दिया। एक वृक्ष के पू. गुरुनीजी म. सा. को हार्ट की शिकायत थी। सीनेमें नीचे पू. गुरुजी मैया को ठहराकर दूध के साथ गोली एकदम दर्द उठा। अब साथमे जल भी नहीं था तो दी। कछ विश्राम एवं स्वस्थता के पश्चात उसकी दवाई कैसे दे? सभी घबराने लगे। अब क्या करें ऐसे दयालुता की प्रशंसा करते हुए कुछ आगे बढे। सहज स्थान पर! हम सक्ने वा पूर्वक नवकार का जाप शुरू ही पीछे झुककर देखा तो न वहाँ कोई झोपड़ी बीन आदमी किया और इसी स्थिति में आगे बढ़े कि एक झोंपड़ी न भैस। आश्चर्यान्वित होकर दाँतों तले उंगली दबा नुमा कुटिया झाड़ियों के बीच नजर आई। जानेके लिए ली। हमारी आँखे तो धोखा नहीं दे सकती पर उस छोटासा रास्ता था। अतः हममें से २-३ जनोने जाकर निर्जन स्थान में नवकार ने ही हमारी सहायता की थी!