Book Title: Jainendra Kahani 07 Author(s): Purvodaya Prakashan Publisher: Purvodaya Prakashan View full book textPage 4
________________ प्रकाशक की ओर से 'जैनेन्द्र-साहित्य' का यह अठारहवाँ भाग और 'जैनेन्द्र की कहानियाँ' का सातवाँ भागा है ।। इस संग्रह में कहानियों के अतिरिक्त 'टकराहट' नामक एकांकी भी संकलित किया गया है । यद्यपि जैनेन्द्र जी ने यह एक ही एकांकी लिखा है, फिर भी इसकी बहुत चर्चा हुई है। हिन्दी में ऐसे कम एकांकी होंगे, जिन में चरित्रों का इतना मनोवैज्ञानिक चित्रण किया गया हो। अपने ढंग का यह अद्वितीय मनोवैज्ञानिक एकांकी है। प्रस्तुत संग्रह की कहानियों में समस्यापूर्ण जीवन के वैविध्य को एक आन्तरिक संस्पर्श और दार्शनिक गहराई के साथ विविधरूपों में प्रकट किया गया है। जैनेन्द्र की यह कहानियाँ पढ़ पर लगता है कि केवल रोचकता और घटना से कहानी नहीं बनती; बल्कि कहानी में जीवन को जीवित रखने वाले आत्म-तत्त्व की प्रतिष्ठा अनिवार्य है, और यह आत्म-तत्व जैनेन्द्र के प्रेम-मूलक दृष्टिकोण का आधार है, जो उनकी कहानियों में प्रतिध्वनित होता रहता है । जैनेन्द्र के अपने इस मौलिक दृष्टिकोण के कारण ही उनकी ये कहानियाँ अपना एक पृथक् और मौलिक महत्त्व रखती हैं।Page Navigation
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