Book Title: Jainendra Kahani 07
Author(s): Purvodaya Prakashan
Publisher: Purvodaya Prakashan

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Page 11
________________ जैनेन्द्र की कहानियाँ [सातवाँ भाग] कैलाश-हाँ, सो तो हो ही गया है। वैसे भी मिलने-जुलने का समय और है । पर तुम्हें शंका की जरूरत नहीं है । शाम को फिर बातें होंगी। मुझे अमरीका और योरुप के बारे में बहुत कुछ जानना है । तुमने भी इस छोटी उम्र में विचित्र अनुभव पाये हैं। अभी तीस की ता नहीं हुई हो न ? लीला-अगले जन्म-दिन पर छब्बीस वर्ष पूरे होंगे। कैलाश-(खिलखिला कर हँसते हुए) लेकिन मैं बूढ़ा हो गया। पर देखोगी कि तुम्हारे सामने मैं तीस वर्ष का-सा दीखने का साहस करूँगा। फिर भी घड़ी पल-पल चलती है। समय किसी को जवान रहने देता है ! जुम्हारी अंगरेजी में कहावत है, Time is money लेकिन Time is much more. Money is nothing. (घड़ी आगे करके) And one time is up. लीला-अब मैं जाऊँ ? कैलाश-शाम को फिर मिलने के वायदे पर जाओ। लीला-मुमकिन है, मैं आज ही लौट जाना चाहूँ। कैलाश-आज कैसे लौटोगी ? मुझे समय दिए बिना जा सकोगी ? लीला-देखती हूँ, मैं आपका हर्ज करती हूँ। मैं हर्ज करना नहीं चाहती। कैलाश-तभी तो कहा, हम शाम को मिलें । समय दो कि मैं बूढ़ा भी अपना प्रेम जतला सकू। [खिलखिलाकर हँसते हैं।] लीला-प्रेम ! आप उसे जानते हैं ? कैलाश-प्रो राम, और मैं किसे जानता हूँ ! लीला-आपको विश्वास है, आप हृदय-हीन नहीं हैं ? कैलाश–डाक्टरों ने अभी तक ऐसा नहीं बताया। और मुझे भरोसा है कि देखकर तुम भी यह फैसला न दो। नहीं हैं?

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