Book Title: Jainendra Kahani 07
Author(s): Purvodaya Prakashan
Publisher: Purvodaya Prakashan

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Page 12
________________ टकराहट लीला-आप अपना काम करें। आप को बहुत काम है। मैं प्राज ही लौट जाना चाहती हूँ। कैलाशनहीं, मुझे मौका दोगी । मौका देने से पहले मुझे अपराधी बनाना न्याय नहीं है । और तीसरे पहर के समय थोड़ा आराम... लीला-आराम मुझे नहीं चाहिए। ___ कैलाश-(खिलखिलाकर) तो भाई, मुझे तो चाहिए। मै बूढ़ा हूँ। और यह कागजों का पुलिंदा मेरा आराम है। ऐसी हालत में तुम इस बूढ़े आदमी पर अकृपा करोगी ? मैं जानता हूँ, तुम मुझे अवसर देना चाहोगी। मैं, समय मिलते, बोलो, तुम्हारे कमरे की ओर आऊँ ? देखना चाहता हूँ इस देहाती घर में तुमने अपना अमरीका कैसे सुरक्षित रखा है। लीला-शाम प्राप अकेले हो सकते हैं ? कैलाश-देखता हूँ, तुम कठिन हो। तिस पर हृदयहीन मुझे कहा जाता है । ( खिलखिलाकर हँसते हैं।) अकेली मेरी शाम चाहती हो, तो वह सही। [ लीला इस पर बिना कुछ बोले चली जाती है।] कैलाश-रामदास, लो भाई, अव आ जाओ । [ रामदास पास आकर पढ़ना चाहता है । कैलाश तकिये पर झुक कर मानो जरा विश्राम करते हैं।] दूसरा दृश्य [ सन्ध्या, नदी का किनारा । कैलाश और लीला । ] कैलाश-चली चलोगी, या यहाँ बैठे। (नदी-तट की एक चट्टान की ओर बढ़ते हुए) प्रायो, बैठो। [कैलाश बैठते हैं । जरा नीचे की ओर लीला भी बैठ जाती है।]

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