Book Title: Jainendra Kahani 07
Author(s): Purvodaya Prakashan
Publisher: Purvodaya Prakashan

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Page 8
________________ टकराहट नायर -- अमरीका से यह तार भी आया है । [तार देता है । ] कैलाश - ( पढ़कर) इन्हें लिख तो दिया न कि खुशी से आवें । नायर - मालूम होता है कि मिस सिंक्लेअर की खातिर - । एक तार उनके नाम भी था । कैलाश तो ? नायर में... फिर... देख लीजिए । कैलाश - ( खिलखिलाकर हँसते हुए) वह में समझा । तुम सब सरल चाहते हो । पर वक्र से हमें डरना न चाहिए। तार दे दो कि जरूर आवें । अच्छा, अब लीला को भेज दो । याद रखो, लीला । न मिस, न लिली । [ नायर चला जाता है । कैलाश सामने के कागजों में लगते हैं । ] कैलाश - रामदास, इनमें से कोई ऐसा तो नहीं है जो कल तक ठहर सके । रामदास - जी, सब जरूरी हैं । कैलाश - अच्छा, तो मुझे सुनाते जाओ । जवाब लिखते जाना । रामदास -- ( पास बैठकर पढ़ना शुरू करता है) मजदूरों के साथ किये मुनाहिदे को फिर मालिकों ने तोड़ दिया है । हड़ताल का छठा रोज है | श्राप कब तक पहुँच सकेंगे ? या तारीख दें कि हमारे प्रतिनिधि आवें । कैलाश - शनिवार लिख दो । पाँच बजे । और देख लो कि वह वक्त खाली है न । रामदास - ( पढ़ता है) प्रदायगी की तारीख आ गई है । सेठ जी आपके आदेश बिना कुछ न करेंगे। ऐसा न हो कि नौबत अदालत की श्रावे । कृपया सेठ जी को प्रेरित करें। आज्ञा दें तो सेवा में पहुँच कर मामला सब खुलासा रखू ।

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