Book Title: Jain Yog
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 8
________________ आधार पर एक परिष्कृत पद्धति का स्थिरीकरण हुआ, जो आज 'प्रेक्षा ध्यान साधना' के नाम से प्रयुक्त हो रही है । उस 'प्रेक्षा ध्यान' की पूरी प्रक्रिया ही 'जैन योग' है | यह एक चिरंतन प्रश्न का समाधान है और है अंतर्यात्रा का सोपान । इसका प्रारम्भ होता है अस्तित्व बोध के आत्मलक्षी बिंदु से और अग्रिम बिंदुओं में है आभा-मंडल, कुण्डलिनी, चैतन्य केन्द्र आदि शारीरिक, वैज्ञानिक तथा यौगिक दृष्टि से विश्लेषण | पद्धति और उपलब्धि की चर्चा के साथ इसके परिशिष्ट भाग में भगवान महावीर के साधना प्रयोगों और आचारांग में उपलब्ध प्रेक्षा ध्यान के तत्त्वों को समाविष्ट कर पुस्तक की उपयोगिता को और अधिक बढ़ा दिया गया है। _ 'जैन योग' स्वाध्याय की ही नहीं, प्रयोग की भी प्रक्रिया है | इसके पाठक अपने मन की जागरूकता, आत्मा की समता और चित्त की निर्मलता को उत्तरोत्तर विकसित करते हुए तनाव-मुक्त जीवन जीने में सफल हों, यही शुभाशंसा है। गणाधिपति तुलसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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