Book Title: Jain Yog
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 7
________________ आशीर्वचन आध्यात्मिक व्यक्ति सत्य का अन्वेषी होता है | वह अपने चारों ओर विकीर्ण सूक्ष्म सत्यों तथा अज्ञात रहस्यों को जानने के लिए चेतना के सूक्ष्मतम स्तरों से गुजरता है । सत्य को पाने से पहले वह अपनी खोज के लिए समर्पित होता है । अन्तश्चेतना की बेचैन अन्वेषणा में वह अपने आपको खो देता है । इससे उसकी चेतना के केन्द्र में एक व्यापक विस्फोट होता है और वह आत्म-साक्षात्कार के अनिर्वचनीय आनन्द में डूब जाता है। उसकी समत्व प्रज्ञा जागत हो जाती है। वह अज्ञात को ज्ञात कर यथार्थ के उस धरातल पर पहुंच जाता है, जहां सत्य को जाना नहीं जाता, जिया जाता है । इस स्थिति तक पहुंचने के लिए एक विशेष प्रक्रिया से गुजरना होता है, जो ‘योग साधना' इन दो शब्दों में समा जाती है। योग साधना वर्तमान युग की बहु-चर्चित और बहु-प्रयुक्त प्रक्रिया है | तेरापंथ धर्म-संघ में पिछले कई दशकों पूर्व इसका पुनर्मूल्यांकन हो चुका था, फिर भी 'जैन योग' के रूप में एक स्वतंत्र साधना पद्धति की व्यवस्थित प्रस्तुति हमारे पास नहीं थी। ___ मैंने सन् १९६२ उदयपुर चातुर्मास में मुनि नथमलजी (अब आचार्य महाप्रज्ञ) से इस संबंध में गहरा अनुसंधान करने के लिए कहा । उनकी बचपन से ही यह वृत्ति रही है कि वे मेरे हर निर्देश के प्रति स्वाभाविक रूप से समर्पित रहते हैं। जब भी उनको किसी कार्य के लिए कहा जाता है, वे बिना ऊहापोह किए उसकी क्रियान्विति को प्राथमिकता देते हैं । साधना उनकी विशेष रुचि का विषय था । मेरे निर्देश का योग मिलने से वह अधिक पुष्ट हो गई। उनके अनुसंधान की विधा रही-शास्त्रों का दोहन, तथ्यों का समाकलन, पद्धति का निर्धारण, वैज्ञानिक तथ्यों के साथ तुलना, प्रयोग और अनुभव । इन सबके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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