Book Title: Jain Yog
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 16
________________ सब कुछ पौद्गलिक; लब्धियों की विचित्र शक्ति; समाधान नहीं; समाधान हेतु - अध्यात्म; श्वास का मूल्य; स्फोट; ममकार का आदि-बिन्दु, नौका से चिपकना भूल है; पदार्थ साधन है, अभिन्न नहीं अंतर्दृष्टि (२) विवेक चेतना और कायोत्सर्ग; कायोत्सर्ग क्या है; योद्धा निर्भीक नहीं होता; कायोत्सर्ग की पहली निष्पत्ति; परिग्रह और भय तनाव - विसर्जन : पहली शर्त; कायोत्सर्ग की निष्पत्तियां; स्वस्थ चिंतन; देहाभिमान : कष्टों का जनक; अपना अनुभव अपने लिए; शैक्षणीय और करणीय अंतर्दृष्टि (३) एकत्व अनुप्रेक्षा; सचाई का अनुभव, एक का क्या मूल्य ? ; दो में संघर्ष अकेला होना : एक सचाई, स्वार्थ और त्राण; अनित्य अनुप्रेक्षा; व्यवहृत सचाइयों का आश्रयण; ग्रहणशीलता की समाप्ति; शरण-अशरण का विवेक; अंतर्दृष्टि का जागरण : सूत्र - निर्देश; रोग का उपादान-कर्म अंतर्दृष्टि (४) अनेकान्त दृष्टि और फलित; संकल्प की शक्ति असीम; भावितात्मा ः संवृतात्मा; अतीन्द्रिय ज्ञान की स्वीकृति; अनन्त अनुबंध की समाप्ति; चिन्तन के तीन आयाम; प्रवृत्ति का संयम क्यों; प्रवृत्ति की कसौटी परिणाम: अंतर्दृष्टि और लेश्या; तेजोलेश्या : जागृति के साधन; तेजोलेश्या का परिणाम अंतर्दृष्टि (५) : मन की सिद्धि; सत्य की खोज ध्यान से, कोऽहं सोऽहं; अतीन्द्रिय सत्यों की खोज का आधार, अपायविचय का ध्यान; विपाकविचय का ध्यान; संस्थान विचय का ध्यान; उपायविचय; विरागविचय; भवविचय; हजारों विचय; धर्मध्यान : परिणाम और कसौटी धर्मध्यान और लेश्या समत्व समत्व का जागरण; पर्यावरण विज्ञान और संतुलन, पर्यावरण विज्ञान का नया आयाम; समता ही पर्यावरण का विज्ञान; तटस्थता का अभ्यास; समत्व और संयम; Jain Education International For Private & Personal Use Only ५९ ७० ८२ ९२ १०३ www.jainelibrary.org

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