Book Title: Jain Vivek Prakash Pustak 11 Ank 05
Author(s): Gyanchandra Yati
Publisher: Gyanchandra Yati

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Page 28
________________ जैन विवेक प्रकाश. २६ सार हि रहती है. सब भाइयोंके अभिप्रावानुसारहि सर्व कार्य बहुमत से करना यह हि सबको समयानुसार श्रेष्ट गिनना समुचित गिना जायगा. यह अपनी पहिली पतिकोन्फरन्सके समारंभ पहिले हम परिपूर्ण तथा समजते थे की हमारे बहुतसे स्वामी भाइयें पधारके अपनी उन्नती हितार्थ स्वस्व अभिप्राय अवश्य हि नि वेदन करनेका समय कभी न चुकेगें परं भावी भाव प्रसंगसे व हमारी कितनी क्षतियोंसे यद्यपि हमने बहुतसा प्रयास व खर्च उठाया था तथापि कितनेक स्वामी भाइयें न आय शके ये तथापि जितने पूज्यवर्ग पधारे थे उनोने भी अपनी फर्ज अदा करनेमें न काही क्षती रखी थी, व इतने स्तोक समुदायने भीं जी कुछ किया हे सोभी कुच्छ कम न गिना जायगा. क्यों की स्वल्पसमुदाय एकहि समयमें क्या विशेष करशकेंगें ? तथापि जो कुच्छ हुवा सो समयानुसार प्रशंसा पात्र हुवाहे एसा हमारे और भाइये भी समझेंगे. उनोंने मिलके क्या किया सो सब वृत्तांत रपोर्ट प्रकाशित कर दीया है. अब अपने क्या करना चहिये इस विषय में अब दो वाक्य आपके सन्मुख रखते है जिसपर अपने यति महाशयें जरूर विचार करेंगें. ( १ ) अपनी पहिली यतिकोन्फरन्समें जो ठराव हुवेहें तत्संबंधी करना Im (२) दूसरी यति कोन्फरन्सके विषय विचार करना. ( १ ) अपनी पहिली यतिकोन्फरन्सके प्रथम विषयमे यह ठरा हुवाथा की केलवणी के लिए सब यति महाशयोकि . सम्पती मिले पीछे यह उद्देशको पार लगाना होगा. सब यति

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