Book Title: Jain Vivek Prakash Pustak 11 Ank 05
Author(s): Gyanchandra Yati
Publisher: Gyanchandra Yati

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Page 27
________________ श्वेतांबराभ्युदय. सब श्वेतबर यति महाशयोंको विदित होयकी अपनी पहिली श्वेतांबर यति महापरिषद ( यतिकोन्फरन्स ) होनेको आजकाल करते छमास व्यतीत होगए है. कार्य कैसा व्यवसा यी है की छमाससें तो अपने उनका रिपोर्ट प्रकाशित करशके हैं ! तथापि श्रावकोंसे अपन शीघ्रगामी है. क्योंकी श्रावगोकी कोन्फरन्सो के रिपोर्ट प्रकाशित होते एकादवर्ष उपरांत होजाता हे. गत मास में हम सब यति महाशयों पर यति कोन्फरन्सका रिपोर्ट भेज चुके हैं. अब सब साहबोंने वांचके उनकी काररवाईकी आवश्यकता स्वीकारी होगी. उनकोभी आज एकमास होगया है तथापि आजतक कोई यतिमहाशयों तर्फसे उनकी न्यूनाधिकता वा क्षतीयें न कोईने हमको प्रकाशित करी है. जिससे समजा जाता है की यह रिपोर्ट यथावस्थित और सर्व मान्य गिना गया होगा. अमर कोईकों इनकी न्यूनाधिकवा वा क्षति दिखति होय बहुत हर्ष के साथ हमकों लिखभेजें हम सहर्ष उनके उत्तर प्रदान करेंगे. दुर्जनं प्रथमं वन्दे सज्जनं तदनंतरं ॥ मुख प्रक्षालनात्पूर्वं । गुदः प्रक्षालन कर्मवत् ॥ इस न्याय असमीक्षक सज्जनोके अन्यान्य आक्षेषोके प्रश्नो तर प्रदान करना पूर्वापर लाभकारी न समजके उपेक्षा करेगें. द्रव्य, क्षेत्र, काळ, भावानुसार जो सज्जने हमारे कर्तव्योकों समीचीन तथा समजते हैं किंवा उनमें यथातथ्य समयानुसार क्षतीयें देखते होय उन सज्जोंसे सहर्ष प्रार्थना हे की उनोने अवश्य अपना अपना अभिप्राय प्रदर्शि करना. क्योंकी हमारी प्रवृत्ती सब भाइयों के हितार्थ और सब भाइयोंके अभिप्रायानु

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