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प्रकाशकीय
तीर्थ किसी भी धर्मपरम्परा के प्राण माने जाते हैं। जैन धर्म में भी तीर्थों का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है और तीर्थ सम्बन्धी अनेक रचनायें लिखी गयीं। आधुनिक काल में भी त्रिपुटी महाराज द्वारा लिखित जैन तीर्थोनो इतिहास, पं० अम्बालाल पी०शाह द्वारा लिखित जैनतीर्थसर्वसंग्रह तथा मद्रास की श्वेताम्बर जैन संस्था द्वारा प्रकाशित तीर्थदर्शन एवं दिगम्बर परम्परा में पं० बलभद्र जैन द्वारा लिखित भारतवर्ष के दिगम्बर जैनतीर्थ आदि कई ग्रन्थ प्रकाशित हुए हैं। यद्यपि इन ग्रन्थों में तीर्थों के विवरण के साथ-साथ उनका संक्षिप्त इतिहास भी देने का प्रयास किया गया है, किन्तु उनमें इतिहास की अपेक्षा अनुश्रुतियों पर ही अधिक बल दिया गया है। वस्तुतः जैन तीर्थों के सम्बन्ध में शोधपरक दृष्टि से अभी तक कुछ लेखों को छोड़कर बहत कम लिखा गया है। इस सम्बन्ध में डा० शिवप्रसाद ने विविधतीर्थकल्प को आधार बनाकर शोधपरक दृष्टि से जैन तीर्थों का विवेचन अपने शोध प्रबन्ध में किया था जिस पर उन्हें काशी हिन्दू विश्वविद्यालय द्वारा पीएच० डी० की उपाधि प्रदान की गई। उनके इस शोध निबन्ध को प्रकाशित करने में साम्प्रदायिक अभिनिवेशों के कारण कुछ बाधायें आती थी। चूँकि पार्श्वनाथ विद्याश्रम का प्रारम्भ से ही सम्प्रदायनिरपेक्ष और शोधपरक दृष्टिकोण रहा है, अतः हमने इसके प्रकाशन का निर्णय लिया। डा० शिवप्रसाद ने न केवल प्रकाशन हेतु ग्रंथ संस्थान को समर्पित किया अपितु उसके प्रकाशन की सम्पूर्ण प्रक्रिया में भी वे प्रारम्भ से लेकर अन्त तक जुड़े रहे। उसके लिए हम उनके आभारी हैं। प्रकाशन प्रक्रिया में संस्थान के निदेशक प्रो० सागरमल जैन ने भी अपना पूर्ण सहयोग प्रदान किया है। सुचारु रूप से मुद्रण के लिए डिवाइन प्रिन्टर्स के भी आभारी हैं।
भूपेन्द्रनाथ जैन
मन्त्री
पा०वि० शोध संस्थान, वाराणसी
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