Book Title: Jain Tattvasara Author(s): Atmanandji Jain Sabha Bhavnagar Publisher: Atmanand Jain Sabha View full book textPage 9
________________ ( ७ ) ते धन्याः पुण्यभाजस्ते तैस्तीर्णः क्लेशसागरः । जगत्संमोहजननी यैराशाशीर्विषी जिता ॥ धन्यछे ते पुण्यात्माओने जेमणे जगत्ने संमोह करनारी आशा रूप सर्पिणीने वश करीछे. जे नाममात्र अध्यात्मवादियो आशाधीन थइ धनवंतोनी आगळ दीनता भरेला शब्दो वोले, खुशी करवामाटे गीतनृत्यादि करे अने एवी एवी विडंबनाओ करे तेमने अध्यात्मशास्त्रनुं परिणाम के थयुं समजनुं ? तथाविध योगि महाशयो क्रोधाग्निने पण शांत करे. क्रोधानल शांत न करे तो कोटि वर्षना तपसी थया क्षणमात्रमा लपसी गया एना जेवी गति थाय. क्रोधात्मा पोतानोज नाश करेछे तेम नथी पण परनो पण नाश करेछे, प्रशमरसनिमग्न महायोगी श्रीमहावीरप्रभु म्लेच्छादिकोना घोर उपसर्गो थया तोपण शांत रसथी चलायमान थया नहोता, तेज स्मरवा अने वंदना योग्य छे. अध्यात्मीथी जातिकुलादिनो मद पण न थाय. थाय तो नीच जातिकुलादिमां जाय. मायाजंजाळसां पण न बंधाय. जो जाळमां बंधाय तो अधोगतिमां ज जबुं थाय. लोभाजगरना मुखमां पण न जाय. जाय तो लोभाजगर अधुरो नहि मुकतां आखो ज गळी जाय. ए चार कषायो महा चंडाळो छे तेमनाथी उत्तम योगात्माओए वेगळा रहेवुं श्रेयस्कर छे. तथा राग, द्वेष, क्लेश, अभ्याख्यान, पिशुनता, रत्यरति, परपरिवाद, मायामृषावाद अने मिथ्यात्वशल्य ए पातकोथी निर्वृत्तियो शांतात्मा भने अवश्य होवी जोइए. पापनुं मुख्य साधन इंद्रियोनुं प्रबळ छे. इंद्रियाधीन यह भक्ष्याभक्ष्य, पेयाय अने गम्यागम्यनो विचार पण जो राखे नहि ते आप ज विचार करो के अध्यात्मवादियोनी पंक्तिनी पताका थइ शके ? अध्यात्मपदपंक्ति लेनार महापुरुषो उपर कहेलां कृत्योनी छायाना निवासी पण ना थाय अने संसारदशाथी विरक्त दशायां ज निरंतर ध्यान राखे, जेमके,Page Navigation
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