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( १० ) साढ़े आठ बजे का समय हुआ, तब अकस्मात् श्राप के मुख पर स्मय (मुस्कराहट) के चिह्न दिखाई देने लगे। होठ इस प्रकार होगए जैसे कोई पाठ पढा करता है । १९८८ ज्येष्ठ कृष्णा २ सोमवार दिन के ठीक साढ़े आठ बजे श्राप के प्राण नाक और प्रांखों के मार्ग से निकलते हुए प्रतीत हए । शान्ति और समाधि पूर्वक आप इस औदारिक शरीर को छोड़ कर, तेजोमय वैक्रिय शरीर को धारण कर स्वर्ग में जा उत्पन्न हुए। श्राप के वियोग से श्रीसंघ में परम व्याकुलता उत्पन्न होगई, तब लुध्याना निवासी श्री " संघ ने बड़े समारोह के साथ श्रापका अग्निसंस्कार किया । पूर्व श्राप के शव को, स्नानश्रादि क्रियाएँ कराके लेटाया गया। प्रायः लुध्याना की सभी जनता ने व बाहिर से श्राए हुए श्रावक और श्राविकाओं ने श्राप के शव के दर्शन किये । दर्शक लोग विस्मय इस बात पर करते थे कि-श्रापका मस्तक लाली से चमक रहा था, मुखोपरि तेज विराजमान था, मृत्यु के चिन्ह नितान्त मुख पर दिखाई नहीं देते थे। श्राप के शव पर ८१ दोशाले पड़े । बड़ी सजधज के साथ विमान निर्माण किया गया और कई बाजे तथा भजन मंडलियों के साथ बड़े समारोह पूर्वक श्मशान भूमिका में विमान को लाया । गया। उस समय जनता का समूह २० हजार के लगभग था।अन्तमें चन्दन की चितामे श्राप के शव का अग्नि सस्कार किया गया। जिन भावों से श्राप ने दीक्षा धारण की थी। उन्ही भावों से आपने मृत्यु प्राप्त की। आपकी मृत्यु से पंजाब जैनसंघ में एक अमूल्य रत्न की हानि होगई । श्राप ने ८१ वर्ष ६ मास की श्रायु पूर्ण करके स्वर्ग धाम प्राप्त किया इस काल में ५५ वर्ष पांच मास १२ दिन साधु वृत्ति में व्यतीत किये । श्राप के अनेक शिष्य हुए । श्राप का शिष्य वृन्द इस समय उन्नत दशा में है । श्राप के शिष्य श्री श्री श्री
१००८ गणावच्छेदक श्री जयरामदास जी महाराज हैं वा उन के शिष्यप्रवर्तक श्री स्वामी - शालिग्राम जी महाराज ने तथा अन्य साधुवर्ग ने आपकी सेवा का अत्यन्त लाभ
लिया। सत्योपदेश द्वारा उक्त मुनि महाराजों ने जनता को जो आप के असहनीय वियोग से व्याकुल हो रही थी, शान्त किया।
इस संक्षेप परिचय के प्रकाशित करने का तात्पर्य यह है कि प्रत्येक व्यक्ति प्राप के गुणों का अनुकरण करके सुगति का अधिकारी बने।
BACHITRAKORKXOXOEXXKOADXXCARXICAEXXXKAHRIKXCEBIXEDXXXXCXXEEXPERIENCETRALEKACTREAKXCATIXCAXCISESH
उपाध्याय जैनमुनि आत्माराम ।