Book Title: Jain Shwetambar Conference Herald 1912 12 Pustak 09 Ank 12
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Jain Shwetambar Conference

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Page 9
________________ જૈન જ્યોતિષ. ૫૬૧ रात्रि हुई इसके बासठ ६२ हिस्से किये अब चंद्रमां चलता २ एकसठ हिस्सेतक पहुंचा. बाकी एक हिस्सा बचा. अब फिर सूर्यकु तो कल उगनाही है फिर उससे दिन रात्रि होना माननाही पडेगा. और चंद्रमाकुंभि हमेसे अपनी निरंतर चालसे चलते २ एकसठ ६१ मे हिस्सेतक पहुंचना हे. तो देखिये-एकहिस्सा तो आजके दिन रात्रिका बाकी रहा हुवा था वो गृहण किया. अब साठ और चाहिये. सो कलरोजके याने कलके दिन रात्रिके बासठमेसे ६० और गृहण किये अब चंद्रके तो पुरे हुवे-कलके सूर्यके २ भाग और खालि रहै अब तीसरे रोज. और सूर्य उतनाही चला उसकेभि बासठ ६२ भाग किये, अब दो भागतो चंद्रमाने कल रोजके लिये. अब चाहिये ओगणसाठ ५९ भाग सो तीसरे दिनके बासठ ६२ भागमेसे ५९ लिये. देखिये चंद्रके तो एकसठ ६१ भाग पुरे होगये. बाकी तीसरे दिनके तीन ३ भाग खाली रहे. इसी क्रमसे हमेसा ( प्रतिदिन ) एक २ भाग सूर्यका याने दिन रात्रिका खाली होता रहा. उसको चंद्रमा अपने एकसठ ६१ भागके हिसाबसे हमेसा गृहण करता रहों, इस गणनासे सूर्यके जब ६२ ही भाग खाली होगये तब चंद्रमाने सब (६२) भागको गृहण कर लिया. इस हिसाबसे सूर्यके बासठ ६२ दिन रात्रि पूर्ण होते हे तब चंद्रकृत तिथि त्रेसठ ६३ पूर्ण होती है इसीको क्षय तिथी मानी गई है. क्योंकि चंद्रमांसे तिथी और सूर्यसे दिवस रात्रिमान कहा गया है. अब वृद्धि तिथी तरफ खयाल करते हे तो-वृद्धिका होना गणितसे नहीं पाया जाता है . सबब जब चंद्रमा सर्यसे आगे बढे तंब तिथि वृद्धि होना माना जावे. चंद्रही जब नियमित गतिसे सूर्य के ६२ भागमेसे ६१ भाग पर्यंत पहुंच सके तब बृद्धि होना कैसे संभवे. और चंद्रमाको. जैन ज्योतिष वेत्ताओने. सबसे मंदगति देखा प्रमाण ज्योतिष्क॥ चंदेहिं सिग्धयरासूरा सूरेहि होतिनरकत्ता आणिपगई पच्छाणा हवंति सेसागाहा सन्चे. १॥ माईना इसका यह हुवा, चंद्रसे शीघ्रतर सुर्य चलता है सुर्यसे नक्षत्र, नक्षत्रसे ग्रहा सब शीघ्र चलते है और वक्रसरलभि चलते है-पंच संवत्सरात्मक एक युगके सूर्यमानसे १८३० अहोरात्रि होती है और चंद्रमानसे १८६० तिथि होती है-उसमे नियमित तीस ३० चंद्र तिथिका क्षय होनेसे १८३० कुछ अंशात्मक भाग चंद्र तिथिका ज्यादह रहता है युगकी शुरुआतसे बासठमे दिन एक तिथि क्षय होती है तो शालभरमे पांच ५ वा छे ६ तिथि क्षय होना संभवे ऐसे एकंदर एक युगमे ३० तिस तिथिका क्षय कहा गया है ( प्रमाण ज्योतिष्करंडकमें ) गाथा-अठारससठिसया, तिहीण नियमया

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