Book Title: Jain Shravakachar me Pandraha Karmadan Ek Samiksha
Author(s): Kaumudi Sunil Baldota
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 4
________________ अनुसन्धान ४६ (भाडे) पर देने का व्यापार करना । (५) फोडीकम्म (स्फोटककर्म) : यव, चणक, गोधूम, करड आदि से सत्तू, दाली, पिष्ट और करम्ब आदि बनाना । कुआ, सरोवर आदि के निर्माण के लिए खान खोदना, पत्थर फोडना, आदि व्यवसाय करना। (६) दंतवाणिज्ज ( दन्तवाणिज्य): हाथी के दांत, उल्लू के नख, हंस के पंख, हिरन-व्याघ्र आदि का चर्म, शंख, शुक्ति, कस्तुरी आदि का व्यापार करना । (७) लक्खवाणिज्ज (लाक्षावाणिज्य): लाक्षा, धातकी, नीली, मनःशिला, हरिताल, पटवास, टंकण, क्षार आदि का विक्रय करना । (८) रसवाणिज्ज (रसवाणिज्य): मधु, मद्य, मांस, म्रक्षण, दुग्ध, दधि, घृत, तैल आदि का विक्रय करना । (९) केसवाणिज्ज (केशवाणिज्य): दास-दासी एवं पशु आदि जीवित प्राणियों के क्रय-विक्रय का धन्धा करना । (१०)विसवाणिज्ज (विषवाणिज्य): विष का विक्रय करना तथा खड्ग, कुद्दाल, हल आदि शस्त्रों का विक्रय करना । (११)जंतपीलणकम्म (यन्त्रपीडनकर्म) : ऊखल-मुसल, अरहट्ट आदि का विक्रय करना, इक्ष-सर्षप आदि से तैल निकालकर विक्रय करना तथा जलयन्त्र आदि बनाकर विक्रय करना । (१२)निलंछणकम्म (निर्लाञ्छनकर्म) : बैल आदि के शृंग-पुच्छ आदि तोडना, नासावेध करना, पशुओं की त्वचा पर दाह करना, बैल आदि को नपुंसक बनाना इन सब कर्मों की गिनती यहाँ की है ! (१३) दवग्गिदावणया (दवाग्निदापन) : भील आदि वनों को दवाग्नि देकर खुशी से रहते हैं । जमीन को उपजाऊ बनाने के लिए जंगल में आग लगाना, जलाना आदि खरकर्मों का समावेश इसमें किया है। (१४) सरदहतलायसोसणया (सरद्रहतडागशोषण) : बीज बोने के लिए तालाब, झील, सरोवर, नदी आदि जलाशयों को सुखाना । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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