Book Title: Jain Shravakachar me Pandraha Karmadan Ek Samiksha Author(s): Kaumudi Sunil Baldota Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 1
________________ डिसेम्बर २००८ जैन श्रावकाचार में पन्दह कर्मादान : एक समीक्षा * डॉ. कौमुदी सुनील बलदोटा प्रस्तावना श्वेताम्बर जैन परम्परा के मन्दिरमार्गी, स्थानकवासी तथा तेरापंथी तीनों सम्प्रदायों में नित्यपाठ के आवश्यकसूत्र में श्रावकव्रतों के अतिचारों में पन्द्रह कर्मादानों का उच्चारण किया जाता है । पन्द्रह कर्मादानों को उनके सम्बन्धित विवरणात्मक ग्रन्थों में निषिद्ध व्यवसायों के रूप में प्रस्तुत किया है । निषिद्ध व्यवसायों का स्वरूप, उनकी संख्या, ये व्यवसाय करनेवाले व्यावसायिक आदि के बारे में मन में जिज्ञासा उत्पन्न हुई तथा अनके प्रश्न भी उठें । इनका मूलगामी शोध लेते हुए जो अनेक तथ्य सामने उभरकर आए, उसकी समीक्षा इस शोधलेख में करने का प्रयास किया है । ३७ कर्मादानसम्बन्धी आधारभूत ग्रन्थ : पाँचवें अर्धमागधी अंगग्रन्थ भगवती ( व्याख्याप्रज्ञप्ति) के आठवें शतक के पाँचवें उद्देशक में आजीविक सिद्धान्त का निरूपण किया है । आजीविक जिन क्रियाओं को निषिद्ध मानते हैं ऐसी प्राय: पशुसम्बन्धित क्रियाओं की गिनती वहाँ की गयी है । उसके अनन्तर जैन श्रावकों द्वारा वर्जनीय पन्द्रह कर्मादानों का निर्देश है ।" विशेष लक्षणीय बात यह है कि भगवती में कर्मादानों को श्रावकव्रत के अतिचार के रूप में प्रस्तुत नहीं किया है तथा टीकाकार ने भी श्रावकव्रत के अतिचार से इसका सम्बन्ध नहीं जोडा है । सातवें अर्धमागधी अंगग्रन्थ उपासकदशा का विषय श्रावकाचार ही है । पहले 'आनन्द श्रावक' अध्ययन में बारह श्रावकव्रतों के अन्तर्गत द्वितीय गुणव्रत स्वरूप सातवें उपभोगपरिभोगपरिमाणव्रत के अतिचार के रूप में पन्द्रह कर्मादानों का निर्देश है। कहा है कि, 'कम्मओ णं समणोवासएणं पणरस ऑल इंडिया ओरिएण्टल कॉन्फरन्स (AIOC) अधिवेशन ४४, कुरुक्षेत्र, जुलै २००८ में पढा गया शोधपत्र. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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