Book Title: Jain Shatak
Author(s): Bhudhardas Mahakavi, Virsagar Jain
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 63
________________ ६२ जैन शतक ५०. चौबीस तीर्थङ्करों के चिह्न (छप्पय) गऊपुत्र गजराज बाजि बानर मन मोहै। कोक कमल साँथिया सोम सफरीपति सौहै। सरतरु गैंडा महिष कोल पुनि सेही जानौं। वज्र हिरन अज मीन कलश कच्छप उर आनौं॥ शतपत्र शंख अहिराज हरि, रिषभदेव जिन आदि ले। श्री वर्धमान लौं जानिये, चिहन चारु चौवीस ये॥८१॥ श्री ऋषभदेव से महावीर पर्यन्त चौबीस तीर्थङ्करों के चौबीस सुन्दर चिह्न क्रमशः इसप्रकार हैं :- १. बैल, २. हाथी, ३. घोड़ा, ४. बन्दर, ५. चकवा, ६. कमल, ७. साँथिया, ८. चन्द्र, ९. मगर, १०. कल्पवृक्ष, ११. गैंडा, १२. भैंसा, १३. शूकर, १४. सेही, १५. वज्र, १६. हिरन, १७. बकरा, १८. मछली, १९. कलश, २०. कछुआ, २१. नीलकमल, २२. शंख, २३. सर्प, २४. सिंह। ५१. श्री ऋषभदेव के पूर्वभव (कवित्त मनहर). आदि जयवर्मा, दूजे महाबल भूप, तीजे, सुरग ईशान ललितांग देव थयौ है। चौथे वनजंघ, एह पाँचवें जुगल देह, सम्यक् ले दूजे देवलोक फिर गयौ है॥ सातवें सुबुद्धिराय, आठवें अच्युत-इन्द्र, नवमैं नरेंद्र वज्रनाभ नाम भयौ है। दशैं अहमिन्द्र जान, ग्यारवें रिषभ-भान, नाभिनंद' भूधर के सीस जन्म लयौ है ॥४२॥ पहले तीर्थंकर श्री ऋषभदेव के ११ भव क्रमशः इसप्रकार हैं : १. जयवर्मा, २. महाबल नामक राजा, ३. ईशान स्वर्ग में ललितांग देव, ४. वज्रजंघ राजा, ५. भोगभूमि में युगलिया, ६. दूसरे स्वर्ग में देव, ७. सुबुद्धि नामक राजा, ८. अच्युत स्वर्ग में इन्द्र, ९. वज्रनाभि चक्रवर्ती, १०. अहमिन्द्र, ११. ऋषभदेव। १. पाठान्तर : नाभिवंश।

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