Book Title: Jain Shatak
Author(s): Bhudhardas Mahakavi, Virsagar Jain
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 77
________________ जैन शतक १३. जैन पुस्तक भवन, ८०, लोअर चितपुर रोड, कलकत्ता से प्रकाशित भूधर विलास' की भूमिका में कोई विद्वान् लिखते हैं - "महाकवि भूधरदासजी भारत के अग्रगण्य गायकों में से थे। आपके प्रशान्त हृदयसागर से शान्ति का अमर सन्देश लेकर जो धारा बह निकली, विश्व उसे देखकर मुग्ध हो गया। आप सांसारिक माया-मोह के वातावरण में रहकर भी इससे अछूते रहे। . . . . . . . ___ महाकवि ने आन्तरिक प्रेरणा से प्रेरित होकर ही काव्य की रचना की है। प्रदर्शन के लोभ से आपने एक भी पद नहीं रचा है। . . . . . . ___कविवर की भाषा तथा शैली अपनी ही वस्तु थी। इस तरह की भाषा-शैली विरले ही पा सकते हैं। आपके शब्द नपे-तुले हुए होते थे। . . . . . हिन्दी आप जैसे कलाकार को पाकर धन्य हुई और आप जैसे प्रशान्त गायक के अमर गीत इस संघर्षमय संसार में अब भी चिरशांति का आलाप सुना रहे हैं ।१३" १४. इन्दौर (म.प्र.) से डॉ. नेमीचन्द जैन लिखते हैं - "महाकवि भूधरदास मध्यकालीन कवि हैं। उन्होंने मानव-जीवन की महत्ता और उपादेयता पर भी गहन प्रकाश डाला है। मूलत: वे शुद्ध अध्यात्मवादी हैं । उन्हें मानवमन की गहराइयों का विशद ज्ञान है। 'शतक' में ऐसी सैंकड़ों पंक्तियाँ हैं जो जीवन को स्वस्थ और वैराग्यमूलक उजास से भर देती हैं।१४" १५. डॉ. राजकुमार जैन लिखते हैं - "कवि ने इसमें ('जैन शतक' में) अध्यात्म, नीति एवं वैराग्य की जो त्रिवेणी प्रवाहित की है, उसमें अवगाहन करके प्रत्येक सहृदय पाठक आत्मप्रबुद्ध हो सकता १६. बाबू ज्ञानचन्द्र जैनी लिखते हैं - "जैनधर्म का सार यह, भूधर भरो इस माय । नहीं पढ़ा यह ग्रन्थ जिन, जैनी यूँ ही कहाय ॥१६॥ १३. कलकत्ता से प्रकाशित 'भूधरविलास' का प्रथम, द्वितीय व तृतीय पृष्ठ १४. तीर्थंकर (मासिक), इन्दौर, जुलाई १९९० १५. अध्यात्म पदावली, पृष्ठ १०० १६. भूधर जैन शतक (प्रकाशक दि० जैनधर्म पुस्तकालय, अनारकली, जैन गली, लाहौर; संस्करण - १९०९ ई ) भमिका पष्ठ २

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