Book Title: Jain_Satyaprakash 1955 01
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 22
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७.] શ્રી. જેન સત્ય પ્રકાશ [१ : २० सर्कलमें सामानरूपसे तीन महिनेकी रात और तीन महिनेका दिन होता। किन्तु वाशिंगटनके 'ब्यूरो आव नेविगेशन' द्वारा प्रकाशित " नौटिकल-एलमैनक" नामक पंचांगके अनुसार दक्षिणमें ७० अक्षांश पर स्थित 'शेटलैंड' टापू पर सबसे बड़ा दिन १६ घण्टे ५३ मिनिटका होता है। उत्तरकी ओर नावेंमें ७० अक्षांश पर 'हैमरफास्ट' नामक स्थानमें पूरे तीन महिनेका सबसे बड़ा दिन होता है। ___ यदि पृथ्वी गोल होती तो उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुवोंमें व्यक्तिविषयक भिन्नता न होती। "एटार्कटिक" प्रदेशमें पिस्तौलकी साधारण आवाज तोपकी आवाजके समाज गूंजती है और चट्टान टूटने की आवाज तो प्रलयनादसे भी भयंकर होती है। इसके विपरीत उत्तरके आर्कटिक प्रदेशमें ऐसा नहीं है। केप्टन हाल नामक अन्वेषकका कहना है कि वहां बंदूककी आवाज २० फुटकी दूरी पर मुश्किलसे सुनी जा सकती हैं । केप्टन मिल एक स्थान पर अपनी यात्राके प्रसंगमें लिखते हैं कि आर्कटिक प्रदेशमें ४० मील अधिकसे साधारण मनुष्य की दृष्टि नहीं पहुँच सकती। उत्तरी ध्रुवके अन्वेषक इसके विपरीत कहते हैं कि वे १५० से २०० मील तक आर्कटिक प्रदेशोंमें सरलतासे देख सकते दे। एक अमेरिकन साप्ताहिक पत्र 'हारपर्स विकली' के २० वी अक्टूबर सन् १८९४ ई. के अङ्कमें सरकारी विषयके अन्वेषणोंके विषयमें लिखा है कि उत्तरमें ' कोलो रेड्रो इलेक्शन' पे माऊँट उनकम्प्रेगी (१४४१८) से ' माऊँट एलन ' (१४४१० फुट) तक अर्थात् १८३, मीलकी दूरी पर वे लोग हेलयोग्राफ ( पालिश चढ़ाये शीशे ) की सहायतासे समाचार भेजनेमें सफल हुए। ___ यदि पृथ्वी गोल होती तो उपर्युक्त प्रयोग मिथ्या होता, क्योंकि १८३ मीलकी दूरीमें मध्य भागसे पृथ्वीकी ऊँचाई (गोलाईके कारण) २२३०६ फुट हो जाती, जो सर्वथा असंभव है। यदि पृथ्वी गोल होती तो इंग्लिश चैनलके बीचमें खडे हुए जहाज की छत परसे झांसीसी तटके ओर ब्रिटिश तटके प्रकाशस्तम्भ (लाइट हाउस ) दोनों ही स्पष्ट दिखाई न देते । इसी प्रकार बैलून में बैठे हुए मनुष्यको पृथ्वी उन्नतोदर दिखाई पडती, किन्तु इसके विपरीत वह पृथ्वीको रकाबीकी भांति समान देखता है। ___सच पूछिये तो अब तक जितने मानचित्र बनाये गये हैं उनमें कोई दोष अवश्य है और उनकी प्राणालियां भी अपूर्ण हैं। प्रसंगवश उनका विवरण भी नीचे दिया जाता है। (१) मर्केटर प्रोजेक्शन--यह काफमेन नामक जर्मन द्वारा आविष्कृत प्रणाली है। इसमें उत्तरीभाग अपने वास्तविक आकारसे बहुत बड़े हो जाते हैं। For Private And Personal Use Only

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